सामान्य ज्ञान

संगम काल
13-Nov-2020 2:22 PM
संगम काल

सुदूर दक्षिण भारत में कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र को  तमिल प्रदेश कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व था, जिनमें चेर, चोल और पांड्य प्रमुख थे। दक्षिण भारत के इस प्रदेश में तमिल कवियों द्वारा सभाओं तथा गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था। इन गोष्ठियों में विद्वानों के मध्य विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया जाता था, इसे ही  संगम  के नाम से जाना जाता है। 100 ई. से 250 ई. के मध्य दक्षिण भारत में तीन संगमों को आयोजित किया गया। इस युग को ही इतिहास में  संगम युग  के नाम से जाना जाता है। सर्वप्रथम इन गोष्ठियों का आयोजन पांड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया गया था, जिसकी राजधानी मदुरई थी।
संगम साहित्यों के अनुसार इस समय समाज में वर्ण व्यवस्था का स्पष्ट विभाजन नहीं था, फिर भी समाज में ब्राह्मणों को सम्मानजनक स्थान प्राप्त था। संगम युग में केवल ब्राह्मण ही यज्ञोपवीत धारण कर सकते थे। समाज के अन्य वर्ग के लोगों को उनके प्रांतीय मूल के नाम से जाना जाता था। जैसे- पार्वतीय क्षेत्र के लोगों को  कुटिन्जी, समुद्रतटीय क्षेत्र के लोगों को नैइडल आदि नामों से जाना जाता था। इस काल की प्रमुख जातियों के विषय में तोलकप्पियम नामक ग्रंथ में विस्तार से जानकारी दी गई है। इस ग्रंथ के अनुसार इस काल की प्रमुख जातियां थीं-  टुडियान, परैयान,  कादम्बन और पानन आदि।
ब्राह्मणों के अतिरिक्त  संगम साहित्य में समाज के चार वर्गों में विभाजन की जानकारी भी प्राप्त होती है। ये चार वर्ग थे-  अरसर  (राजपरिवार से जुड़ा व्यक्ति), बेनिगर (वणिक वर्ग) बल्लाल (बड़े पृथक वर्ग, जो कि प्रतिष्ठित थे) तथा वेल्लार (मज़दूर कृषक वर्ग)।
इस युग में विवाह को एक संस्कार माना जाता था और प्राचीन काल के समान ही आठ प्रकार के विवाह का प्रचलन था।  संगम काल  में दास प्रथा का प्रचलन नहीं था। उच्च एवं सम्पन्न वर्ग के लोग पक्की ईंटों तथा चूने द्वारा निर्मित भवनों की ऊपरी मंजिल में रहते थे तथा निचली मंजिल में व्यापारिक कार्य किया जाता था। 
तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही  संगम साहित्य कहा जाता है। तमिल अनश्रुतियों के अनुसार तीन परिषदों (संगम) का आयोजन हुआ था-  प्रथम संगम, द्वितीय संगम और तृतीय संगम। तीनों संगम कुल 9950 वर्ष तक चले। इस अवधि में लगभग 8 हजार 598 कवियों ने अपनी रचनाओं से  संगम साहित्य  की उन्नति की। कोई 197 पाण्ड्य शासकों ने इन संगमों को अपना संरक्षण प्रदान किया।  संगम साहित्य का रचनाकाल विवादास्पद है। इस विषय में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है, फिर भी जो संकेत मिलते हैं, उनके आधार पर यही अनुमान लगाया जा सकता है कि  संगम साहित्य का संकलन 100 से 600 ई. के मध्य हुआ होगा।  संगम साहित्य  में उल्लेखित नरकुल शब्द  स्मरण प्रश्न के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
 

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