सामान्य ज्ञान
केंद्र सरकार ने 8 अक्टूबर 2014 को पश्मीना प्रोत्साहन कार्यक्रम का आरंभ किया है। पश्मीना प्रोत्साहन कार्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा ताकि 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान पशमीना ऊन का उत्पादन 65 टन तक बढ़ाया जा सके।
इस मिशन के तहत, 19.35 करोड़ रुपयों की लागत से लेह में नवीनतम आयातित प्रौद्योगिकी आधारित पश्मीना डीहेयरिंग संयंत्र की स्थापना का एक मुख्य प्रावधान किया गया है। यह अनुदान अन्य मशीनरियों जिसमें सफाई (स्काउरिंग), सुखाना और बॉयलर के साथ लेह में इन मशीनरियों को लगाने के लिए भवन निर्माण के लिए दिया जाएगा।
पश्मीना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीरी के नाम से जाना जाता है जो किए एक बेहतरीन लग्जरी रेशा होता है जिसका उत्पादन भारत के लद्दाख क्षेत्र में चांगथांग प्रजाति की बकरियों से किया जाता है। कश्मीर में पश्मीना उद्योग हज़ारों वर्ष पुराना है। ये शाल कई शताब्दियों से यूरोप और अन्य देशों को निर्यात किया जाता रहा है।
कहते हैं कि उन्नीसवी शताब्दी में नेपोलियन ने अपनी रानी को पश्मीना शाल तोहफ़े में दिया था जिसके बाद यह शाल फ्रांस में लोकप्रिय हो गया था। लेकिन आजकल कश्मीर पश्मीना ख़तरे में पड़ गया है। इसका कारण यह कि बाज़ार में नकली पश्मीने की भरमार हो गई है। कश्मीर में पश्मीना उद्योग के साथ बहुत बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं जिनमें चरखा कातने वाली महिलाएं, हैंडलूम पर काम करने वाले कारीगर और सुई से काम करने वाले दस्तकार भी शामिल हैं।
क्राफ्ट डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट कश्मीर पश्मीना को प्रोत्साहन देने के लिए अन्य कई उपाय कर रहा है। इनमें ये विशेष उपाय भी शामिल है कि पश्मीना उद्योग में विशेषज्ञों को शामिल किया जाए जो बाज़ार की मांग के लिए रणनीति तैयार करे।