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टेरर फंडिंग केस में एनआईए ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व प्रमुख, अन्य पर की छापेमार कार्रवाई
29-Oct-2020 1:00 PM
टेरर फंडिंग केस में एनआईए ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व प्रमुख, अन्य पर की छापेमार कार्रवाई

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर| राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने गुरुवार को टेरर फंडिंग केस में जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर और दिल्ली में नौ स्थानों पर छापे मारे। जांच एजेंसी ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व प्रमुख जफरुल इस्लाम खान के ठिकानों पर भी छापे मारे। कुछ गैर सरकारी संगठनों और ट्रस्टों द्वारा धर्मार्थ गतिविधियों के नाम पर भारत और विदेशों से धन जुटाने और फिर कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियों के लिए उपयोग करने के मामले में यह छापेमार कार्रवाई की जा रही है।

जांच में शामिल एनआईए के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि एजेंसी श्रीनगर और दिल्ली में छह एनजीओ और ट्रस्टों के 9 ठिकानों पर छापेमारी कर रही है।

जिन ट्रस्टों और एनजीओ के ठिकानों पर छापेमार कार्रवाई चल रही है उनमें फलाह-ए-आम ट्रस्ट, चैरिटी अलायंस, ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन, जेएंडके यतेम फाउंडेशन, साल्वेशन मूवमेंट और जेएंडके वॉयस ऑफ विक्टिम्स (जेकेवीवीवी) के दफ्तर शामिल हैं।

एनआईए सूत्रों के अनुसार, चैरिटी अलायंस और ह्यूमन वेलफेयर फाउंडेशन दिल्ली में स्थित थे।

सूत्रों ने कहा कि दिल्ली के जामिया नगर में चैरिटी एलायंस के कार्यालय की तलाशी एनआईए द्वारा ली जा रही है।

चैरिटी एलायंस के प्रमुख जफरुल इस्लाम खान हैं, जो 'द मिल्ली गजट' के संपादक भी हैं।

इससे पहले एनआईए ने बुधवार को श्रीनगर और बांदीपुर में 11 स्थानों पर और बेंगलुरु में एक स्थान पर छापा मारा था।

एनआईए ने जम्मू और कश्मीर सिविल सोसाइटी के कोर्डिनेटर खुर्रम परवेज के निवास और दफ्तर में तलाशी ली। इसके अलावा खुर्रम परवेज के साथी परवेज अहमद बुखारी, परवेज अहमद मटका और बेंगलुरु स्थित सहयोगी स्वाति शेषाद्रि, परवीना अहंगर के ठिकानों पर भी तलाश्ी ली गई।

एनआईए ने 8 अक्टूबर को आईपीसी और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की कई धाराओं के तहत केस दर्ज किया था। उसी के तहत ये कार्रवाई की जा रही है।

यहां तक कि शिक्षक ने मुस्लिम छात्रों को उनकी कक्षा में उपस्थित न होने का विकल्प भी दिया था।

हालांकि बाद में पुलिस ने अंजोरोव की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना को पिछले दो दशकों में फ्रांस के कई इस्लामी आतंकवादी हमलों में से एक माना गया।

मैक्रों ने पैटी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए बच्चों को पढ़ाने के लिए देश के नाम शहीद के रूप में वर्णित किया। इसके बाद ही देश में कट्टरपंथी इस्लाम के बारे में एक बड़ी बहस शुरू हो गई है।

फ्रांस में कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ कई बड़ी विरोध रैली आयोजित की गईं। हालांकि दुनिया भर के इस्लामिक प्रतिनिधियों ने मैक्रों और फ्रांसीसी अधिकारियों को ऑनलाइन भला बुरा कहते हुए अपशब्द भी कहे।

एक जनमत सर्वेक्षण के अनुसार, फ्रांस में 87 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनका धर्मनिरपेक्ष समाज खतरे में है और 79 प्रतिशत का मानना है कि इस्लाम धर्म ने फ्रांसीसी गणतंत्र के खिलाफ युद्ध की घोषणा की है।

पिचाई ने जोर देकर कहा, "हम बिना किसी राजनीतिक पूर्वाग्रह के काम करते हैं।" (आईएएनएस)

अमेरिका ने इंटरनेट के इतिहास की शुरूआत में ही धारा 230 को अपना लिया था। यह कंटेन्ट बनाने और उसे साझा करने की स्वतंत्रता भी देती है और सभी प्लेटफार्मों और सेवाओं को यह बताने की क्षमता भी देती है कि यह सामग्री हानिकारक है।

पिचाई ने कहा, "आखिर में हम सभी का एक ही लक्ष्य है कि हम हर किसी को सूचनाओं तक पूरी पहुंच दें और लोगों के डेटा की सुरक्षा की जिम्मेदारी लें।"

बता दें कि अमेरिकी सीनेट की सुनवाई गूगल के खिलाफ अमेरिकी न्याय विभाग के मुकदमे के बमुश्किल एक हफ्ते बाद हुई है।

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