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रोशनी एक्ट: जम्मू-कश्मीर के जिस 'क़ानून' से लगा फ़ारूक़ अब्दुल्लाह पर घोटाले का आरोप
27-Nov-2020 9:23 AM
रोशनी एक्ट: जम्मू-कश्मीर के जिस 'क़ानून' से लगा फ़ारूक़ अब्दुल्लाह पर घोटाले का आरोप

नई दिल्ली, 27 नवंबर | जम्मू-कश्मीर डिविज़नल कमिश्नर कार्यालय की ओर से बुधवार को सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण करने वाले सात लोगों की नयी सूची जारी हुई है. इसमें पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का दफ़्तर, पीडीपी के एक नेता और एक पूर्व मंत्री के संबंधी, पुलिस विभाग के सेवानिवृत आईजी और एसएसपी शामिल हैं.

वहीं स्थानीय मीडिया के मुताबिक़, सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण के मामले में ही सीबीआई ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर में कांग्रेसी नेता एवं पूर्व मंत्री रहे ताज मोहिउद्दीन के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है.

जम्मू-कश्मीर में ग़ैर-क़ानूनी ढंग से ज़मीन अतिक्रमण का मामला इन दिनों गर्माया हुआ है. अतिक्रमण करने वालों की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्लाह और उमर अब्दुल्लाह का नाम भी शामिल है. हालांकि फ़ारूक़ अब्दुल्लाह और उमर अब्दुल्लाह ने इन आरोपों को ख़ारिज किया है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, श्रीनगर और जम्मू में जिस ज़मीन पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का मुख्यालय बना हुआ है वह भी विवादास्पद रोशनी ऐक्ट के तहत हासिल किया गया था.

दरअसल, जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मंगलवार को उन लोगों की एक सूची जारी की है जिन पर आरोप है कि रोशनी ऐक्ट के तहत मिली ज़मीन से ज़्यादा ज़मीन पर इन लोगों ने क़ब्ज़ा जमा लिया है.

फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने विवादास्पद रोशनी ऐक्ट के तहत अपनी संलिप्ता पर बीबीसी हिंदी से कहा, "इन लोगों को हार का डर सता रहा है, इसलिए ये लोग ऐसी तरकीबें इस्तेमाल कर रहे हैं. वे हमें झुकाना चाहते हैं. ना तो श्रीनगर और ना ही जम्मू में बना मेरा घर रोशनी ऐक्ट के अधीन है. वे झूठा मामला बना रहे हैं."

जब उनसे हमने ये जानना चाहा कि किन लोगों को हार का डर सता रहा है तो उन्होंने कहा, "आप उन लोगों को जानते हैं, आप जानते हैं..."

बीते सोमवार को रोशनी ऐक्ट के तहत लाभ लेने वाले लोगों की सूची सार्वजनिक हुई, जिसमें पीडीपी सरकार में मंत्री रहे हसीब दराबू और उनके तीन संबंधी, कांग्रेस पार्टी के राज्य कोषाध्यक्ष केके अमला और उनके परिवार के तीन सदस्यों के नाम हैं.

इसके अलावा इस सूची में सज्जाद किचलू और हारून चौधरी सहित नेशनल कॉन्फ्रेंस के चार नेताओं के नाम शामिल हैं. जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कथित तौर पर 400 लोगों को रोशनी ऐक्ट का लाभार्थी बताया है और इससे इलाके़ में एक तरह की बेचैनी देखने को मिल रही है.

क्या है रोशनी एक्ट

2018 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के नेतृत्व वाले राज्य प्रशासनिक परिषद ने रोशनी ऐक्ट को निरस्त कर दिया था. रोशनी ऐक्ट, 2001 यानी जम्मू एंड कश्मीर स्टेट लैंड (वेस्टिंग ऑफ़ ऑनरशिप टू द ऑक्युपेंट्स) ऐक्ट को 2001 में लागू किया गया था, इसे जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने लागू किया था. इस ऐक्ट के तहत सरकारी स्वामित्व वाली ज़मीन का अतिक्रमण करने वाले लोगों को ज़मीन के स्वामित्व का अधिकार बेचा गया था.

इस क़ानून का मुख्य उद्देश्य राज्य में बिजली संकट को दूर करने के लिए हाइडल पावर प्रोजेक्ट्स बनाने के लिए फ़ंड जुटाना था. इस उद्देश्य के लिए ही 1990 से पहले से सरकारी ज़मीन पर ग़ैर-क़ानूनी ढंग से अतिक्रमण करने वाले लोगों को ज़मीन के स्वामित्व की बिक्री की गई थी.

जब रोशनी ऐक्ट लागू किया गया था तब की राज्य सरकार के अनुमान के मुताबिक़, 25,448 करोड़ रुपये की 20,64,972 कनाल (एक कनाल- 505.85 वर्ग मीटर) ज़मीन पर लोगों ने अतिक्रमण कर रखा था.

रोशनी ऐक्ट के लागू होने के बाद कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर ज़मीन की ख़रीद बिक्री हुई थी. इसके बाद लोगों ने लाखों रुपये ख़र्च करके घर, दुकान और दूसरी तरह का निर्माण किया.

