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अमेरिका: बाइडन 1.0, ओबामा 3.0 से अलग कैसे हो पाएगा? जानिए क्या होंगी चुनौतियाँ?
27-Nov-2020 6:34 PM
अमेरिका: बाइडन 1.0, ओबामा 3.0 से अलग कैसे हो पाएगा? जानिए क्या होंगी चुनौतियाँ?

अमेरिका , 27 नवम्बर | 'अमेरिका इज़ बैक' अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपनी जीत के बाद जनता को धन्यवाद देते हुए इसी शब्द के साथ शुरुआत की.

इस मौक़े पर उन्होंने जनता से अपनी नई टीम का परिचय करवाते हुए कहा, "मेरी टीम के पास बेजोड़ अनुभव और उपलब्धियाँ हैं, ये टीम इस विचार को भी दर्शाती है कि हम पुरानी सोच या पुरानी आदतों के साथ नई चुनौतियों का सामना नहीं कर सकते हैं."

जनवरी में जो बाइडन अमेरिका के नए राष्ट्रपति बनेंगे.

फ़िलहाल उन्होंने अपनी ट्रांज़िशन टीम का एलान किया है, जिसमें एंटनी ब्लिंकेन, जॉन केरी, अवरिल हेन्स, जेक सुलिवन, लिंडा थॉमस-ग्रीनफ़ील्ड जैसे अनुभवी नाम शामिल हैं - जो ओबामा प्रशासन से भी जुड़े रहे हैं.

बाइडन की नई टीम पर ओबामा की छाप

यही वजह है कि जानकार बाइडन प्रशासन पर ओबामा प्रशासन की छाप को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े कर रहे हैं.

जॉन केरी ने 2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किया था. हालांकि ट्रंप ने बाद में उससे हटने का फ़ैसला किया. उन्हें बाइडन ने जलवायु पर राष्ट्रपति के विशेष दूत की भूमिका के लिए चुना है.

एवरिल हैन्स नेशनल इंटेलिजेंस संभालने वाली पहली महिला बनेंगी. वो भी पूर्व में ओबामा प्रशासन के साथ जुड़ी रही है.

एंटनी ब्लिंकेन, बाइडन प्रशासन में अमेरिका के नए विदेश मंत्री होंगे. वे ओबामा प्रशासन में उप-विदेश मंत्री और उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके हैं. तब बाइडन उप राष्ट्रपति थे.

जेक सुलिवन, बतौर अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार टीम में चयनित किए गए हैं. सुलिवन, ओबामा के दूसरे कार्यकाल में बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार थे.

लिंडा थॉमस-ग्रीनफ़ील्ड को संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका का दूत नामांकित किया गया है. उन्होंने भी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ काम कर रखा है. वे 2013 से 2017 तक अफ़्रीकी मामलों की उप-विदेश मंत्री रह चुकी हैं.

लेकिन एक न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में उन्होंने साफ़ कह दिया है कि बाइडन प्रशासन 'ओबामा प्रशासन का तीसरा टर्म' नहीं होगा. उनकी टीम में ओबामा प्रशासन से जुड़े लोगों को जगह इसलिए मिली है क्योंकि वो अमेरिकी लोगों और डेमोक्रैटिक पार्टी के स्पेक्ट्रम को दर्शाते हैं.

अपने प्रशासन को ओबामा प्रशासन की तीसरा टर्म ना कहने के पीछे उन्होंने वजहें भी गिनाई. उन्होंने कहा, "हम ओबामा-बाइडन प्रशासन की तुलना में एक अलग और नई दुनिया का सामना कर रहे हैं."

बाइडन 1.0 और अमेरिका की अंदरूनी राजनीति

बाइडन की इस दलील में आख़िर कितना दम है.

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की डिप्लोमेटिक एडिटर इंद्राणी बागची कहती हैं, "जो बाइडन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है रिपब्लिकन के दबदबे वाली यूएस कांग्रेस. दूसरी चुनौती है कोविड-19 महामारी को क़ाबू में करना जिसपर क़ाबू पाने में ट्रंप विफल रहे हैं. तीसरी चुनौती है अमेरिका की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना. ये तीनों अंदरूनी दिक़्क़तें हैं, जिससे बाइडन को पहले निपटना होगा. इन समस्याओं पर जो बाइडन कैसे काम करते हैं, उसी के आधार पर आंकलन होगा की बाइडन 1.0 में कैसा काम हुआ है."

