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भीमा कोरेगाँव मामले में अभियुक्त 83 वर्षीय स्टेन स्वामी ने एनआईए कोर्ट से कहा है कि वो माओवादी नहीं हैं.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार बुजुर्ग पादरी और आंदोलनकारी स्वामी ने कहा, ''ऐसे लोगों के लिए काम करना, जिन पर मुक़दमा चल रहा हो, जो माओवादी हो भी सकते हैं और नहीं भी...ये मुझे माओवादी नहीं बना देता.''
याचिका में कहा गया है कि राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) ने जिस 'पर्सिक्यूटेड पोलिटिकल प्रिज़नर्स सोलिडैरिटी' कमेटी को सीपीआई (माओवादी) का संगठन बताया है वो देश और झारखंड के बेहतरीन मानवाधिकार संगठनों में से एक है, जो ज़रूरतमंद लोगों को क़ानूनी मदद मुहैया कराती है.
याचिका में कहा गया है, ''ऐसा कहीं नहीं कहा गया है कि माओवादियों को क़ानूनी सहायता देना अपराध है. संविधान में कहीं ये भी नहीं कहा गया है कि माओवाद के अभियुक्त व्यक्ति को अपना पक्ष रखने का अधिकार नहीं है.''
इससे पहले स्टेन स्वामी ने जेल में स्ट्रॉ और सिपर के इस्तेमाल की इजाज़त माँगते हुए याचिका दायर की थी, जिस पर अदालत ने जेल के सम्बन्धित मेडिकल अधिकारी से जवाब माँगा था.
वहीं, एनआईए ने कहा था कि उसके पास स्टेन स्वामी की स्ट्रॉ और सिपर नहीं है, इसलिए वो इन्हें ये सामान नहीं दे सकती है.
83 वर्षीय स्टेन स्वामी भीमा-कोरेगाँव हिंसा मामले में महाराष्ट्र की तलोजा जेल में बंद हैं.
बुजुर्ग स्टेन स्वामी पार्किन्सन्स डिज़ीज़ नाम की बीमारी से ग्रसित हैं. यह तंत्रिका तंत्र से जुड़ा एक डिसऑर्डर है जिससे पीड़ित मरीज़ के शरीर में अक्सर कँपकँपाहट होती है. मरीज़ का शरीर स्थिर नहीं रहता और संतुलन नहीं बना पाता.
ऐसे में स्टेन स्वामी ने एक याचिका दायर करके अपील की थी कि बीमारी की वजह से उन्हें खाना और पानी का ग्लास पकड़न में परेशानी होती है इसलिए उन्हें जेल में 'स्ट्रॉ' और 'सिपर' इस्तेमाल करने की इजाज़त दी जाए.
इससे पहले, पिठले महीने डीई कोठालिकर ने यूएपीए का हवाला देते हुए स्वास्थ्य के आधार पर दायर की गई स्टेन स्वामी की ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज कर दी थी. (bbc.com)