'ज़मीन-जेहाद' तक का नाम दिया गया

फ़रवरी, 2020 तक क़रीब 30 हज़ार लोगों को रोशनी ऐक्ट से फ़ायदा हुआ. फ़रवरी 2020 में जम्मू स्थित दक्षिणपंथी समूह आईकेकेजेयूटीटी ने आरोप लगाया कि इस क़ानून के ज़रिए राज्य में ज़मीन-जेहाद को अंजाम दिया गया है और इसके ज़रिए जम्मू क्षेत्र में हिंदुओं की बहुलता को प्रभावित करने की कोशिश की गई है.

वहीं 2011 में एसके भल्ला की ओर से उनके वकील शेख़ शकील की जनहित याचिका और 2014 में अंकुश शर्मा की दाख़िल याचिका में भी जम्मू-कश्मीर में सरकारी ज़मीन और वन भूमि पर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण का आरोप लगाया गया था. इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की चीफ़ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस राजेश बिंदल की डिविज़न बेंच ने पिछले महीने अधिकारियों को खरी-खोटी सुनाई.

अदालत के आदेश के बाद उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने रोशनी ऐक्ट, 2001 के तहत लिए गए सभी फ़ैसलों को असंवैधानिक क़रार देते हुए रद्द कर दिया. ऐसे में जिन तीस हज़ार लोगों को इस ऐक्ट से लाभ मिला था, उन सबके सामने ज़मीन की मिल्कियत खो देने का संकट खड़ा है.

2014 में अतिक्रमण वाली ज़मीनों के स्वामित्व हस्तांतरित करने में गड़बड़ियों को लेकर भारत सरकार के सीएजी ने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की थी. रिपोर्ट में ये बात सामने आयी थी कि 348,160 कनाल ज़मीन के बदले सरकारी ख़ज़ाने में केवल 76.24 करोड़ रुपये ही जमा हुए जबकि ये रक़म 317.54 करोड़ रुपये होनी चाहिए थी.

हसीब दरबू ने बीबीसी से बताया कि रोशनी ऐक्ट की स्कीम का फ़ायदा लेने वाले लोगों की सूची में मेरा नाम शामिल है लेकिन यह आरोप बकवास है.

लाभार्थियों का क्या कहना है

हसीब दरबू ने बीबीसी से कहा, "1956 में मेरे दादा ने उत्तम चंद खुराना से चार कनाल ज़मीन ख़रीदी थी. महाराजा हरि सिंह ने उन्हें लीज़ दी थी. उन्होंने उस वक़्त 56,000 रुपये चुकाकर ज़मीन ख़रीदी थी. उन्होंने इस ख़रीद के लिए स्टांप शुल्क के अलावा अन्य सरकारी भुगतान भी किया था. उन्होंने वह चार कनाल ज़मीन मेरी मां को दे दी. बाद में ज़मीन का बंटवारा हुआ. मुझे उसमें एक कनाल ज़मीन मिली. यह वास्तविकता है. इसमें घोटाला कहां है? हमारे पास सारे दस्तावेज़ हैं. जब मेरे दादाजी का निधन हुआ तो वह ज़मीन मेरे पिता जी के पास रही."

उन्होंने यह भी बताया, "1980 में लीज़ भुगतान की समयसीमा ख़त्म हो गई. उस वक़्त कुछ भी नहीं हुआ. इसके बाद हमने 1990 में लीज़ के लिए आवेदन दिया. लेकिन फिर कुछ नहीं हुआ. 2000 में कुछ कार्रवाई की गई. हमने फिर श्रीनगर डेवलपमेंट अथारिटी को लिखा लेकिन हमें कोई आदेश नहीं मिला. 2004 में रोशनी ऐक्ट लागू था, ऐक्ट के सेक्शन ए 13 में कहा गया था अगर आपके पास ज़मीन है तो लेकिन आप उसका लाभ नहीं ले रहे हैं तो लाभ ले सकते हैं. फिर हमने आवेदन दिया. कोई दूसरा विकल्प नहीं था. हमें भुगतान करने को कहा गया. हमने सात लाख 50 हज़ार रुपये चुकाए. 2007 में हमारे नाम ज़मीन हुई. इसमें घोटाला कहां है?"

मीडिया की ख़बरों में कहा गया है कि रोशनी ऐक्ट के ज़रिए जम्मू-कश्मीर में वन विभाग की सैकड़ों एकड़ ज़मीन ग़ैर-क़ानूनी तरीक़ों से प्रभावशाली राजनेताओं, कारोबारियों, नौकरशाहों और न्यायपालिका के बड़े पदों पर बैठे लोगों को हस्तांतरित की गई है और इसे 25 हज़ार करोड़ रुपये से ज़्यादा का घोटाला बताया गया है.

पिछले महीने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने रोशनी ऐक्ट, 2001 के तहत ज़मीन आवंटन के सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. सीबीआई ने इस मामले में कई एफ़आईआर दर्ज की हैं.

अदालत ने लाभार्थियों की सूची भी मांगी है. हालांकि नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस पार्टी की सरकार के दौरान समय-समय पर इस क़ानून में बदलाव भी हुए थे. बहरहाल, इस क़ानून के निरस्त होने के बाद से लाभार्थियों को ऐक्ट के तहत मिली ज़मीन वापस करनी होगी, तब तक इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी होगी. (bbc)

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