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दुनिया के दो अमीर मुकेश अंबानी और जेफ़ बेज़ोस आमने-सामने और बीच में बिग बाज़ार
29-Oct-2020 7:01 PM
दुनिया के दो अमीर मुकेश अंबानी और जेफ़ बेज़ोस आमने-सामने और बीच में बिग बाज़ार

दुनिया के सबसे बड़े अमीर और भारत के सबसे बड़े अमीर आमने-सामने हैं और बीच में हैं 'भारत के रिटेल किंग' किशोर बियानी और उनका बिग बाज़ार.

बिग बाज़ार इसलिए, क्योंकि वही उनका सबसे मशहूर ब्रांड है. हालाँकि सौदा इससे बड़ा है और दाँव पर जो लगा है, वो तो उससे भी कहीं बड़ा है.

दुनिया के सबसे अमीर आदमी हैं अमेज़ॉन के जेफ़ बेज़ोस. इस बार उनकी जिससे ठनी है, वो हैं रिलायंस के मुकेश अंबानी, भारत के सबसे बड़े और दुनिया में चौथे नंबर के अमीर आदमी. दोनों के बीच तकरार की वजह हैं किशोर बियानी और उनका फ़्यूचर ग्रुप.

बीते रविवार को अमेज़ॉन ने सिंगापुर के अंतरराष्ट्रीय पंचाट सिंगापुर इंटरनेशल आर्बिट्रेशन सेंटर से एक अंतरिम आदेश जारी करवा लिया कि फ़्यूचर ग्रुप अपना कारोबार रिलायंस ग्रुप को नहीं बेच सकता. क्यों और कैसे पर आएँ, इससे पहले समझना ज़रूरी है कि यह सौदा है क्या.

बियानी का फ़्यूचर ग्रुप अपने सारे रिटेल और होलसेल कारोबार को रिलायंस समूह की कंपनी रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड को बेचने के क़रार पर दस्तख़त कर चुका है.

अगस्त में दोनों कंपनियों ने एलान किया था कि इसके लिए रिलायंस क़रीब 24,700 करोड़ रुपये चुकाएगा.

दुनिया के सारे बड़े रिटेलरों की नज़र फ़्यूचर ग्रुप पर

तब भी इस बात पर सवाल उठ रहे थे कि आख़िर किशोर बियानी ऐसा सौदा क्यों कर रहे हैं, जिसमें उनका सबसे प्रिय ब्रांड बिग बाज़ार ही नहीं, पूरा रिटेल और होलसेल कारोबार बिक जाएगा और फिर भी कंपनी का या प्रोमोटर का पूरा क़र्ज़ उतर नहीं पाएगा.

यह बात समझना बहुत मुश्किल भी नहीं था. कंपनी ने पिछले कुछ सालों में नए कारोबार खड़े करने में काफ़ी रुपये ख़र्च किये थे और इसके लिए प्रोमोटर यानी बियानी परिवार ने अपने ख़ुद के शेयर भी गिरवी रखे हुए थे. उन्हें उम्मीद थी कि जल्दी ही बाज़ार सुधरेगा, कमाई बढ़ेगी और वो यह सारा क़र्ज़ उतारकर शेयर छुड़ा लेंगे.

किशोर बियानी काफ़ी समय से दुनिया के किसी बड़े रिटेलर से हाथ मिलाने की कोशिश में भी थे. वॉलमार्ट से भी उनकी लंबी बातचीत चली और दुनिया के कई और दिग्गजों से भी. फ़्रांस की कारफ़ुअर के साथ उनके समझौते की ख़बरें तो 10 साल पहले सुर्खियों में थीं.

संक्षेप में कहा जा सकता है कि दुनिया के सारे बड़े रिटेलर्स की नज़र फ़्यूचर ग्रुप पर थी, क्योंकि तब तक वो देश की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी थी. फ़्यूचर ग्रुप का मैनेजमेंट भी यह समझ रहा था कि आने-वाले वक़्त में टाटा, बिड़ला और रिलायंस जैसी कंपनियों के साथ मुक़ाबले में रहने के लिए उसे कोई बड़ा साझेदार तो चाहिए ही होगा.

अड़चन सिर्फ़ एक थी. भारत की विदेशी निवेश नीति. ख़ासकर रिटेल व्यापार में विदेशी निवेश को लेकर सभी सरकारें फूँक-फूँककर क़दम रखती रही हैं.

कोई भी विदेशी निवेशक तब तक किसी भारतीय कंपनी में पैसा लगाने से हिचकता रहता है, जब तक कि उसे कंपनी पर नियंत्रण या कम से कम दबाव बनाने लायक हिस्सेदारी न मिले.