आब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के स्टडीज़ विभाग के डायरेक्टर और किंग्स कॉलेज, लंदन में इंटरनेशनल रिलेशन के प्रोफ़ेसर हर्ष पंत भी इंद्राणी की बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, "जो बाइडन के सामने चुनौती ये है कि अमेरिका के बदले 'राजनीतिक परिपेक्ष' में वो ख़ुद को कितना प्रासंगिक बनाए रख पाते हैं. ये 'राजनीतिक परिपेक्ष' घरेलू और वैश्विक दोनों हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि बाइडेन आते ही दोनों परिपेक्ष में एक विस्तृत ख़ाका तैयार कर अपनी टीम के साथ साझा करें. और टीम आगे उसी का अनुसरण करेगी."

हर्ष पंत कहते हैं, "यूएस कांग्रेस में डेमोक्रैट बहुत शक्तिशाली नहीं हैं. सीनेट में 50:50 का आँकड़ा रहने वाला है. तो कई मुद्दों पर जिसमें आपको सीनेट की मंज़ूरी की आवश्यकता होगी, वहाँ रिपब्लिकन बाइडन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं."

ओबामा 3.0 के मायने

ओबामा 3.0 का मतलब क्या है? इंद्राणी इसके जवाब में कहती हैं, "ओबामा 3.0 का मतलब है बाइडन ईरान के साथ परमाणु समझौते दोबारा शुरू करेंगे, वो रूस के साथ आर्म्स कंट्रोल अग्रीमेंट पर दोबारा से बात करेंगे, चीन के साथ दोबारा से जलवायु परिवर्तन जैसे मामलों में मिल कर अमेरिका काम करेगा.

इंद्राणी आगे कहती हैं, "बाइडन 1.0, ओबामा 3.0 साबित होगा, इसके लिए ज़रूरी है कि ईरान रूस और चीन जैसे देश भी अमेरिका को आज के परिपेक्ष में वैसे ही देखें. पर आज चीन अमेरिका के साथ दोबारा बात करना चाहेगा? इस पर पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. चीन का रवैया देख कर लग रहा है कि वो अमेरिका से समझौता करने को राज़ी नहीं है. उसे लगता है कि उसने तो कोरोना महामारी की जंग जीत ली है."

इंद्राणी के मुताबिक़ पिछले चार सालों में चीन काफ़ी बदल चुका है. वो दुनिया का एकमात्र ऐसी ताक़तवर अर्थव्यवस्था है, जिसने महामारी पर ना सिर्फ़ क़ाबू पा लिया है बल्कि ग्रोथ भी दर्ज किया है.

चीन के साथ संबंध

चीन के राष्ट्रपति भी दुनिया के उन चंद नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने देरी से जो बाइडन को बधाई दी थी. चीन की सरकार न्यूज़ एजेंसी के मुताबिक़ राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने बधाई संदेश में कहा, "चीन-अमेरिका संबंधों के स्वस्थ और स्थिर विकास को बढ़ावा देना न केवल दोनों लोगों के बुनियादी हितों में है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आम अपेक्षा को भी पूरा करता है"

साफ़ है कि दोनों देशों के बीच संबंध इतने बिगड़ चुकें हैं कि शुभकामानों का अंदाज़ भी पहले जैसा नहीं रहा.

इसलिए इंद्राणी मानती हैं कि केवल बाइडन की नई टीम को देख कर ये कहना की वो ओबामा 3.0 होंगे या बाइडन 1.0 होंगे? ये जल्दबाज़ी होगा.

फिर भी वो मानती हैं कि अमेरिका में शायद ही आज ऐसा कोई हो जिसके पास बाइडन से ज़्यादा विदेश नीति का अनुभव हो. लेकिन अगर घरेलू राजनीति में बाइडन कहीं पिछड़ जाएँगे, तो विदेश नीति पर इतनी पकड़ होने के बाद वो ज़्यादा कुछ हासिल नहीं कर पाएँगे.

