विचार / लेख

'मसला मेरी बीवी में नहीं, मुझमें है और अब मैं इलाज करवा रहा हूं'
18-Nov-2020 8:34 AM
'मसला मेरी बीवी में नहीं, मुझमें है और अब मैं इलाज करवा रहा हूं'

- अज़ीज़ुल्लाह ख़ान

"मेरी पत्नी में कोई कमी नहीं है, डॉक्टरों ने मेरे टेस्ट कराए तो मालूम हुआ कि कमी मुझ में है. मैं इज़ोस्पर्मिया (Azoospermia) नाम की बीमारी का शिकार हूं."

अताउल्लाह (बदला हुआ नाम) की शादी दो साल पहले हुई थी मगर उनकी पत्नी गर्भवती नहीं हो पा रहीं थीं.

उन्होंने पहले दो साल तक तो अपनी पत्नी का इलाज करवाया क्योंकि उन्हें एक मामूली सा इंफ़ेक्शन था मगर यह कोई ऐसी समस्या नहीं थी जिसके कारण वो गर्भवती नहीं हो सकती थीं.

आख़िरकार अताउल्लाह ने डॉक्टरों के सुझाव पर अपना टेस्ट करवाया. रिपोर्ट आने पर पता चला कि अताउल्लाह एज़ोस्पर्मिया के शिकार हैं. एज़ोस्पर्मिया उस मेडिकल अवस्था को कहते हैं जब सिमेन में स्पर्म नहीं होता है और इसका इलाज करवाए बग़ैर पिता बनना संभव नहीं.

अताउल्लाह पाकिस्तान के क़बायली इलाक़े में रहते हैं.

क़बायली रिवाजों के उलट

अताउल्लाह के अनुसार जब उनके मेडिकल टेस्ट के नतीजे आए और उनमें इस बीमारी का पता चला तो क़बायली रिवाजों के ठीक उलट उन्होंने अपनी पत्नी को साफ़-साफ़ बता दिया कि कमी ख़ुद उनमें है और अब वो अपना इलाज करवा रहे हैं.

अताउल्लाह पेशावर स्थित एक मेडिकल संस्थान के इन्फ़र्टिलिटी विभाग में अपना इलाज करवा रहे हैं.

उनका कहना है, "मुझे और कोई लैंगिक बीमारी नहीं है बस स्पर्म की कमी का मसला है. मुझे अपना इलाज करवाने में कोई हिचकिचाहट नहीं है और ना ही मैंने इसे अपनी अहंकार का मुद्दा बनाया. अगर कोई दिक़्क़त है तो उसे इलाज के ज़रिए हल किया जा सकता है."

पाकिस्तान में जगह-जगह दीवारों पर मर्दाना कमज़ोरी और बांझपन के इलाज के बारे में इश्तहार नज़र आते हैं लेकिन कभी आपने सोचा है कि ऐसा क्यों है, क्योंकि दूसरी बीमारियों के बारे में तो इस तरह का कोई इश्तहार तो दीवारों पर नहीं दिखता.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी सबसे बुनियादी वजह यह है कि इस तरह की बीमारियों का इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं होता है और सस्ते इलाज का झांसा देकर नीम-हकीम लोग कम पढ़े लिखे आम लोगों की मासूमियत का फ़ायदा उठाते हैं.

सामाजिक समस्या

इसके अलावा पाकिस्तान में पिता बनने में असमर्थ मर्दों के इलाज करवाने को एक सामाजिक समस्या समझा जाता है और अक्सर मर्द या तो इलाज करवाने में शर्माते हैं या फिर इसे अपने अहंकार से जोड़ कर देखते हैं.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों से जब बीबीसी ने बात की तो लगभग सभी का यही कहना था कि मर्द अपनी पत्नियों का तो सालों इलाज करवाते हैं लेकिन ख़ुद अपना बुनियादी टेस्ट भी नहीं करवाते हैं.

पाकिस्तान में अब पहली मर्तबा पेशावर के हयातआबाद मेडिकल कॉम्पलेक्स में संतान पैदा करने की अक्षमता और लैंगिक बीमारियों का विभाग क़ायम किया गया है और उसमें विशेषज्ञ डॉक्टरों को बहाल किया गया है.

पाकिस्तान में इस तरह के विशेषज्ञों की कमी है. इस विभाग में तैनात डॉक्टर मीर आबिद जान ने बीबीसी को बताया कि आम तौर पर संतान पैदा करने की अक्षमता और लैंगिक बीमारियों का संबंध यूरोलोजी से होता है और उसके लिए उच्च शिक्षा हासिल करना ज़रूरी है और पाकिस्तान में इस वक़्त ऐसे डॉक्टरों की बहुत कमी है.

