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जो बाइडन के सामने वो पांच चुनौतियां जिनसे उन्हें निपटना होगा
16-Nov-2020 11:07 AM
जो बाइडन के सामने वो पांच चुनौतियां जिनसे उन्हें निपटना होगा

- नैटली शरमैन

कोरोना वायरस महामारी के दौर में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप को हराकर जो बाइडन देश के 46वें राष्ट्रपति बनने की तैयारी कर रहे हैं.

अगले चार सालों में उनके सामने जो कई चुनौतियां पेश आने वाली हैं. उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कांग्रेस में रिपब्लिकन नेताओं को मनाना. कांग्रेस में कई रिपब्लिकन नेता हैं.

जानकार मानते हैं कि ये ऐसी स्थिति है कि हो सकता है कि व्हाइट हाउस में आने के बाद बाइडन जिन महत्वाकांक्षी योजनाओं पर काम करना चाह रहे हों, उन्हें पूरा न कर पाएं.

पद की ज़िम्मेदारी लेने के बाद उनके सामने विदेश नीति, कोरोना महामारी के अलावा अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फिर से मज़बूत करने जैसे मुद्दे हैं. अर्थव्यवस्था के मामले में उनके सामने पांच महत्वपूर्ण सवाल होंगे.

पहला- वो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बचाएंगे कैसे?

कई महीनों से अमेरिकी अर्थशास्त्री कोरोना वायरस राहत पैकेज बढ़ाने के लिए सरकार से गुज़ारिश करते आ रहे हैं. लेकिन इस मामले में एक गतिरोध बरक़रार है क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी के नेता डेमोक्रैटिक पार्टी के नेताओें के सुझाए ख़र्च पर सहमत नहीं हो रहे हैं. इस मामले में ट्रंप ने भी अपनी पार्टी के नेताओं पर इसके लिए दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन इसका कुछ लाभ हुआ नहीं.

रिपब्लिकन नेताओं ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वो बाइडन के व्हाइट हाउस में क़दम रखने से पहले इस मुद्दे पर किसी नतीजे तक पहुंचेंगे ताकि इसे ट्रंप की अंतिम जीत में तब्दील किया जा सके.

लेकिन अगर किसी कारण से ये पैकेज डेमोक्रैटिक नेताओं की आशाओं के अनुरूप न हुआ या फिर अर्थव्यवस्था में रिकवरी के संकेत भी लड़खड़ाने लगे तो बाइडन क्या करेंगे? वो कितने बड़े आर्थिक पैकेज की मांग करेंगे?

अपने चुनावी अभियान में जो बाइडन ने छात्रों के लोन माफ़ करने, पेंशनधारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा योजना के तहत पैसा बढ़ाने और छोटे व्यवसायों को आर्थिक मदद देने की योजना बनाई थी.

उन्होंने स्वच्छ और सतत ऊर्जा, बुनियादी ढांचे में विकास और सार्वजनिक परिवहन सेवा में भी 20 खरब डॉलर के निवेश की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी.

लेकिन उन्हें अपनी योजना पर अमल करने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं क्योंकि ख़र्चों के बारे में डेमोक्रैट्स के लाए गए प्रस्तावों पर वो कड़ा रुख़ अख़्तियार कर सकते हैं. ऐसे में बाइडन के लिए रास्ता आसान नहीं होगा.

दूसरा- आर्थिक असमानता को कैसे ख़त्म करेंगे?

बीते पांच दशकों में अमेरिका में आय असमानता अपने उच्चतम स्तर पर है. उदारवादियों का कहना है कि सरकार को अमीरों पर लगने वाला टैक्स बढ़ाने पर विचार करना चाहिए. हाल में जो सर्वे हुए हैं उनमें पता चला है कि इस प्रस्ताव को जनता के बीच व्यापक रूप से समर्थन मिला है.

अपने चुनाव अभियान में बाइडन ने कहा कि वो साल 2017 में टैक्स में कटौती करने के ट्रंप के फ़ैसले को कुछ हद तक बदलेंगे. साथ ही उन्होंने वादा किया कि वो बड़ी कंपनियों पर लगने वाले टैक्स को 21 फ़ीसदी से बढ़ाकर 28 फ़ीसदी तक करेंगे.

