सामान्य ज्ञान
नागकेसर एक सीधा सदाबहार पेड़ जो देखने में बहुत सुंदर होता है। यह द्विदल अंगुर से उत्पन्न होता है। पत्तियां इसकी बहुत पतली और घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है। इसमें चार दलों के बड़े और सफेद फूल गर्मियों में लगते हैं जिनमें बहुत अच्छी महक होती है। लकड़ी इसकी इतनी कड़ी और मजबूत होती है कि काटने वाले की कुल्हाडिय़ों की धारें मुड़ मुड़ जाती है; इसी वजह से इसे वज्रकाठ भी कहते हैं। फलों में दो या तीन बीज निकलते हैं। हिमालय के पूर्वी भाग, पूर्वी बंगाल, असम, म्यांमार, दक्षिण भारत, सिंहल आदि में इसके पेड़ बहुतायत से मिलते हैं।
नागकेसर के सूखे फूल औषधि, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं। इनके रंग से प्राय: रेशम रंगा जाता है। श्रीलंका में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है। तमिलनाडु में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं। इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं। लकड़ी ऐसी अच्छी होती है कि केवल हाथ से रंगने से ही उसमें वार्निश की सी चमक आ जाती है। बैद्यक में नागकेसर कसेली, गरम, रुखी, हलकी तथा ज्वर, खुजली, दुर्गंध, कोढ, विष, प्यास, मतली और पसीने को दूर करने वाली मानी जाती है। खूनी बवासीर में भी वैद्य लोग इसे देते हैं। इसे नागचंपा भी कहते हैं।
मिजोरम ने नागकेसर को अपना राज्य वृक्ष घोषित किया है। यह प्राचीन वृक्ष भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी पाया जाता है। इसकी सहायता से विभिन्न प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं।