सामान्य ज्ञान
पिंडर उत्तराखंड की एक प्रमुख नदी है। पिंडर नदी इस राज्य के लोगों के जीवन और संस्कृति से गहरे जुड़ी हुई है। लेकिन अब इसके वजूद पर खतरा मंडरा रहा है। विकास के नाम पर इस क्षेत्र के जल, जंगल और जमीन को बर्बाद किया जा रहा है। इस नदी पर बनाए जा रहे बांधों का लगातार विरोध हो रहा है।
माना जाता है कि शिव पार्वती को विवाह के बाद पिंडर घाटी के रास्ते ही विदा करा कर ले गए थे। आज भी हिमालय क्षेत्र की बेटियां यह कामना करती हैं कि उनकी विदाई के रास्ते में पिंडर के दर्शन हों। पिंडर घाटी की खूबसूरती यहां के लोकगीतों में बसती है जिनमें पिंडर को दूध का झरना कहा गया है। पिंडर को काफी ऊंचाई से देखने पर भी इसकी तलहटी पर पड़े पत्थर साफ नजर आते हैं। अलकनंदा और पिंडर के संगम कर्णप्रयाग से दस किलोमीटर दूर मौजूद पिंडर घाटी ही राजजात का मुख्य मार्ग है।
एकशरण संप्रदाय क्या था?
मध्यकालीन असम के महानतम धार्मिक सुधारक शंकरदेव द्वारा स्थापित संप्रदाय एकशरण संप्रदाय के नाम से जाना गया।
एकेश्वरवाद इनकी शिक्षाओं का सार था। इन्होंने सर्वोच्च देवता की महिला सहयोगियों (जैसे की लक्ष्मी, राधा, सीता आदि) को मान्यता प्रदान की थी और निष्काम भक्ति पर बल दिया। शंकरदेव के संप्रदाय में भागवत पुराण या श्रीमद्भागवत को गुरुद्वारों में ग्रंथ साहिब की भांति इस संप्रदाय के मंदिरों की वेदी पर श्रद्धापूर्वक प्रतिष्ठित किया जाता था। शंकरदेव मूर्तिपूजा एवं कर्मकांड दोनों के विरोधी थे। ये अकेले कृष्णमार्गी वैष्णव संत थे, जो मूर्ति के रुप में कृष्ण की पूजा के विरोधी थे। असम के महानतम वैष्णव संत होने के कारण वे असम के चैतन्य के रूप में प्रसिद्ध है।