विचार / लेख

जानवरों में पाए जाने वाले 8.5 लाख वायरस कर सकते हैं मानवों को संक्रमित: रिपोर्ट
31-Oct-2020 7:10 PM
जानवरों में पाए जाने वाले 8.5 लाख वायरस कर सकते हैं मानवों को संक्रमित: रिपोर्ट

-Dayanidhi

संयुक्त राष्ट्र के जैव विविधता पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में महामारियां और अधिक बार आएंगी। इन महामारियों से और अधिक लोगों को जान से हाथ धोना पड़ेगा। ये दुनिया की अर्थव्यवस्था को कोरोनावायरस के मुकाबले और अधिक नुकसान पहुंचाएंगे।

चेतावनी दी गई कि 540,000 से लेकर 850,000 तक ऐसे वायरस हैं, जो नोवल कोरोनवायरस की तरह जानवरों में मौजूद हैं और लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। यह महामारियां मानवता के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।

जैव विविधता और महामारी पर विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि जानवरों के रहने के आवासों की तबाही और जरूरत से ज्यादा खपत से भविष्य में पशु-जनित रोगों के और अधिक बढ़ने के आसार हैं।

जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर अंतरसरकारी विज्ञान-नीति मंच (आईपीबीईएस) कार्यशाला के अध्यक्ष पीटर दासजक ने कहा कि कोविड-19 महामारी या कोई भी आधुनिक महामारी के पीछे कोई बड़ा रहस्य नहीं है।

वही मानव गतिविधियां जिनकी वजह से जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता की हानि होती है, हमारे कृषि पर भी इनके प्रभावों से महामारी के खतरों को बढ़ाती हैं।

पैनल ने कहा कि 1918 के इन्फ्लूएंजा के प्रकोप के बाद कोविड-19 छठी महामारी है, जिसके लिए पूरी तरह से मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं। इनमें वनों की कटाई, कृषि विस्तार, जंगली जानवरों का व्यापार और खपत के माध्यम से पर्यावरण का निरंतर शोषण शामिल है। ये सभी लोगों को जंगली और खेती में उपयोग होने वाले जानवरों के साथ संपर्क में रखते हैं और बीमारियों को शरण देते हैं।

उभरती बीमारियों के 70 फीसदी जैसे कि- इबोला, जीका और एचआईवी / एड्स, मूल रूप से जूनोटिक हैं, जिसका अर्थ है कि वे मनुष्यों में फैलने से पहले जानवरों में फैलते हैं। पैनल ने चेतावनी देते हुए बताया कि हर पांच साल में इंसानों में लगभग पांच नई बीमारियां फैलती हैं, जिनमें से किसी एक की महामारी बनने के आसार होते हैं।

कोविड-19 महामारी के लिए अब तक लगभग 8 ट्रिलियन डॉलर से 16 ट्रिलियन डॉलर तक की कीमत चुकानी पड़ी, जिसमें 5.8 ट्रिलियन से 8.8 ट्रिलियन डॉलर 3 से 6 महीने की सामाजिक दूरी और यात्रा प्रतिबंध की वजह से नुकसान हुआ (जो कि वैश्विक जीडीपी का 6.4 से 9.7 फीसदी है)

खराब तरीके से भूमि उपयोग

आईपीबीईएस ने पिछले साल प्रकृति की स्थिति पर अपने सामयिक मूल्यांकन में कहा था कि पृथ्वी पर तीन-चौथाई से अधिक भूमि पहले से ही मानव गतिविधि के कारण गंभीर रूप से खराब (डीग्रेड) हो चुकी है। जमीन की सतह का एक तिहाई और पृथ्वी पर ताजे पानी का तीन-चौथाई हिस्सा वर्तमान में खेती में उपयोग हो रहा है, लोगों के द्वारा संसाधनों का उपयोग केवल तीन दशकों में 80 प्रतिशत तक बढ़ गया है।

आईपीबीईएस ने 22 प्रमुख विशेषज्ञों के साथ एक वर्चुअल कार्यशाला आयोजित की, जिसमें महामारी के खतरों को कम करने तथा निपटने  के लिए उपायों की सूची बनाई गई है। अब दुनिया भर की सरकारों से अपेक्षा है कि वे इन्हें लागू करें।

विशेषज्ञों ने कहा हम अभी भी टीके और चिकित्सीय माध्यम से रोगों से उभरने और उन्हें नियंत्रित करने के प्रयासों पर भरोसा करते हैं।

आईपीबीईएस ने जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के समान एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत जैव विविधता के नुकसान को रोकने के लिए, लक्ष्यों पर सहमति के लिए, देशों को एक वैश्विक समन्वय महामारी प्रतिक्रिया (कोऑर्डिनेटेड पान्डेमिक रिस्पांस) का सुझाव दिया है।

नीति-निर्माताओं के लिए भविष्य में कोविड-19 जैसी बीमारियां न हो इसके लिए मांस की खपत, पशुधन उत्पादन आदि जो महामारी के खतरों को बढ़ाने वाली गतिविधियां हैं उन पर अधिक कर लगाने जैसी विकल्प शामिल करने का सुझाव दिया है।

रिपोर्ट  के मूल्यांकन में अंतर्राष्ट्रीय वन्यजीव व्यापार के बेहतर नियम और स्वदेशी समुदायों को इस काबिल बनाना कि वे जंगली आवासों को संरक्षित कर सकें आदि का सुझाव भी दिया गया है।

इस शोध में शामिल ओस्ले ने कहा कि हमारा स्वास्थ्य, धन, संपत्ति और भलाई हमारे स्वास्थ्य और हमारे पर्यावरण की भलाई पर निर्भर करती है। इस महामारी की चुनौतियों ने विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण और साझा पर्यावरणीय जीवन-प्रणाली को बचाने और बहाल करने के महत्व को उभारा है। (downtoerth)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news