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'सबक सिखाने' के लिए पीट-पीट कर जान ली पुलिस ने
27-Oct-2020 5:27 PM
'सबक सिखाने' के लिए पीट-पीट कर जान ली पुलिस ने

photo credit the news minute

तमिलनाडु में हिरासत में दो व्यक्तियों के मारे जाने के मामले में पुलिस पर लगे आरोपों को सीबीआई ने सही ठहराया है. संस्था ने कहा है कि पिता-पुत्र को घंटों तक इतना मारा गया कि पुलिस स्टेशन की दीवारों पर खून के छींटे लगे थे.

58 वर्षीय जयराज और उनके 31 वर्षीय पुत्र बेनिक्स को 19 जून को तमिलनाडु के थूथिकोरिन में पुलिस ने उनकी मोबाइल फोन की दुकान को प्रशासन द्वारा तय समय से 15 मिनट ज्यादा खुला रखने के लिए गिरफ्तार कर लिया था. 22 जून की शाम पुलिस ने बेनिक्स को अस्पताल में भर्ती कराया और उसके लगभग एक घंटे बाद उसकी अस्पताल में ही मौत हो गई. उसी रात पुलिस ने जयराज को भी अस्पताल में भर्ती कराया और अगली सुबह उसकी भी मौत हो गई.

पुलिस ने दावा किया था कि उन दोनों ने पुलिसकर्मियों से लड़ाई की थी और गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए सड़क पर लेट कर खुद को घायल कर लिया था. मृतकों के संबंधियों ने कहा था कि दोनों के शरीर पर और विशेष रूप से दोनों के कूल्हों और मलद्वार के आस पास इतनी गहरी चोट थी कि वहां जरा भी चमड़ा नहीं बचा था. अब इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में पुलिस के खिलाफ हिंसा और कानून के उल्लंघन के आरोपों को सही ठहराया है.

मीडिया में आई खबरों के अनुसार सीबीआई ने चार्जशीट में लिखा है कि पुलिस ने पिता-पुत्र को शाम के 7:45 से ले कर सुबह के तीन बजे तक पीटा. सीबीआई के अनुसार पुलिस उन दोनों को सबक सिखाना चाहती थी कि पुलिस के साथ कैसे पेश आना चाहिए. यही नहीं, पुलिस ने अपने जुर्म को छुपाने के लिए दोनों के खिलाफ फर्जी एफआईआर भी दर्ज की.

भारत में हिरासत में लोगों का मारा जाना एक बड़ी समस्या है. पिछले एक दशक में कम से कम 17,146 लोग न्यायिक और पुलिस हिरासतों में मारे गए, यानि औसत हर रोज पांच लोग.

इसके अलावा पुलिस ने दोनों को अगले दिन अदालत ले जाने से पहले उनके खून से सने कपड़े दो बार बदले और उन कपड़ों को उनके परिवार के सदस्यों को देने की जगह एक सरकारी अस्पताल के कूड़ेदान में फेंक दिया. चार्जशीट यह भी कहती है कि दोनों को लगभग नग्न कर के उन्हें एक टेबल पर झुका कर उनके हाथ और पैर पकड़ पर पीटा गया.

जयराज ने पुलिस को बताया भी कि उन्हें उच्च रक्तचाप और मधुमेह की बीमारी है और वो ऐसी चोटें सह नहीं सकेंगे, लेकिन पुलिसवालों ने उनकी एक ना सुनी और मार-पीट को जारी रखा. सीबीआई की चार्जशीट ने पुलिस पर पहले से लगे आरोपों को स्थापित कर दिया है और तमिलनाडु में भी पुलिस का बर्बर चेहरा सबके सामने ला दिया है.

भारत में हिरासत में लोगों का मारा जाना एक बड़ी समस्या है. पिछले एक दशक में कम से कम 17,146 लोग न्यायिक और पुलिस हिरासतों में मारे गए, यानि औसत हर रोज पांच लोग. इनमें से 92 प्रतिशत मौतें 60 से 90 दिनों की अवधि वाली न्यायिक हिरासतों में हुई थी. शेष मौतें पुलिस हिरासत में हुईं जो 24 घंटे की अवधि की होती है. (DW)

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