यही है आज की तारीख़ में दुनिया का सबसे बड़ा बदलाव जिसके तरफ़ बाइडन ने अपने इंटरव्यू में भी इशारा किया है.

हर्ष पंत इसी बात को अलग अंदाज़ में कहते हैं. उनका मानना है कि ट्रंप भले ही अमेरिका का चुनाव हार गए हों लेकिन 'ट्रम्पिज़्म' वहाँ अब भी है. इसी से लड़ना अभी जो बाइडन की चुनौती है.

ऐसे में बाइडन चीन के साथ ओबामा प्रशासन जैसे रिश्ते रखने की कोशिश करें भी तो कैसे?

हर्ष पंत कहते हैं, "चीन के साथ हाल के दिनों में अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जो आक्रमक रुख़ दिखाया है, उसे बाइडन को भी अपनाना पड़ा. उन्होंने शी जिनपिंग के लिए 'ठग' जैसे शब्द का भी प्रयोग किया. ट्रंप अपने चुनाव प्रचार के दौरान कह चुके थे कि बाइडन चीन के सामने कमज़ोर पड़ जाएँगे, तो जो बाइडन को दिखाना पड़ा कि वो भी चीन के ख़िलाफ़ आक्रमक रहेंगे."

ट्रंप की नीतियों का ऐसा ही दबाव और दबदबा बाइडन के प्रचार के दौरान व्यापार नीति में देखने को मिला.

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में 'अमेरिका फ़र्स्ट' का नारा दिया था.

तो बाइडन ने भी अपने अभियान में 'मेड इन अमेरिका फ़ॉर अमेरिका' की बात कही. इससे ये साफ़ हो जाता है कि वो आने वाले दिनों में अमेरिका की ट्रेड पॉलिसी ओबामा के कार्यकाल की ट्रेड पॉलिसी से अलग होगी.

बहुपक्षीय समझौते

ऐसी ही बात दूसरे बहुपक्षीय समझौतों पर लागू होती है जैसे ईरान के साथ का परमाणु समझौता.

ट्रंप प्रशासन के दौरान अमेरिका के दूसरे देशों के साथ रिश्ते बहुत बदले हैं. अमेरिका-ईरान इसका एक उदाहरण है.

वैसे ही दुनिया में भी कई देश एक दूसरे के क़रीब आए हैं. जैसे अमेरिका की मदद से इसराइल और संयुक्त अरब अमीरात में नई दोस्ती हुई है. बहरीन और सऊदी अरब भी इसराइल के क़रीब आते नज़र आ रहे हैं.

लेकिन अमेरिका और ईरान के रिश्ते द्विपक्षीय ही नहीं बल्कि कई मायनों में बहुपक्षीय भी है.

साल 2015 में ईरान ने अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, रूस और जर्मनी के साथ समझौता (जेसीपीओए) किया था जिसके मुताबिक़ ईरान अपने परमाणु कार्यक्रमों को सीमित करने पर सहमति जताई थी. उसके बदले में तय हुआ था कि उस पर लगे संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाएंगे. लेकिन ट्रंप ने इस समझौते को नहीं माना और अमेरिका को अलग कर लिया.

अब अगर बाइडन दोबारा से इस समझौते को लागू करना चाहते हैं तो उन्हें ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी जैसे देशों के साथ दोबारा से बैठ कर बातचीत करनी होगी. हो सकता है उन पर यूएई, सऊदी अरब जैसे देशों का अमेरिका पर दवाब अब ज़्यादा हो. बाइडन ये कहते रहे हैं कि वो अपने पारंपरिक दोस्तों को साथ लेकर चलना चाहते हैं.

ये एक उदाहरण है. ऐसे कई दूसरे बहुपक्षीय मसले हैं जिसमें बाइडन चाह कर भी ओबामा प्रशासन की बातों को अमल में नहीं ला सकेंगे.

इसलिए आज के दौर में बाइडन की नीति, ट्रंप की नीतियों का ही विस्तार होगी, ना कि ओबामा के समय की नीति का विस्तार होगी. ऐसा हर्ष पंत का मानना है. उन्हें लगता है कि बाइडन का स्टाइल ट्रंप से थोड़ा जुदा ज़रूर हो सकता है.(https://www.bbc.com/hindi)

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