कई जानकारों का मानना है कि ऐसे करके वो अगले एक दशक में सरकार के लिए 30 खरब डॉलर तक जुटा सकते हैं. आने वाले वक़्त में जब कोरोना महामारी के कारण अमेरिका का राष्ट्रीय ऋण बढ़ेगा उस वक़्त ये पैसा सरकार के काम आ सकता है.

लेकिन बाइडन की योजनाएं उनकी पार्टी के अन्य नेताओं द्वारा सुझाई गई योजनाओं की तरह दूरगामी असर वाली नहीं लगतीं. साथ ही टैक्स बढ़ाने की किसी भी योजना का रिपब्लिकन ज़रूर विरोध करेंगे जिनका मानना है कि टैक्स बढ़ाया तो इसका बुरा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.

जब अर्थव्यवस्था की हालत पहले ही बहुत अच्छी न हो, क्या बाइडन अपनी योजनाओं पर आगे बढ़ेंगे?

तीसरा- जलवायु परिवर्तन पर काम कैसे करेंगे?

जब बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए अपनी पहली योजना को लोगों के सामने रखा तब जलवायु परिवर्तन कार्यकर्ता इससे निराश हुए.

लेकिन कुछ वक़्त बाद वो एक नए और व्यापक प्रस्ताव के साथ आए जिसे उन्होंने अपने कुछ आलोचकों के साथ मिलकर तैयार किया था. इसे किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की तरफ़ से पेश किया गया अब तक का सबसे महत्वाकांक्षी प्रस्ताव कहा गया.

इसमें सतत ऊर्जा के रिसर्च में चार खरब डॉलर के निवेश की बात की गई थी. साथ ही गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण के नियमों को कड़ा करने, अधिक प्रदूषण करने वाली कंपनियों पर नकेल कसने, देश में 500,000 इलेक्ट्रिक कार चार्जिंग स्टेशन बनाने और साल 2035 तक बिजली संयंत्रों से कार्बन प्रदूषण पूरी तरह ख़त्म करने जैसे क़दमों की बात की गई थी.

इस योजना को रिपब्लिकन नेताओं ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को "क़ब्र तक पहुंचाने" की योजना करार दिया. लेकिन यदि बाइडन इसे सीमित रूप में भी लागू कर पाते हैं या फिर जिन क़ानूनों की वो बात कर रहे हैं उन्हें लागू कर पाते हैं तो इस मुद्दे पर वो ट्रंप प्रशासन द्वारा लिए गए फ़ैसलों को बदलने वाले नेता कहलाएंगे.

ट्रंप प्रशासन ने सार्वजनिक ज़मीन पर तेल की ड्रिलिंग को इजाज़त दी, प्रदूषण रोकने के नियमों को हटाया और जलवायु परिवर्तन रोकने की वैश्विक मुहिम पेरिस जलवायु समझौते से भी बाहर निकलने का फ़ैसला किया.

चौथा- ट्रंप के शुरू किए ट्रेड वॉर को ख़त्म करेंगे?

व्यापार के मामले में आक्रामक रुख़ अपनाते हुए अपने सहयोगियों को निशाने पर लेना, अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठनों की आलोचना करना, आयात पर नए बॉर्डर टैक्स लगाना - डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीति के अहम लक्षण थे.

इसमें कई संदेह नहीं कि बाइडन इस मामले में बीते चार सालों में किए ट्रंप प्रशासन के काम को बदल सकते हैं. वो वैश्विक मंच पर सहयोगी और नेतृत्व लेने वाले देश के रूप में अमेरिका की भूमिका को फिर से मज़बूत करने की दिशा में काम कर सकते हैं, लेकिन इसमें वो ट्रंप से कितना अलग होंगे?

चीन के मामले में (जिसके साथ ट्रंप ने एक तरह से ट्रेड वॉर छेड़ रखा है) बाइडन ने "आक्रामक" कार्रवाई का वादा किया है. ऐसी उम्मीद नहीं की जा रही कि चीनी सामान पर ट्रंप ने जो आयात शुल्क बढ़ाया है उसे बाइडन जल्द हटाएंगे.

