सामान्य ज्ञान

मर्तबान
13-Nov-2020 2:15 PM
मर्तबान

मर्तबान  चीनी मिट्टी आदि के बने हुए एक प्रकार के गोलाकार पात्र को कहा जाता है। इसका इस्तेमाल अधिकांशत: अचार, मुरब्बे तथा रसायन आदि रखने के लिए किया जाता है। आजकल सजावट के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। 
हिन्दी में  मर्तबान  को  इमर्तवान, अमृतबान, बोईयान, म्रितबान, अमरितबान, मरतबान और बोट भी कहते हैं। मर्तबान शब्द को वैसे तो अरबी मूल का माना जाता है और इसकी व्युत्पत्ति मथाबान  से बताई जाती है, जिसका अभिप्राय  बैठी हुई मुद्रा  से है, अर्थात  सिंहासन पर बैठा शासक । अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता, जो 1350 में भारत आया था, उसने लिखा है कि-  शहजादी ने मुझे परिधान, दो हाथियों के बराबर चावल, चार पात्र शर्बत के, दस भैंड़, दो भैंसें और चार मर्तबान भेंट में दिए थे। इन मर्तबानों में काली मिर्च और आम भरे हुए थे।  
वर्ष 1516 में  मर्तबान  नगर में चीनी मिट्टी के पात्र बनते थे, जिनका निर्यात होता था। मर्तबान नगर के नाम पर ही इन पात्रों को विदेश में  मर्तबान  कहा जाने लगा। माले में भी ऐसे पात्र बनते थे। वहां दो फुट ऊंचे पात्र को  रंबा  और बड़े पात्र को  मर्तबान कहते थे। ओमान में बनने वाले पात्र भी मर्तबान कहलाते थे।  अरेबियन नाइट्स  में इन्हें  बर्तमान  कहा गया है। भारत में यह पात्र मध्य काल में ही आने प्रारम्भ हो गये थे।  
वर्ष 1598 के एक विवरण के अनुसार भारत के लगभग प्रत्येक घर में  मारतौन है। डेम्पियर ने वर्ष 1688 में लिखा था कि-  भारतीय इन्हें  मोंताबान  कहते हैं। ये पेगू से आते हैं।   वर्ष 1727 में हेमिल्टन ने इन्हें  मर्तबान  लिखा।  1851 में प्रदर्शित एक प्रदर्शनी में पेगू के इन पात्रों के नमूनों को दिखाया गया था।
मर्तबान को तेलुगू भाषा में मर्तबान, हिन्दी में मर्तबान के अतिरिक्त इमर्तवान, अमृतबान, बोईयान, म्रितबान, अमरितबान, मरतबान और बोट भी कहते हैं। फ़ेंग्शुई में पीले व लाल रंग के मर्तबान सबसे प्रभावशाली माने गये हैं। पीला व लाल रंग ऊर्जा, शक्ति व उत्साह का प्रतीक है। 
भारत में मर्तबान अधिकांशत: अचार, तेजाब और कई प्रकार के रसायन आदि रखने के लिए प्रयोग किया जाता है। अलग-अलग भाषाओं और देशों में इसके कई नाम भी प्राप्त होते हैं।


एकीकृत कीट प्रबंधन
खतरनाक रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल कम करने और कीट-पतंगों, विनाशकारी कीटों और बीमारियों के हमलों से बचने तथा फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए कृषि मंत्रालय ने कृषि और सहकारिता विभाग के जरिए 1991-92 से ‘भारत में कीट प्रबंधन के लिए मजबूत और आधुनिक दृष्टिकोण’ नाम की एक योजना लागू की। इसके लिए आधारभूत सिद्धांत के रूप में एकीकृत कीट प्रबंधन और संपूर्ण फसल उत्पादन कार्यक्रम में पौधा संरक्षण रणनीति को अपनाया गया। 
इस कार्यक्रम के अंतर्गत मंत्रालय ने 28 राज्यों और एक केन्द्रशासित प्रदेश में 31 केन्द्रीय आईपीएम केन्द्र स्थापित किए। 12वीं पंचवर्षीय योजना में एक राष्ट्रीय कृषि विस्तार और प्रौद्योगिकी मिशन बनाया गया, जिसके अंतर्गत 2014-15 में एक पौधा संरक्षण और पौधों को रोगों से बचाने के लिए एहतियाती उपाय उपमिशन की शुरूआत की गई।
 

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