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BBC 100 Women 2020: सना मरीन - फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री जो अनाथालय में पलीं
25-Nov-2020 3:28 PM
BBC 100 Women 2020: सना मरीन - फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री जो अनाथालय में पलीं

बीबीसी ने 2020 के लिए दुनिया भर की 100 प्रेरक और प्रभावशाली महिलाओं की अपनी सूची तैयार की है. इस साल चयनित ये 100 महिलाओं की सूची विशेष तौर पर उन लोगों को दर्शा रही है जो इस अशांत वक्त के दौरान बदलाव का नेतृत्व करते हुए फ़र्क ला रही हैं. लिस्ट में फ़िनलैंड की प्रधानमंत्री सना मरीन का नाम भी शामिल है.

सभी की नज़रें फिनलैंड की प्रधानमंत्री और महिलाओं के नेतृत्व वाले गठबंधन के पहले कार्यकाल पर टिकी हैं. कोरोना वायरस के दौरान दिखाए गए शांत और निर्णायक नेतृत्व के लिए इस सरकार की तारीफ़ की गई है.

लेकिन, लैंगिक अल्पसंख्यक समूहों का कहना है कि इस सरकार की अपरंपरागत पृष्ठभूमि से क्या वाकई "पिछड़े" कानूनों में बदलाव करने में मदद मिलेगी.

प्रधानमंत्री कार्यालय से 200 मीटर की दूरी पर स्थित हाउस एस्टेट्स में प्रधानमंत्री सना मरीन सरकार की खासी महत्वपूर्ण समानता योजना को लेकर एक बैठक की अध्यक्षता करने वाली हैं.

वह अपने हनीमून से लौटने के एक हफ़्ते बाद ही काम में जुट गई हैं. इसी साल अगस्त में महामारी के बीच उन्होंने शादी की जिसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी थी. इसके बाद उन्होंने एक छोटा सा ब्रेक लिया और एक गोपनीय जगह पर हनीमून के लिए गईं. उनकी दो साल की एक बेटी भी है.

उनके इंस्टग्राम अकाउंट पर उनकी शादी की फोटो देखना सभी के लिए हैरानी भरा था. सना मरीन लंबी बाजू वाली एक साटन की वेडिंग ड्रेस में थीं. उनके साथ उनके पति मार्कस रेकोनेन मौजूद थे. मार्कस एक पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी हैं और 16 साल से दोनों साथ हैं.

ये तस्वीर मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर की गई. इससे पहले सना मरीन ने अपनी बेटी को स्तनपान कराते हुए एक तस्वीर डाली थी.

युवा पीढ़ी का नेतृत्व
दर्जनों रिपोर्ट्स फिनलैंड के हाउस ऑफ एस्टेट्स के बाहर उनका इंतज़ार कर रहे हैं जहां गठबंधन सरकार की बैठकें होती हैं.

सना मरीन कहती हैं, ''मैं ये पहले से सोचकर नहीं आई हूं कि मुझे उनसे क्या कहना है. वो मुझसे कुछ भी पूछ सकते हैं और मैं ईमानदारी से उसका जवाब दूंगी.''

हो सकता है कि इस हफ़्ते उनकी निजी ज़िंदगी के बारे में कई सवाल किए जाएं?

वो दृढ़ता से जवाब देती हैं, ''नहीं, वो मुद्दों के बारे में जानना चाहते हैं. यहां बहुत कुछ चल रहा है. हो सकता है कि वो आखिर में इससे जुड़े कुछ सवाल कर लें.''

कुछ रिपोर्टरों ने मास्क पहन रखे हैं और कुछ ने लंबे माइक हाथ में लिए हुए हैं. जैसे ही सना मरीन उनकी तरफ आती हैं तो वो सावधान हो जाते हैं.

वो बैठक में पहुंचने वालीं पहली नेता थीं. वो सही थीं कि फिनलैंड का मीडिया उनसे मुद्दों पर बात करेगा.

चार घंटे बाद बैठक ख़त्म होने पर वो फिर से मीडिया के सामने आईं. वो बैठक से बाहर निकलने वालीं आखिरी नेता थीं.

सना मरीन की पहली वायरल तस्वीर करीब 200 दिन पहले ली गई थी जब दिसंबर 2019 में उनके कार्यकाल का पहला दिन था.

उस तस्वीर में फिनलैंड की नई और सबसे युवा प्रधानमंत्री 34 साल की सना मरीन बड़ी-सी मुस्कान खड़ी हुई थीं. उनके साथ उनकी सरकार की अन्य नेता भी मौजूद थे.