बीबीसी संवाददाता करिश्मा वासवानी ने चुनाव से पहले लिखा था, "भले अमेरिका में राष्ट्रपति बदल जाएं, इस मामले में चीन को अमेरिका से किसी तरह की रियायत की कोई उम्मीद नहीं है."

अमेरिका के पूर्व उपराष्ट्रपति ने भी आयात शुल्क के आइडिया का समर्थन किया है. उनका कहना है कि जो देश जलवायु और पर्यावरण के लिए अपने दायित्वों को पूरा नहीं करते उन पर लगने वाले आयात शुल्क को बढ़ाया जाना चाहिए.

ट्रंप के बयानों की तर्ज़ पर उनका कहना है कि अमेरिकी सरकार को देश में ही बना सामान ख़रीदना चाहिए. ऐसे में अमेरिका के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों को मानना मुश्किल हो सकता है.

लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि अंतरराष्ट्रीय संगठनों और लंबे समय से अमेरिका के सहयोगी कनाडा और यूरोप के नेताओं पर अब ज़ुबानी हमले कम हो सकते हैं.

लेकिन कुछ मुश्किलें बरक़रार रह सकती हैं और ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौता होना मुश्किल हो सकता है. ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते का फ़ैसला ब्रेक्सिट के बाद आयरलैंड सीमा और ब्रिटेन के बीच की समझ पर निर्भर करेगा.

बाइडन पहले ही कह चुके हैं कि इस तरह का समझौता उनके लिए प्राथमिकता नहीं है.

पांचवां- बड़ी तकनीकी कंपनियों से कैसे निपटेंगे?

अमेरिका में मौजूद बड़ी तकनीकी कंपनियों के काम करने के तरीक़ों को लेकर दुनिया के कई देशों में जांच चल रही है. अमेरिका में वामपंथी और दक्षिणपंथी नेता कॉम्पिटिशन और कंज़्यूमर की निजता को लेकर कड़े नियमों की मांग कर रहे हैं.

भ्रामक और ग़लत जानकारी न छिपाने और फ़र्ज़ी सूचनाओं को अपने प्लेटफ़ॉर्म में जगह देने के लिए बाइडन फ़ेसबुक और दूसरी कंपनियों की आलोचना कर चुके हैं.

उन्होंने पहले कहा था कि वो उस अमेरिकी क़ानून को ख़ारिज करने के लिए तैयार हैं जो तकनीकी कंपनियों के प्लेटफ़ॉर्म्स पर पोस्ट होने वाली भ्रामक जानकारियों की ज़िम्मेदारी से इन कंपनियों को बचाता है.

लेकिन उन्हें और उनकी रनिंगमेट कमला हैरिस को सिलिकॉन वैली से व्यापक समर्थन मिला है और इस मामले में बाइडन ख़ामोश ही रहे हैं. उदाहरण के लिए, अभियान के बारे में उनकी वेबसाइट पर इससे जुड़े किसी तरह के मुद्दों का कोई ज़िक्र नहीं है.

कुछ मामलों में उन्हें कांग्रेस के समर्थन की ज़रूरत होगी. लेकिन कॉम्पिटिशन से जुड़े जांच का आदेश देने, निजता से जुड़े नियमों को लागू करने के बारे में फ़ैसला लेने जैसे क़दम राष्ट्रपति ख़ुद उठा सकते हैं. साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों के बारे में लिए जा रहे फ़ैसलों (जैसे किसी देश में कंपनी से अधिक टैक्स मांगने) पर भी राष्ट्रपति फ़ैसला ले सकते हैं.

लेकिन एक तरफ़ कई मुद्दों पर फ़ैसला लेने के लिए उन्हें कांग्रेस में रिपब्लिकन नेताओं को मनाना होगा, दूसरी तरफ़ डेमोक्रेट नेताओं के उदारवादी मॉडल पर खरा उतरने की चुनौती भी उनके सामने होगी. ऐसे में क्या वो तकनीकी कंपनियों के लिए कड़े क़ानून ला पाएंगे या फिर ये मुद्दा बस ऐसे ही पीछे छूट जाएगा?(bbc)

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