विचार / लेख
भारत में लोग कोरोना महामारी के बावजूद त्योहारों के दौरान बहुत कम सावधानी बरत रहे हैं. महीनों के लॉकडाउन के बाद इस बीच कई प्रतिबंधों को हटाया जा चुका है, लेकिन महामारी अभी तक खत्म नहीं हुई है.
डॉयचे वैले पर मुरली कृष्णन की रिपोर्ट-
उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के अलवर जिले में एक फैक्ट्री में फोरमैन का काम करने वाले 42 वर्षीय रुद्रनाथ कहते हैं कि उन्हें अपने सहकर्मियों को हर समय अपने मास्क पहने रखने के लिए कहना बहुत बुरा लगता है. लोहे के कारखाने को फिर से शुरू हुए एक महीने से ज्यादा हो गया है. जून से सरकार धीरे-धीरे लोगों की आवाजाही और व्यापार पर लगे प्रतिबंधों में ढील दे रही है. राज्य भर से आने वाले आर्डर के कारण, कारोबार धीरे धीरे गति में आ रहा है. रुद्रनाथ कहते हैं, "कई कर्मचारी अब वायरस से नहीं डरते हैं. उन्हें लगता है कि खराब समय बीत चुका है और जल्द ही टीके के आने से बीमार होने के बावजूद इलाज हो सकेगा."
राजस्थान में, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में, मास्क पहनना अपवाद जैसा है. यहां अधिकांश लोग ऐसे व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि महामारी खत्म हो गई हो. कई लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की अनदेखी कर रहे हैं, और कोरोना नियमों को लेकर अधिकारियों के ढीले रवैये ने इस समस्या को बढ़ा दिया है.
कोरोना से डर नहीं
कुछ ऐसा ही भारत के केंद्रीय प्रांत मध्य प्रदेश में भी दिखता है, जैसे कि कोई महामारी है ही नहीं. इसके अतिरिक्त देहाती इलाकों में लोग बिना मास्क पहने बाजारों में काम, यात्रा और खरीदारी कर रहे हैं. मंदसौर जिले के पोस्टमास्टर प्रभात कुमार सिंह कहते हैं, "हम शहरों से आने वाले यात्रियों से अधिक सावधान रहते हैं. हम उनसे शारीरिक दूरी बनाए रखते हैं. ऐसे आपस में हमारे लिए चिंता की कोई वजह नहीं है."
भारत में अब तक कोरोना महामारी से 85 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं. भारत अमेरिका के बाद संक्रमण के मामले में दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है और अब तक इसकी वजह से 1,26,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. देश ने पिछले एक महीने में रोज होने वाले नए मामलों में गिरावट देखी है. हालांकि, भारत में अभी भी औसतन हर दिन लगभग 50,000 नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं.
आठ महीने पहले पूरे देश में लागू किए गए पहले लॉकडाउन के मुकाबले, अब लोगों के बीच कोरोना वायरस का डर कम होता नजर आ रहा है. यूरोलॉजिस्ट और सर्जन अनंत कुमार का कहना है, "जब सख्त लॉकडाउन था और जनता की आवाजाही पर रोक थी, तब लोग डरे हुए थे. उस समय भय व्यवहार को नियंत्रित करता था. अब ऐसा नहीं है."
अर्थव्यवस्था की ज्यादा चिंता
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारतीयों के बीच कोरोना संक्रमित होने के मुकाबले अर्थव्यवस्था और निजी आमदनी बड़ी चिंता का विषय है. इंफेक्शन विशेषज्ञ जैकब जॉन के अनुसार "भारत में अधिकतर लोग बीमार पड़ने की तुलना में खाना और दवाओं की उपलब्धता आवश्यक जैसी चीजों के बारे में ज्यादा चिंतित हैं." .
इंफेक्शन विशेषज्ञ जैकब जॉन के अनुसार "भारत में अधिकतर लोग बीमार पड़ने की तुलना में खाना और दवाओं की उपलब्धता आवश्यक जैसी चीजों के बारे में ज्यादा चिंतित हैं." .सरकार द्वारा नियुक्त वैज्ञानिकों की एक टीम ने हाल ही में दावा किया है कि भारत में कोविड-19 अपने चरम पर पहुंच चुका है और अगले साल फरवरी तक चलेगा.
वैज्ञानिक दल के अनुसार, देश में रोजाना कोरोना वायरस के नए संक्रमण में गिरावट जारी रहेगी और फरवरी 2021 तक महामारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है, बशर्ते सभी स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन किया जाए और सरकार आगे भी सोशल डिस्टेंसिग के नियमों के मामले में ढील न दे. कमिटी ने यह भी दावा किया कि भारत की लगभग 30 प्रतिशत आबादी ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है.
क्या भारत में समस्या और बढ़ेगी?
हालांकि भारत कोरोना संक्रमण के मामले में अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है, लेकिन प्रति दस लाख लोगों पर यहां मृत्यु दर काफी कम है. यह आंकड़ा प्रति 8.3 करोड़ के आसपास है, जबकि फ्रांस, स्पेन और ब्रिटेन जैसे देशों में यह संख्या 500 से 700 प्रति दस लाख के बीच है.
भारत सरकार का दावा है कि कोविड-19 से जुड़े कम मृत्यु दर, महामारी को सही तरीके से हैंडल करने में कामयाबी को दर्शाता है. इन आकड़ों का इस्तेमाल प्रतिबंधों को हटाने के फैसले के समर्थन में किया गया है. हालांकि, महामारी विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि उत्तर भारत में सर्दियों में बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण आने वाले महीनों में वायरस संक्रमण में तेजी आ सकती है. जॉन का कहना है कि "वायु प्रदूषण संक्रमण को बढ़ावा देता है. एरोसोल हवाई यात्रा में और बड़ी दूरी तक सफर करते हैं."
ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के पूर्व चिकित्सा अधीक्षक एम सी मिश्रा ने डीडब्ल्यू को बताया कि त्योहारों के समय भी वायरस फैल सकता है. "दीवाली जो रोशनी का त्योहार है, आने ही वाला है और हम पहले से ही लोगों को बाजारों और मॉलों में घूमते हुए देख रहे हैं. यह बीमारी बेहद संक्रामक है और हम सभी जानते हैं कि हम आने वाले कुछ महीनों में बीमारी में एक और उछाल देख सकते हैं, जैसा यूरोप अभी देख रहा है."(dw.com)