वो सभी महिलाएं थीं. जब ये तस्वीर जारी की गई तो पांच पार्टियों की सिर्फ़ एक नेता 34 साल से ज़्यादा उम्र की थीं.

अपनी कैबिनेट के साथ पोडियम पर खड़े होकर उन्होंने फोटोग्राफर्स के समूह से कहा कि वो युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं और वो अंतरराष्ट्रीय मीडिया का स्वागत करती हैं. ये दुनिया को दिखाने का मौका है कि ''हम फिनलैंडवासी कौन हैं''.

ये संदेश उन तक भी पहुंचा जो पारंपरिक राजनीति से बाहर हैं.

गिटारिस्ट टॉम मोरेलो ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर सना मरीन और उनकी गठबंधन सरकार की साथी महिलाओं की एक तस्वीर शेयर करते हुए उन्हें अपने रॉक बैंड 'रेज अगेंस्ट द मशीन' का फैन बताया था. उन्होंने इस पोस्ट को लाइक कर कई अर्थों में इसकी पुष्टि की थी.

सना मरीन
फिनलैंड और लैंगिक समानता
वर्ष 1906 में फिनलैंड दुनिया में पहला ऐसा देश बना जहां महिलाओं को पूर्ण मतदान और संसदीय अधिकार दिए गए. ये एक ऐसी उपलब्धि थी जो कई पश्चिमी देशों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भी हासिल नहीं की थी.

इसके अगले साल 19 महिलाएं संसद में चुनकर आईं. साल 2000 में फिनलैंड में टारया हलोनेन पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गईं. इसके बाद साल 2003 में पहली महिला प्रधानमंत्री के तौर पर अनेली यटेनमकी को चुना गया.

इसके बाद साल 2019 में सारा मरीन को उनकी सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ने एक और महिला प्रधानमंत्री के तौर पर चुना. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अंटी रिने की जगह ली, जिन्हें पोस्टल स्ट्राइक से निपटने को लेकर आलोचना के चलते पद से हटना पड़ा.

सना मरीन बीबीसी की 2020 की सबसे प्रेरणादायक और प्रभावशाली महिलाओं में से एक हैं.

कोविड-19 से लड़ाई
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन महीनों बाद 11 मार्च को कोविड-19 को महामारी घोषित किया था. लेकिन, सना मरीन की कैबिनट वायरस के आते ही तैयार हो गई थी.

16 मार्च तक फिनलैंड में ना सिर्फ़ लॉकडाउन था बल्कि यहां इमरजेंसी पावर्स एक्ट को लेकर भी हंगामा होने लगा था. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आखिरी बार इस्तेमाल किया गया ये क़ानून सरकार को मजदूरी को विनियमित करने की ताकत देता है.

इस कदम की मीडिया में आलोचना की गई लेकिन पोल्स में लोगों ने इसका समर्थन किया.

फिनलैंड के लोगों को साफतौर पर निर्देश दिया गया कि जहां संभव हो अपने घर पर ही रहें. हल्के लक्षणों वाले किसी भी व्यक्ति को टेस्ट कराने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

लैबरोटेरीज़, डॉक्टर्स और क्लीनिक्स के बीच सामंजस्य बनाने को लेकर नियमित तौर पर ऑनलाइन बैठकें हुईं.

सना मरीन और उनकी चार शीर्ष कैबिनेट सहयोगी हर हफ़्ते कोरोना वायरस को लेकर मीडिया और आम जनता को जानकारी देतीं और उनके सवालों के जवाब देतीं. एक के पास बच्चों के सवालों के जवाब देने की ज़िम्मेदारी थी.

ताइवान, जर्मनी और न्यूज़ीलैंड के प्रमुखों के समकक्ष उनकी तारीफ़ की गई. कुछ लोगों ने ये भी सवाल किया कि क्या महिला नेता संकट की स्थिति को बेहतर संभालती हैं.

'हमें सीखने पर ध्यान देना है'
सना मरीन बीबीसी से कहती हैं, ''ऐसे भी देश हैं जहां पुरुष नेतृत्व है और वहां अच्छा काम हुआ है. इसलिए मुझे नहीं लगता कि ये लैंगिक मसला है. मुझे लगता है कि हमें बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले देशों से सीखने पर ध्यान देना चाहिए.''

55 लाख की जनसंख्या वाले फिनलैंड में सिर्फ़ 370 मौतें हुई हैं जिसकी दर प्रति दस लाख की जनसंख्या पर 60 मौतों की है.