रिटेल कारोबार के नियम इसे काफ़ी मुश्किल बना देते थे. हालांकि कुछ शर्तों के साथ अब सिंगल ब्रांड रिटेल में 100 प्रतिशत तक और मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 प्रतिशत तक हिस्सेदारी विदेशी कंपनी ले सकती है. लेकिन इसका रास्ता भी आसान नहीं है.

तमाम कंपनियाँ इसकी शर्तों से सहमत नहीं होतीं. और दूसरी बड़ी अड़चन है कि ऑनलाइन रिटेलर यानी ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए नियम बिल्कुल अलग हैं.

यह छूट मिलने के बाद भी कोई ई-कॉमर्स कंपनी भारत में किसी रिटेल कंपनी में 10 प्रतिशत से ऊपर हिस्सा नहीं ले सकती और साथ में शर्त यह भी है कि इन दोनों कंपनियों के ऑनलाइन कारोबार और ऑफ़लाइन यानी दुकान, स्टोर, गोदाम वगैरह का आपस में कोई रिश्ता नहीं रह सकता.

ये नियम अजीब है, क्योंकि एक तरफ तो अमेज़ॉन ख़ुद भारत में जमकर कारोबार कर रहा है, दूसरी तरफ भारत से शुरू हुआ फ़्लिपकार्ट अब वॉलमार्ट के हाथ में पहुँच चुका है. लेकिन अमेज़ॉन के लिए फ़्यूचर ग्रुप या ऐसे किसी दूसरे रिटेलर का हिस्सा ख़रीदना अब भी आसान नहीं है.

दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन रिटेलर अमेज़ॉन

शायद इसीलिए कई रिटेलर अपने-अपने पार्टनर तलाश कर बैठे थे कि जैसे ही क़ानूनों में बदलाव होगा, हम अपना समझौता आगे बढ़ा लेंगे. इस तैयारी की वजह भी थी. वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम का अनुमान था कि 2030 तक भारत, अमरीका और चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा रिटेल बाज़ार हो जाएगा.

इस साल देश के रिटेल कारोबार का आकार क़रीब 70 हज़ार करोड़ डॉलर है, जिसके 10 साल में बढ़कर क़रीब 1.3 लाख डॉलर हो जाने की आशा है.

ज़ाहिर है दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन रिटेलर अमेज़ॉन इस बाज़ार का बड़ा हिस्सा अपनी झोली में देखना चाहता है. यह उम्मीद भी लगातार बढ़ ही रही थी कि आज नहीं तो कल सरकार इस कारोबार में विदेशी निवेश का रास्ता आसान करेगी.

इसके पीछे बड़ा तर्क भी है. कारोबारियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक की ओर से यह सवाल लगातार उठ रहा है कि सरकार देश के पूरे रिटेल बाज़ार को एक मानकर क्यों नहीं देखती.

ऑफ़लाइन और ऑनलाइन यानी सुपरमार्केट और शॉपिंग पोर्टल के लिए अलग-अलग क़ानून कैसे रह सकते हैं.

शायद इसी पेशबंदी में अमेज़ॉन ने फ़्यूचर ग्रुप के साथ एक सौदा किया. पिछले साल यानी 2019 के अगस्त में अमेज़ॉन ने फ़्यूचर ग्रुप की कंपनी फ़्यूचर कूपन्स लिमिटेड में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदी.

यह कंपनी गिफ़्ट वाउचर, पेमेंट ऐप वगैरह का कारोबार करती है. यानी अगर आप बिग बाज़ार या सेंट्रल का गिफ़्ट वाउचर ख़रीदकर किसी को देते हैं, तो वो वाउचर इस कंपनी से आता है.

लेकिन बड़ी बात यह थी कि इस कंपनी के पास फ़्यूचर रिटेल लिमिटेड में लगभग 10 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी.

तो एक तरह से अमेज़ॉन ने समझा, या उसे समझाया गया कि अब उसने फ़्यूचर रिटेल में पैसा लगाने की शुरुआत कर दी है और जैसे ही नियम बदलेंगे, इस व्यवस्था को आगे बढ़ाया जा सकता है.

इस करार में यह लिखा है कि इससे अमेज़ॉन को यह अधिकार मिल जाता है कि वो फ़्यूचर रिटेल लिमिटेड में प्रोमोटर की पूरी या कुछ हिस्सेदारी ख़रीद सकता है.

इसके लिए उसे कॉल ऑप्शन दिए गए. ये कॉल ऑप्शन समझौते की तारीख़ के तीन साल पूरे होने से लेकर 10 साल ख़त्म होने तक शेयरों में बदले जा सकते थे.

