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पाकिस्तान,23 नवम्बर | पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की मंत्री शिरीन मज़ारी ने एक फ़र्ज़ी ख़बर पर फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की तुलना नाज़ियों से की है जिसके बाद उनकी काफ़ी किरकिरी हो रही है.
शिरीन मज़ारी पाकिस्तान की मानवाधिकार मामलों की मंत्री हैं.
मज़ारी ने ट्वीट कर कहा था कि राष्ट्रपति मैक्रों मुसलमानों के साथ वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं जैसा दूसरे विश्व युद्ध में यहूदियों के साथ किया गया था.
हालांकि बाद में मज़ारी ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया.
Read link 4 source of story - if fake then get retraction of story published which I gave as link @FranceinPak instead of calling my tweet "fake"! Btw why are nuns allowed to wear their "habit" in public places but Muslim women not their hijab? Discrimination, n'est ce pas? pic.twitter.com/C7ApMN92EJ
— Shireen Mazari (@ShireenMazari1) November 22, 2020
पाकिस्तान में कुछ ऑनलाइन लेखों में दावा किया गया था कि मैक्रों की सरकार फ़्रांस में नए बिल के तहत मुस्लिम बच्चों के लिए पहचान नंबर जारी करेगी.
हालांकि बाद में इन लेखों को भी सुधारा गया और सफ़ाई में कहा गया कि यह पहचान नंबर केवल मुसलमान बच्चों के लिए नहीं होगा बल्कि सभी मज़हब के बच्चों के लिए है.
बाद में मज़ारी ने ट्वीट कर कहा कि लेखों में सुधार के बाद उन्होंने भी अपना ट्वीट डिलीट कर दिया है.
फ़्रांस के दूतावास से संदेश
पाकिस्तानी मंत्री ने कहा कि फ़्रांस के दूतावास से उन्हें संदेश आया कि वेबसाइट ने अपने लेख की ग़लती सुधार ली है जिसके बाद उन्होंने भी अपना ट्वीट डिलीट कर दिया.
पाकिस्तान की मंत्री की इस टिप्पणी को लेकर फ़्रांस के विदेश मंत्रालय ने इमरान ख़ान की सरकार से मांग की थी कि मज़ारी से बयान वापस लेने के लिए कहा जाए.
मज़ारी ने अपने ट्वीट में कहा था, "नाज़ियों ने जो यहूदियों के साथ किया वही मैक्रों मुसलमानों के साथ कर रहे हैं. फ़्रांस में मुसलमान बच्चों को अलग से पहचान नबंर दिया जाएगा. यह वैसा ही है जैसे यहूदियों को पीला स्टार पहनने पर मजबूर किया गया था."
मज़ारी की इस टिप्पणी पर फ़्रांस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता एग्नेस वोन ने कहा, "यह नफ़रत भरी भाषा शर्मनाक झूठ है. ऐसी भाषा से नफ़रत और हिंसा ही बढ़ती है. ऐसे ज़िम्मेदारी वाले पद से इस तरह के बयान शोभा नहीं देते. हम ऐसी सोच को ख़ारिज करते हैं. फ़्रांस ने पाकिस्तानी दूतावास को अपनी आपत्ति पहुंचा दी है. पाकिस्तान को ऐसे बयानों को लेकर कड़ा क़दम उठाना चाहिए."
हालांकि मुस्लिम दुनिया में राष्ट्रपति मैक्रों निशाने पर हैं.
'अतिवादी इस्लामी गतिविधियों'
मैंक्रों की सरकार ने मुस्लिम नेताओं के सामने 'अतिवादी इस्लामी गतिविधियों' पर रोक लगाने के लिए एक 'चार्टर ऑफ रिपब्लिकन वैल्यू' पेश किया है और इस पर सहमति जताने के लिए कहा है.
पाकिस्तान में मैक्रों को लेकर विरोध-प्रदर्शन भी हुए हैं.
अक्टूबर महीने में पाकिस्तान की संसद में फ़्रांस के ख़िलाफ़ एक प्रस्ताव भी पास किया गया था, जिसमें फ़्रांस से अपने राजदूत को वापस बुलाने की मांग की गई थी.
बांग्लादेश में भी मैक्रों और फ़्रांस को लेकर विरोध-प्रदर्शन हुए हैं.
मज़ारी की टिप्पणी को लेकर पाकिस्तान के सोशल मीडिया पर भी ख़ूब प्रतिक्रिया आई है. कई लोगों ने शिरीन मज़ारी का समर्थन किया है तो कइयों ने विरोध किया है.
पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता कपिल देव ने ट्वीट कर कहा है, "अपने देश की तुलना में मज़ारी की चिंता पश्चिम के देशों में मुसलमानों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर है. इसलिए उनकी नज़र विदेश मंत्री बनने पर थी लेकिन मिला मानवाधिकार मंत्रालय. कई बार मज़ारी कन्फ़्यूज कर जाती हैं कि वो विदेश मंत्री हैं या मानवाधिकार मंत्री."
Shireen Mazari talks about Muslims' human rights in Western countries more than within Pakistan. This has a reason as she was eyeing on Foreign Ministry portfolio but was given Human Rights instead. So she confusingly considers herself as Foreign Human Rights Minister.
— Kapil Dev (@KDSindhi) November 22, 2020
बच्चों के लिए पहचान नंबर
पाकिस्तानी संसद में फ़्रांस से पाकिस्तानी राजदूत बुलाने की माँग भी बाद में मज़ाक बनकर रह गई थी.
संसद ने सरकार से राजदूत वापस बुलाने को तो कह दिया लेकिन बाद में पता चला कि फ़्रांस में अभी पाकिस्तान का कोई राजदूत है ही नहीं.
फ़्रांस में पाकिस्तान के आख़िरी राजदूत मोइन-उल-हक़ थे जो चार महीने पहले वापस आ गए और उसके बाद से किसी की नियुक्ति ही नहीं हुई.
मोइन-उल-हक़ को चीन का राजदूत बना दिया गया था. जब संसद में फ़्रांस से पाकिस्तानी राजदूत को वापस बुलाने के लिए कहा गया तब वहां विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी भी मौजूद थे.
फ़्रांस में जिस बिल पर पाकिस्तान की मंत्री शिरीन मज़ारी ने आपत्ति जताई है उस बिल में उन बच्चों के लिए पहचान नंबर जारी करने का प्रावधान है जिनके परिवार उन्हें स्कूल नहीं भेजते हैं.
अगर यह बिल लागू होता है तो इसका किसी धर्म विशेष के बच्चों से नाता नहीं है बल्कि सभी धर्म के बच्चों के लिए है, जो स्कूल नहीं जाते हैं.
फ़्रांस के गृह मंत्री जेराल्ड डर्मेनिन ने अख़बार ल फिगारो को इसी हफ़्ते अपने इंटरव्यू में इस बिल का बचाव किया था और कहा था कि बच्चों को कट्टर इस्लामी बनने से बचाना ज़रूरी है.
मैक्रों मुस्लिम देशों के निशाने पर क्यों हैं?
इमैनुएल मैक्रों ने पिछले दिनों फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली एब्दो में पैग़ंबर मोहम्मद पर छपे कार्टून का समर्थन किया था. मैक्रों ने फ़्रांसीसी सेक्युलरिज़्म का बचाव किया जिसके बाद से वो कई मुस्लिम बहुल देशों के निशाने पर हैं.
अक्तूबर महीने की शुरुआत में पैग़ंबर मोहम्मद पर छपे कार्टून को लेकर फ़्रांस में एक शिक्षक का सिर कलम कर दिया गया था.
उस शिक्षक को श्रद्धांजलि देते हुए मैक्रों ने कहा था कि वो कार्टून के मामले में नहीं झुकेंगे.
इसके बाद तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने भी फ़्रांसीसी सामानों के बहिष्कार की अपील की थी.
Hallmark of a leader is he unites human beings, as Mandela did, rather than dividing them. This is a time when Pres Macron could have put healing touch & denied space to extremists rather than creating further polarisation & marginalisation that inevitably leads to radicalisation
— Imran Khan (@ImranKhanPTI) October 25, 2020
टेलीविज़न पर प्रसारित अपने भाषण में अर्दोआन ने कहा था, ''जिस तरह से दूसरे विश्व युद्ध के बाद यहूदियों को निशाना बनाया जा रहा था उसी तरह से मुसलमानों के ख़िलाफ़ अभियान चल रहा है. यूरोप के नेताओं को चाहिए कि वे फ़्रांस के राष्ट्रपति को नफ़रत भरे अभियान रोकने के लिए कहें.''
25 अक्टूबर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ट्वीट कर फ़्रांस के राष्ट्रपति पर इस्लाम पर हमला करने का आरोप लगाया था.(https://www.bbc.com/hindi)