ब्रिटेन में इससे 10 गुना ज़्यादा मौतें हुई हैं.

सना मरीन कहती हैं, ''मुझे लगता है कि फिनलैंड में जो हमने सीखा, वो ये है कि पूरी जानकारी के इस्तेमाल के लिए वैज्ञानिकों की सुनना और अनिश्चितता की स्थिति में कड़े फैसला लेना बहुत महत्वपूर्ण है.''

''हमारे यहां विश्वास पर आधारित समाज है. लोग सरकार पर भरोसा करते हैं, वो लोकतांत्रिक आदेश पर भरोसा करते हैं.''

इमरजेंसी एक्ट के प्रतिबंधों को जून में तय समय से पहले ही हटा दिया गया. लेकिन, गठबंधन सरकार को एक और झटका तब लगा जब उप प्रधानमंत्री और सेंटर पार्टी लीडर कट्री कूलमूनी को एक घोटाले के कारण इस्तीफा देना पड़ा. वो सना मरीन की कैबिनेट में 33 साल की सबसे युवा नेता थीं. सितंबर में उनकी जगह किसी और महिला ने ले ली.

गठबंधन में असहमतियां
बाहरी तौर पर ये गठबंधन एकजुट दिखता है लेकिन इसमें कुछ निजी असहमतियां भी हैं.

शिक्षा मंत्री और लेफ्ट गठबंधन की नेता 33 साल की ली एंडर्सन कहती हैं, ''कोई भी पार्टी इसे अपने तरीक़े से नहीं चला सकती.''

''कभी-कभी इस तरह के तनाव होते हैं जिनके कारण बंद दरवाज़ों के पीछे समझौते करने पड़ते हैं. मुझे लगता है कि कुछ लोगों की ये कहने की आदत होती है कि क्योंकि तुम महिला हो तो कुछ खास तरह की नीतियां बनाओगी या उन पर तुम्हारे लिए सहमति बनाना आसान होगा क्योंकि तुम सभी महिलाएं हो. लेकिन, ये सही नहीं है.''

राजनेता से पहले की दुखभरी ज़िंदगी

सना मरीन ने पहले कभी ये सोचा भी नहीं था कि वो कैसेरांटा (फिनलैंड में प्रधानमंत्री आवास) में अपने पति और दो साल की बेटी एमा के साथ रहेंगी.

वह कहती हैं, ''राजनीति और राजनेता मुझे बहुत दूर दिखते थे. मैं जहां रहती थी इससे बहुत ही अलग दुनिया थी.''

उन्होंने 2016 में एक निजी ब्लॉग में लिखा था, ''फिनलैंड के दूसरे लोगों की तरह मेरे परिवार की भी कई दुखभरी कहनियां हैं.''

सना मरीन फिनलैंड के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक छोटे से शहर पिरकाला में पली-बढ़ी हैं. उन्हें उनकी मां और मां के प्रेमी ने पाला है. उनकी मां अपने शराबी पति से अलग हो गई थीं. वह अपने परिवार को ''रेनबो फैमिली'' कहती हैं. लेकिन, उनके घर में आर्थिक स्थितियां अच्छी नहीं रहीं.

अपनी मां के बाद सना मरीन एक अनाथालय में पाली-बढ़ीं. बहुत कम उम्र से ही सना मरीन रिटेल से जुड़ी नौकरियां करने लगी थीं ताकि अपने परिवार की मदद कर सकें.

ऐसा नहीं था कि सना मरीन में बचपन से ही नेतृत्व की क्षमताएं नज़र आने लगी थीं. पिरकाला हाई स्कूल में उनकी शिक्षिका पासी कर्विनेन उन्हें एक ''औसत विद्यार्थी'' बताती हैं जिन्हें 15 साल की उम्र में अपने ग्रेड्स में सुधार के लिए ज़्यादा मेहनत करने के लिए कहा गया था.

सना मरीन की राजनीति में रूचि 20 साल की उम्र में पैदा हुई जब उन्होंने सोचा कि ना सिर्फ़ अपनी बल्कि कई और लोगों की ज़िंदगियों में सुधार लाना संभव है.

सना मरीन कहती हैं, ''मरीन सरकार की समानता योजना के पीछे यही प्रेरणा है जिसमें माता-पिता को देखभाल की ज़िम्मेदारी समान रूप से संभालने के लिए प्रोत्साहन, घरेलू हिंसा पर नकेल कसने, वेतन में लैंगिक असमानता खत्म करने और गरीब व प्रवासी परिवारों से आने वाले बच्चों की शिक्षा तक पहुंच के लिए सुधार संबंधी नीतियां शामिल हैं.''