जिस वक़्त इस समझौते का एलान हुआ, तब बाज़ार ने भी इसे यूँ ही पढ़ा कि अमेज़ॉन ने पिछले रास्ते से फ़्यूचर ग्रुप के कारोबार में हिस्सा ख़रीदने की शुरुआत कर दी है.

ध्यान रखना चाहिए कि यह करार अगस्त 2019 में हुआ था. फ़्यूचर ग्रुप उस वक्त फ़ूड हॉल, फ़ैशन एट बिग बाज़ार जैसे नए फॉर्मैट जमाने में और अपने पुराने ब्रांड बिग बाज़ार को बढ़ाने की कोशिश में लगा था.

पिछले छह-सात साल में वो कई दूसरी कंपनियाँ या उनके कारोबार ख़रीदकर लगातार अपना कारोबार बड़ा करने में जुटा था.

कोरोना महामारी से हुई समस्या

इस सबमें पैसे की ज़रूरत उसने कर्ज़ लेकर पूरी की. इसी वक़्त रिलायंस रिटेल का दबदबा बाज़ार में बढ़ रहा था और आईपीओ के बाद डी-मार्ट भी नए जोश से कारोबार फैलाता दिख रहा था.

देश के हालात भी सुधरने वाले हैं, ऐसी हवा चल रही थी, तो क़र्ज़ लेकर कारोबार बढ़ाने में कोई जोख़िम नहीं दिखता था. और यह भी ज़रूरी था कि ग्रुप इस कारोबार में अपना रुतबा बनाए रखे.

क़र्ज़ की ज़रूरत पूरी करने के लिए प्रोमोटर ने भी अपने काफ़ी शेयर गिरवी रखे हुए थे. उस वक़्त फ़्यूचर रिटेल का शेयर क़रीब 380 रुपये का चलता था, लेकिन इस साल फ़रवरी में अचानक इसके शेयरों में तेज़ी से गिरावट आई और कुछ ही समय में यह गिरकर 100 रुपये से नीचे पहुँच गया.

भाव गिरता है, तो क़र्ज़ देने वाले बैंक मार्जिन में और शेयर माँगते हैं. हालात यह हुए कि कुछ ही समय में प्रोमोटरों के क़रीब क़रीब सारे शेयर बैंकों के पास गिरवी हो गए.

यह गिरावट अचानक क्यों आई, इसका कोई तर्क सामने नहीं है. अटकलें बहुत सी हैं. कोई बियर कार्टेल या मंदड़ियों का गिरोह इन्हें पीटने में लगा था. या कोई बड़ी पार्टी भाव गिराकर इन्हें मजबूर कर देना चाहती थी. लेकिन फ़िलहाल यह सब सिर्फ़ सवाल हैं.

सूत्रों से पता चलता है कि इसके बावजूद शायद कारोबार संभल जाता, क्योंकि रोज़ की बिक्री इतनी हो रही थी कि नकदी का चक्र चल रहा था. लेकिन क़रीब क़रीब यही वक़्त था, जब कोरोना का हमला हुआ.

मार्च के महीने में लॉकडाउन एक तरह से मुसीबत का पहाड़ बन गया, क्योंकि अब हर रोज़ स्टोर में सामान बिकना और वहाँ से नकद पैसा आना भी बंद हो गया.

किशोर बियानी ने एक इंटरव्यू में कहा कि देशबंदी के बाद सारे स्टोर बंद हो गए और अगले तीन-चार महीनों में ही कंपनी को सात हज़ार करोड़ रुपये का नुक़सान झेलना पड़ा, जो बर्दाश्त से बाहर था.

आख़िरकार इसीलिए कंपनी को बेचने का फ़ैसला करना पड़ा. उनका कहना है कि इसके अलावा अब कोई चारा नहीं रह गया है.

सिंगापुर की पंचाट में कंपनी के वकील ने भी तर्क रखा है कि अगर यह सौदा नहीं हो पाया, तो कंपनी दीवालिया हो सकती है.

अब सवाल यह है कि अमेज़ॉन इस झगड़े को सिंगापुर क्यों ले गया और क्या यह सौदा अटक जाएगा?

इस पर कोई भी पक्ष कुछ कह नहीं रहा है. सिर्फ़ औपचारिक बयान ही सामने हैं. रविवार को सिंगापुर से निर्देश आने के साथ उसी रात रिलायंस की तरफ से बयान आया कि वो इस सौदे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

ऐसा ही बयान फ़्यूचर ग्रुप से भी आया. सूत्रों के हवाले से ख़बर आई कि फ़्यूचर ग्रुप इस अंतरिम आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दे सकता है, लेकिन फिर कोई हलचल हुई नहीं.

क़ानून के जानकारों का कहना है कि सिंगापुर की पंचाट का फ़ैसला भारत में सीधे लागू नहीं होता.

