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ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की आख़िर क्यों हत्या की गई
29-Nov-2020 5:14 PM
ईरान के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह की आख़िर क्यों हत्या की गई

मसुमेह तोरफेह

शुक्रवार तक ज्यादातर ईरानी लोगों को अपने देश के परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह के बारे में जानकारी नहीं थी. शुक्रवार को फ़ख़रीज़ादेह की हत्या कर दी गई थी.

हालांकि, ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नजर रखने वाले उनके बारे में बखूबी जानते थे. पश्चिमी देशों के सुरक्षा जानकार उन्हें ईरान के परमाणु कार्यक्रम का मुख्य कर्ताधर्ता मानते हैं.

ईरानी मीडिया ने फ़ख़रीज़ादेह की अहमियत को कम करके पेश करने की कोशिश की है.

ईरानी मीडिया ने उन्हें एक वैज्ञानिक और शोधकर्ता बताया है जो कि हालिया हफ्तों में कोविड-19 की घरेलू टेस्ट किट विकसित करने के काम में लगे हुए थे.

लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के एसोसिएट फैलो मार्क फिट्जपैट्रिक ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर नजदीकी से नजर रखते हैं.

उन्होंने ट्वीट किया है, "ईरान का परमाणु कार्यक्रम किसी एक शख्स पर टिके होने की स्थिति से काफी वक्त पहले ही आगे निकल चुका था."

हत्या का मक़सद
इसके बावजूद हमें यह मालूम है कि जिस वक्त फखरीजादेह पर हमला हुआ, उनके साथ कई अंगरक्षक मौजूद थे.

इससे यह जाहिर होता है कि ईरान उनकी सुरक्षा को लेकर कितना चिंतित था. ऐसे में उनकी हत्या की वजह ईरान की परमाणु गतिविधियों के मुकाबले राजनीतिक ज्यादा जान पड़ती है.

इस हत्या के दो संभावित मकसद हो सकते है. पहला, ईरान और अमरीका में नए आ रहे जो बाइडन प्रशासन के बीच रिश्तों में सुधार की गुंजाइश को खत्म करना.

दूसरा, ईरान को इसकी प्रतिक्रिया करने के लिए उकसाना.

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने इस हत्या पर दी गई अपनी प्रतिक्रिया में कहा है, "दुश्मनों को तनावपूर्ण हफ्तों का सामना करना पड़ रहा है."

उन्होंने कहा है, "उन्हें इस बात की फिक्र है कि वैश्विक हालात बदल रहे हैं और वे इस इलाके में अस्थिर हालात पैदा करने में अपना ज्यादातर वक्त लगा रहे हैं."

इसराइल और सऊदी अरब
जब रूहानी ईरान के दुश्मनों का जिक्र करते हैं तो उनका इशारा सीधे तौर पर ट्रंप प्रशासन, इसराइल और सऊदी अरब की ओर होता है.

इसराइल और सऊदी अरब दोनों ही अमरीका में जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद मध्य पूर्व की राजनीति में होने वाले बदलावों और उन पर इसके होने वाले परिणाम को लेकर चिंतित हैं.

अपने चुनाव प्रचार के दौरान बाइडन यह साफ कर चुके हैं कि वे चाहते हैं कि ईरान फिर से परमाणु समझौते के साथ जुड़ जाए.

बराक ओबामा ने 2015 में ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था और डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में इसे रद्द कर दिया था.

इसराइल के मीडिया के मुताबिक कथित तौर पर एक गोपनीय मीटिंग में इसराइल और सऊदी अरब ने ईरान को लेकर अपनी चिंताओं की चर्चा की थी.

इन खबरों में कहा गया है कि ये मीटिंग इसराइली प्रधानमंत्री बिनयामिन नेतन्याहू और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच नियोम में पिछले रविवार को हुई थी.

रणनीतिक कदम
सऊदी विदेश मंत्री ने ऐसी किसी भी बैठक के होने की खबरों को खारिज किया है.

माना जा रहा है कि इसी बैठक में नेतन्याहू सऊदी अरब और इसराइल के बीच रिश्ते बहाल करने के लिए क्राउन प्रिंस सलमान को राजी करने में भी नाकाम रहे थे.

सोमवार को, जब यमन में ईरानी समर्थन वाले हूथी विद्रोहियों ने जेद्दाह में सऊदी ऑइल कंपनी आरामको की इकाई पर हमला किया तो इसने ईरान को सऊदी अरब का मखौल उड़ाने का एक मौका दे दिया.

ईरान की कट्टरपंथी प्रेस ने हूथी ताकतों के "साहसिक कुद्स-2 बैलिस्टिक मिसाइल हमले" की जमकर तारीफ की.

मेहर न्यूज एजेंसी ने कहा है, "यह एक रणनीतिक कदम था. सऊदी-इसराइल की मीटिंग के वक्त में इसकी एक बेहतर टाइमिंग थी और इससे उन्हें यह भी चेतावनी दे दी गई कि उनके किसी भी गलत कदम के क्या परिणाम हो सकते हैं."