समलैंगिक अधिकारों पर राय
समलैंगिकों से जुड़े क़ानून में भी बदलाव करने की योजना है. वर्तमान में इस क़ानून के मुताबिक वैध लैंगिक पहचान के लिए कई सालों की मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग से गुजरना होगा. अगर वो बांझ नहीं हैं तो उन्हें नसबंदी करानी होगी.

सना मरीन कहती हैं, ''सभी को अपनी पहचान चुनने का अधिकार है और ये योजना इसमें मदद करेगी.''

क्या वो समलैंगिक महिलाओं को महिलाएं मानती हैं?

वह दृढ़ता से कहती हैं, ''लोगों को पहचान देना मेरा काम नहीं है. लोगों का काम खुद को पहचान देना है. मैं उनके बारे में कहने वाली कौन होती हूं.''

संभावित है कि वो किसी सरकारी की पहली ऐसी प्रमुख हैं जो लैंगिक पहचान को लेकर खुले तौर पर अपने विचार सामने रखती हैं.

समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से इस क़ानून में बदलाव की मांग कर रहे हैं. हालांकि, अब भी कुछ लोगों को संदेह है कि सरकार इस क़ानून में बदलाव कर पाएगी.

एक्टिविस्ट कैसपर किविस्तो कहते हैं, ''पिछली जिन भी सरकारों ने इसे बदलने की कोशिश की है उन्हें कट्टरपंथी ताकतों के दबाव में पीछे हटना पड़ा है.'' कैसपर ने इस मसले पर सलाह देने के लिए गठबंधन के नेताओं से मुलाकात भी की थी.

वह कहते हैं, ''हमारे यहां देश की सबसे युवा महिला प्रमुख हैं लेकिन, इतना होना ही काफी नहीं है. किसी बड़े बदलाव के लिए उनके पीछे पूरे सिस्टम का समर्थन होना ज़रूरी है.''

लेकिन इस बार गठबंधन की पांचों पार्टियां सुधार के पक्ष में हैं और ये विधेयक अगले साल संसद में पेश किया जाएगा.

सना मरीन कहती हैं, ''फिनलैंड में हमेशा से गठबंधन की सरकार रही है. इसलिए हम अलग-अलग पार्टियों और विचारों के बीच सहमति बनाने के लिए समझौते करने के आदी हैं. मैं इसे एक मजबूती मानती हूं लेकिन इससे हमेशा तेज़ी से काम नहीं हो सकता है.''

तीन महिलाएं
नस्लभेद को लेकर आलोचना
ब्लैक लाइव्स मैटर्स अभियान के दौरान उन्हें आलोचना का सामना भी करना पड़ा.

फिनलैंड में रहने वाले कुछ काले लोगों ने सोशल मीडिया पर राय जाहिर की कि सरकार की समानता योजना में कई तरह की असमानता की बात की गई है लेकिन नस्लभेद के शिकार लोगों की समस्याओं को इसमें जगह नहीं मिली है.

यूरोपीय परिषद की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक फिनलैंड में अफ़्रीकी मूल के 63% लोगों ने लगातार नस्लवादी उत्पीड़न का सामना किया है. ये दर यूरोप में सबसे ज़्यादा है.

फिनलैंड की संसद में इस समय सिर्फ़ एक काली महिला सांसद हैं.

फिनलैंड की ग्रीन लीग की पुरानी नेता मरिया ओहिसालो कहती हैं कि सरकार को सार्वजनिक जीवन में विविधता के लिए और काम करना होगा.

वह कहती हैं, ''पांच शिक्षित श्वेत महिलाएं अब भी पूरी तरह प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं. अगर हम यहां वाकई समानता की बात करें तो वो नहीं दिखती है.''

सना मरीन कहती हैं, ''वाकई हमारी पृष्ठभूमि अब भी उन संभावनाओं को प्रभावित करती है जो हमारे जीवन में मौजूद हैं और ऐसा नहीं होना चाहिए.''

वह कहती हैं कि इन्हें दूर करना उनके लिए सिर्फ़ एक काम नहीं है बल्कि ये फिनलैंड के लोगों के लिए है.

वह जोर देती हैं कि समानता कार्यक्रम नस्लीय अल्पसंख्यकों की स्थिति में सुधार करने में मदद करेगा.

सना मरीन कहती हैं, ''हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि इस कार्यक्रम को हकीकत कैसे बना सकते हैं. प्रधानमंत्री के तौर पर ये मेरा मिशन है.'' (bbc.com)

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