अगर विवाद में फँसे दोनों पक्ष उसकी बात मान लेते हैं तब तो कोई बात ही नहीं. लेकिन अब अगर फ़्यूचर ग्रुप सौदा रोकने को तैयार नहीं होता है, तो अमेज़ॉन को भारत की किसी अदालत में जाकर सिंगापुर का फ़ैसला दिखाना होगा और यहाँ से उसका अनुमोदन करवा कर फ़्यूचर ग्रुप को और रिलायंस को निर्देश जारी करवाना होगा. ऐसा नहीं हुआ तो सौदा चलता रहेगा.

दोनों आमने सामने आए क्यों?

सूत्रों के अनुसार, फ़्यूचर ग्रुप और रिलायंस अब पहल करने के बजाय इंतज़ार कर रहे हैं कि अमेज़ॉन मुक़दमा करे, तो वो जवाबी कार्रवाई करें. यह सुनवाई दिल्ली हाईकोर्ट में हो सकती है क्योंकि फ़्यूचर और अमेज़ॉन के समझौते में विवाद दिल्ली में सुलझाने की बात शामिल है.

जानकारों की राय है कि फ़्यूचर ग्रुप के दो तर्क उसका केस मजबूत बनाते हैं. एक तो यह कि अमेज़ॉन के साथ करार में फ़्यूचर रिटेल कोई पार्टी या पक्ष नहीं था, इसलिए उसे अपना कारोबार बेचने का पूरा हक़ है. और दूसरा यह कि अगर यह सौदा नहीं हो पाया तो फ़्यूचर ग्रुप का दीवाला निकल सकता है. इससे न सिर्फ़ कंपनी बल्कि उसके हज़ारों कर्मचारी भी मुसीबत में आ जाएँगे.

अदालत में तो जो होगा, वो सामने आएगा. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आख़िर मुकेश अंबानी और जेफ़ बेज़ोस इस मसले पर आमने-सामने आए क्यों?

इसका जवाब है कि यह मामला फ़्यूचर ग्रुप या किसी एक कंपनी के सौदे का नहीं है. दोनों को ही दुनिया का सबसे चमकदार बाज़ार, बल्कि बिग बाज़ार दिख रहा है और उसे वो अपनी ही झोली में देखना चाहते हैं.

वो है भारत का रिटेल कारोबार. 10,900 स्टोर्स और एक लाख 30 हज़ार करोड़ रुपये की सालाना बिक्री वाली रिलायंस रिटेल अब देश की सबसे बड़ी रिटेल कंपनी है और फ़्यूचर ग्रुप के साथ यह सौदा उसे 1700 स्टोर और क़रीब 20 हज़ार करोड़ की आमदनी और देगा.

लेकिन अमेज़ॉन की फ़िक्र इससे बहुत बड़ी है. वो भारत में साढ़े छह अरब डॉलर लगाने की योजना बनाकर बैठा है. उसे यहाँ सबसे बड़ी चुनौती रिलायंस से ही दिख रही है, क्योंकि उसके पास ना सिर्फ़ सबसे बड़ा रिटेल नेटवर्क है, बल्कि जियोमार्ट जैसा ऑनलाइन पोर्टल भी है और रिलायंस जियो जैसे ज़बरदस्त नेटवर्क का साथ भी.

जबकि अमेज़ॉन को सिर्फ़ ऑनलाइन कारोबार के भरोसे ही रहना है. उधर ऑनलाइन बाज़ार में उसके मुक़ाबले खड़े फ़्लिपकार्ट ने आदित्य बिड़ला फ़ैशन रिटेल में हिस्सेदारी ख़रीद ली है.

यही वजह है कि वो इस सौदे को रुकवाने के लिए ज़ोर लगा रहा है. चर्चा है कि सिंगापुर में उसने यह प्रस्ताव भी रखा कि फ़्यूचर ग्रुप यह सौदा तोड़ दे, तो वो नया ख़रीदार लाकर सौदा करवाने की ज़िम्मेदारी लेने को भी तैयार है.

लेकिन इस कारोबार को क़रीब से देख रहे लोगों को शक़ है कि बात सिर्फ़ इतनी नहीं है. यह भी हो सकता है कि अमेज़ॉन और फ़्यूचर ग्रुप के बीच अंदरखाने कोई सहमति बन रही हो.

लेकिन यह भी हो सकता है कि अमेज़ॉन सीधे रिलायंस के साथ कोई समझौता करना चाहता हो और फ़्यूचर के इस सौदे को ट्रंप कार्ड के तौर पर दबाव बनाने के लिए इस्तेमाल कर रहा हो.

अब एक हफ़्ते का समय है. यानी अगले रविवार तक तस्वीर साफ़ होगी कि किसकी अगली चाल क्या होगी. (bbc)

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