विचार / लेख
यमन के कुछ हिस्सों में बच्चे तीव्र कुपोषण के शिकार हो रहे हैं. यूएन की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश जल्द ही कड़े खाद्य सुरक्षा संकट के करीब पहुंच सकता है. कोरोना वायरस महामारी से हालात और कठिन हो गए हैं.
यमन संकट को सात साल हो रहे हैं लेकिन इसका हल अब तक नहीं निकल पाया है. सालों से जारी संकट ने सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों को पहुंचाया है. बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं और कोविड-19 का भी खतरा मंडरा रहा है. मंगलवार, 27 अक्टूबार को संयुक्त राष्ट्र की जारी रिपोर्ट में देश में कुपोषण के उच्चतम स्तर को लेकर चेतावनी दी गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भीषण खाद्य संकट की ओर बढ़ रहा है.
साल 2020 यमन में बच्चों के लिए सबसे ज्यादा दुख देने वाला रहा. पहले तो कोरोना वायरस महामारी से देश की हालत खराब हुई उसके बाद गिरती अर्थव्यवस्था तो चिंता का विषय बना ही हुआ है एक और संकट है बढ़ता संघर्ष. पिछले छह से साल देश युद्ध की मार झेल रहा है और इस साल सहायता राशि में कमी भी भूख से लड़ने के उपायों को कमजोर कर रहे हैं.
यमन के लिए यूएन की मानवीय समन्वयक लिजे ग्रांडे कहती हैं, "हम जुलाई से ही चेतावनी दे रहे हैं कि यमन एक भयावह खाद्य सुरक्षा संकट की कगार पर है. अगर अब युद्ध खत्म नहीं होता है तो हम एक अपरिवर्तनीय स्थिति में पहुंच जाएंगे जहां यमन के छोटे बच्चों की पूरी पीढ़ी खत्म होने का जोखिम है."
यूएन के एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (आईपीसी) के मुताबिक दक्षिण यमन में पांच साल के कम उम्र के बच्चों में तीव्र कुपोषण के मामलों में साल 2020 में 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह आंकड़ा पहुंचकर पांच लाख के करीब पहुंच गया है.
गंभीर तीव्र कुपोषण के शिकार बच्चों की संख्या में 15.50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और ढाई लाख गर्भवती महिलाएं या स्तनपान कराने वाली मांओं को भी कुपोषण उपचार की भी जरूरत है. दक्षिण यमन में 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 14 लाख बच्चे रहते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त यमन सरकार के नियंत्रण में आता है. हालांकि उत्तर यमन के लिए आईपीसी डाटा अब तक उपलब्ध नहीं हो पाया है, यहां पर ईरान के प्रति झुकाव रखने वाले हूथी विद्रोही का नियंत्रण है.
यमन में अकाल को कभी आधिकारिक रूप से घोषित नहीं किया गया है. यूएन कहता आया है कि यमन दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट झेल रहा है. देश की 80 फीसदी जनसंख्या मानवीय सहायता पर ही निर्भर है.
पोषण आहार और अन्य सेवाएं देने वाली एजेंसियां जो लाखों लोगों को भुखमरी से बचाती हैं इस साल फंडिंग की कमी के कारण बंद हो रही हैं. यूएन का कहना है कि उसको मध्य अक्टूबर तक सिर्फ 1.43 अरब डॉलर ही मिले हैं.
मार्च 2015 के मानवीय त्रासदी और खराब हो गई जब सऊदी अरब ने यहां दखल दिया, सऊदी ने सरकारी सेना के समर्थन में अपनी सेना उतार दी. हूथी बागियों को रियाद के कट्टर प्रतिद्वंद्वी ईरान का समर्थन हासिल है. हवाई हमलों और युद्ध के कारण लाखों लोगों की मौत हो चुकी हैं जिनमें सैकड़ों बच्चे भी शामिल हैं.