ईरान के मुख्य परमाणु ठिकाने
अमरीका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने अपनी किताब 'द रूम वेयर इट हैपेंड' किताब में बताया है कि किस तरह से ट्रंप प्रशासन ईरान के हूथी ताकतों को दिए जाने वाले समर्थन को "मध्य पूर्व में अमरीकी हितों के खिलाफ एक अभियान" के तौर पर देखता है.

माना जा रहा है कि नियोम में हुई कथित मीटिंग की व्यवस्था अमरीकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने की थी.

वे क़तर और युनाइटेड अरब अमीरात के दौरे पर थे और इस दौरान उनकी चर्चा का मुख्य मुद्दा ईरान था.

अमरीकी मीडिया के मुताबिक, दो हफ्ते पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने वरिष्ठ सलाहकारों से पूछा कि क्या उनके पास ईरान के मुख्य परमाणु ठिकाने कि खिलाफ सैन्य कार्रवाई का विकल्प है? माना जा रहा है कि वे सत्ता छोड़ने से पहले ईरान के साथ टक्कर चाहते हैं.

जनवरी में ट्रंप ने इराक़ में ईरान के टॉप मिलिटरी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की अमरीकी ड्रोन हमले में की गई हत्या की तारीफ की थी.

क़ासिम सुलेमानी की हत्या
ट्रंप ने कहा था कि उनके निर्देश पर यह हुआ था.हालांकि, बाद में यूएऩ के एक स्पेशल दूत ने इस "गैरकानूनी" करार दिया था.

ऐसे में यह तर्क दिया जा सकता है कि इन हत्याओं का राष्ट्रपति ने कोई विरोध नहीं किया था.

दूसरी ओर, ईरानी राष्ट्रपति ने फखरीजादेह की हत्या के पीछे इसराइल का हाथ बताया है.

कई रिपोर्ट्स में भी यह कहा गया है कि इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू दुनिया के उन चुनिंदा नेताओं में रहे हैं जिन्होंने प्रत्यक्ष तौर पर फखरीजादेह का नाम लिया था.

2018 में एक टीवी पर प्रसारित किए गए प्रेजेंटेशन में इसराइल के प्रधानमंत्री नतन्याहू ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम में फखरीजादेह की अग्रणी भूमिका का जिक्र किया था और लोगों से कहा था कि वे "इस नाम को याद रखें."

इसराइल की फिक्र
हालांकि, इसराइल इस बात से निश्चिंत है कि बाइडन प्रशासन में भी अमरीका उसकी सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध रहेगा, लेकिन इसराइल नए विदेश मंत्री के तौर पर नामांकित किए गए एंटोनी ब्लिंकेन को लेकर जरूर चिंतित होगा.

ब्लिंकेन को ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते का जबरदस्त समर्थक माना जाता है.

मध्य पूर्व को लेकर ब्लिंकेन की सोच के चलते फलस्तीन के लोगों में भी उम्मीद पैदा हो सकती है.

ब्लिंकेन इसराइल में अमरीकी दूतावास को तेल अवीव से हटाकर यरूशलम ले जाने के ट्रंप प्रशासन के फैसले के आलोचक रहे हैं.

हालांकि, बाइडेन कह चुके हैं कि वे इस फैसले में बदलाव नहीं करेंगे.

ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामनेई ने फ़ख़रीज़ादेह की हत्या करने वालों को "निश्चित रूप से दंडित" करने का आह्वान किया है.

सुरक्षा और खुफिया चूक
ईरान की एक्सपीडिएंसी काउंसिल के हेड मोहसेन रेजाई ने इस घटना के पीछे सुरक्षा और खुफिया चूक की ओर इशारा किया है.

उन्होंने कहा है, "ईरान की खुफिया एजेंसियों को घुसपैठियों और विदेशी खुफिया सेवाओं के सूत्रों का पता लगाना चाहिए और हत्या करने वाली टीमों की कोशिशों को नाकाम करना चाहिए."

दूसरी ओर, सोशल मीडिया पर मौजूद कई ईरानी यह पूछ रहे हैं कि ईरान के अपनी सैन्य और खुफिया श्रेष्ठता के दावे के बावजूद इतनी जबरदस्त सुरक्षा हासिल किसी शख्स की दिन-दहाड़े हत्या कैसे मुमकिन है.

इन लोगों की यह भी चिंता है कि इस हत्या के बहाने देश में गिरफ्तारियों का दौर फिर से शुरू किया जा सकता है.

अब जबकि ट्रंप प्रशासन जा रहा है और इसराइल और सऊदी अरब के पास उनका मुख्य सहयोगी नहीं होगा, ऐसे में ईरान बाइडन प्रशासन से प्रतिबंधों में राहत और अर्थव्यवस्था को फिर से खड़े करने का मौका मिलने की उम्मीद कर रहा है.

इस लिहाज से कोई प्रतिक्रिया करना अतार्किक होगा.

डॉ. मसुमेह तोरफेह लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (एलएसई) और स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (सोआस) में रिसर्च एसोसिएट हैं. उनकी विशेषज्ञता ईरान, अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया की राजनीति में है. वे अफगानिस्तान में स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशंस में यूएन डायरेक्टर रह चुकी हैं. (bbc.com)

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