उनके अनुसार निजी स्तर पर कुछ अस्पताल हैं जो इस तरह का इलाज करते हैं लेकिन सरकारी स्तर पर पहली मर्तबा पेशावर के सरकारी अस्पताल में इसका इलाज शुरू किया गया है.

डॉक्टर मीर आबिद के अनुसार उनके पास संतान पैदा करने की अक्षमता के जो मर्द मरीज़ आते हैं, उनमें 90 फ़ीसद ऐसे होते हैं तो सालों तक पहले अपनी बीवी का इलाज करवाने पर ज़ोर देते हैं.

उन्होंने बताया कि चंद मर्द ऐसे भी आए जो अपनी कमी को समझे बग़ैर बच्चे की ख़्वाहिश के कारण दो-दो और तीन-तीन शादियां कर चुके थे.

जानकारों का कहना है कि दुनिया भर में औसतन 15 फ़ीसद जोड़े संतान पैदा करने की अक्षमता का शिकार होते हैं, लेकिन पाकिस्तान में इसकी तादाद ज़्यादा है. डॉक्टर आबिद के अनुसार लैंगिक बीमारी कई कारणों से हो सकती है जिनमें मानसिक स्थिति भी शामिल है.

वो कहते हैं, "कम उम्र के लोग भी इसके शिकार हो सकते हैं और 40 से अधिक उम्र के 50 प्रतिशत से ज़्यादा लोग विभिन्न तरह की लैंगिक बीमारी के शिकार होते हैं और किसी न किसी वजह से शाीरिक संबंध नहीं बना पाते हैं."

उन्होंने कहा कि पाकिस्ता में यह समस्या ज़्यादा गंभीर है क्योंकि यहां यौन शिक्षा नहीं है और यहां डॉक्टरों के इलाज की कोई बाक़ायदा सुविधा नहीं है.

डॉक्टर आबिद के अनुसार पाकिस्तान में कामोत्तेजक दवाओं पर पाबंदी है क्योंकि सरकार का कहना है कि इन दवाओं को ग़लत उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और दूसरे यह कि समाज में भी इन दवाओं को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है.

लेकिन यह समस्या का हल नहीं है. वो कहते हैं, "इस तरह की दवाएं पेशेवर डॉक्टरों की सलाह से मरीज़ों को दी सकती हैं. अगर ग़लत इस्तेमाल की बात है तो पाकिस्तान में ऐसी कई दवाएं हैं जिनका ग़लत इस्तेमाल होता है लेकिन उसको रोकने और उनकी ख़रीद-बिक्री को नियमित करने के लिए क़दम उठाने की ज़रूरत है."

आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि ज़्यादातर मर्द संतान पैदा करने की अपनी अक्षमता के इलाज के लिए तैयार नहीं होते हैं. डॉक्टर आबिद के अनुसार 90 प्रतिशत मर्द ऐसे होते हैं जो सालों तक अपनी पत्नियों का इलाज करवाते हैं लेकिन कभी यह सोचते तक नहीं कि उन्हें अपना भी कम से कम एक टेस्ट करा लेना चाहिए.

वो कहते हैं, "अब हालात थोड़े बदल रहे हैं क्योंकि कुछ ऐसे नौजवान सामने आए हैं जो शादी से पहले अपना टेस्ट कराने आते हैं. वो चाहते हैं कि शादी से पहले सारे टेस्ट करा लें ताकि शादी के बाद कोई परेशानी ना हो."

उनके अनुसार "अब ऐसे परिवार भी सामने आ रहे हैं जहां परिवार ही कहता है कि शादी से पहले लड़का और लड़की दोनों के ज़रूरी टेस्ट करवाना चाहिए ताकि अगर कोई परेशानी है तो वो पहले ही पता चल जाए और शादी के बाद इसको लेकर किसी तरह की समस्या ना खड़ी हो."

डॉक्टर आबिद कहते हैं कि जो मर्द अपना टेस्ट कराने के लिए तैयार नहीं होते उनकी पत्नी से कहा जाता है कि वो अपने पति को टेस्ट कराने के लिए तैयार करें.

उनके अनुसार दूसरे विकसित देशों में कपल थेरेपिस्ट होते हैं जो लड़के-लड़की को पूरी तरह गाइड करते हैं, बीमारी और उसके इलाज के बारे में सारी जानकारी देते हैं.(bbc)

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