मनोरंजन

शाहरुख से सोनम कपूर तक फिल्मी सितारों को सुरक्षा देने वालीं महिला बॉडीगार्ड, जो संकट से गुज़र रही हैं
30-Nov-2020 6:32 PM
शाहरुख से सोनम कपूर तक फिल्मी सितारों को सुरक्षा देने वालीं महिला बॉडीगार्ड, जो संकट से गुज़र रही हैं

PHOTO CREDIT- BBC

-मधुपाल

बॉलीवुड सितारे जब भी अपने घरों से बाहर निकलते हैं अपनी फ़िल्मों की शूटिंग करने के लिए या फिर फ़िल्मों के प्रमोशन, ऐड फ़िल्म्स, इवेंट्स, आवॉर्ड्स समारोह, शादी या फिर पार्टी करने के लिए, ये कभी कहीं अकेले नहीं दिखते हैं.

उनके साथ अक्सर उनके मुस्तैद बॉडीगार्ड नज़र आते रहे हैं. सितारों की फ़ैन फ़ॉलोइंग के चलते सुरक्षा की यह व्यवस्था करनी होती है क्योंकि अक्सर इनकी एक झलक देखने के लिए भीड़ बेकाबू हो जाती है.

अक्सर देखा गया है कि इन सितारों के सार्वजनिक जगहों पर पहुंचते ही लोगों की भीड़ उन पर टूट पड़ती है और इसी भीड़ के बीच से कलाकारों को सुरक्षित निकालना और उन्हें सुरक्षा देने के काम इन बॉडीगार्ड का होता है.

अक्सर पुरुष बॉडीगार्ड को ही इस काम के लिए लिया जाता था लेकिन पिछले कुछ सालों से महिलाओं को भी इस क्षेत्र में काम मिलने लगा था.

धीरे-धीरे महिला बॉडीगार्ड्स की संख्या भी बढ़ रही थी लेकिन कोरोना और उसके बाद लंबे लॉकडाउन ने इन लोगों की मुश्किलें कई गुना बढ़ा दी हैं.

पहले के मुक़ाबले काम कम मिल रहा है

वैसे लॉकडाउन के बाद फ़िल्मों की शूटिंग शुरू हो गई है. इवेंट या सिटी टूर के ज़रिये फ़िल्मों का प्रचार तो नहीं हो रहा है लेकिन आउटडोर शूटिंग, ऐड फ़िल्म्स पर फ़िल्मी सितारों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाने वाले बॉडीगार्ड और बाउंसर को पहले के मुक़ाबले कम लेकिन काम मिलना शुरू हुआ है.

लेकिन इस इंडस्ट्री से जुड़ी महिलाओं को अभी भी काम का इंतज़ार करना पड़ रहा है.

42 वर्षीय फ़हमीदा अंसारी बॉलीवुड फ़िल्म इंडस्ट्री की जानी-मानी महिला बॉडीगार्ड हैं.

बीबीसी हिंदी से ख़ास बातचीत में वो कहती हैं, "पुरुषों के लिए काम आ रहा है लेकिन हम महिला बॉडीगार्ड के लिए काम बिलकुल नहीं आ रहा है जिसके चलते हमारी ज़िन्दगी परेशानियों से गुजर रही है और आने वाले दिनों तक यही हाल रहा तो हमारे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा."

17 साल से सिंगल हैं फ़हमीदा

फ़हमीदा अंसारी कहती हैं कि वो 17 साल से सिंगल मदर हैं.

उन्होंने बताया, "मेरे एक्स हसबैंड ने कभी पलटकर अपनी बेटी का हाल तक नहीं पूछा. तब मैंने ये फ़ैसला लिया कि मैं कभी दूसरी शादी नहीं करूंगी और अपनी बेटी की देखभाल अकेले ही करूंगी. मेरी एक दोस्त ने मुझे सलाह दी कि तुम फ़ीमेल बॉडीगार्ड का काम करना चाहती हो. मैंने उसे हाँ कहा और फ़िल्मों के सेट पर काम करने लगी और फ़िल्मस्टार को गार्ड करने लगी."

फ़हमीदा ज़ीरो, सुपर 30, पद्मावत, मर्दानी, कलंक जैसी कई फ़िल्मों के अलावा बर्थडे पार्टी, सोनम कपूर की शादी से लेकर एक्ट्रेस की ऐड फ़िल्म्स सब को 24 घंटे सुरक्षा देने की ज़िम्मेदारी निभा चुकी हैं.

'कई बार कलाकरों के लिए गालियां भी खानी पड़ती हैं'

पहले इस काम को सिर्फ़ मर्दों के लिए ही माना जाता था.

फ़हमीदा दावा करती हैं कि इस काम के लिए महिलाओं को मौक़ा सबसे पहले अभिनेता रोनित रॉय की कंपनी एसीई सिक्योरिटी एंड प्रोटेक्शन एजेंसी और रोनित रॉय के रिश्तेदार दीपक सिंह की कंपनी डोम सिक्योरिटी ने देना शुरू किया.

फ़हमीदा ने बताया, "उन्होंने हम पर विश्वास रखा और कई मौके़ दिए. अब इनके पास भी हमारे लिए काम नहीं है इसमें इनकी कोई ग़लती नहीं है क्योंकि जब फ़िल्म प्रोडक्शन हाउस ही हमें नहीं बुलाएगा तो ये हमें कैसे काम देंगे."

लॉकडाउन के बाद काम के अवसरों के बारे में फ़हमीदा ने कहा, "केवल संजय लीला भंसाली जी ने हमें बुलाया और किसी और से अभी काम नहीं आया है. ऐसा लग रहा है कि कोरोना हम महिलाओं को ही होगा. ये तो ग़लत है. इस तरह तो हम भूखों मर जाएंगे. मेरे साथ और भी कई महिलाएं हैं जो रोज़ फ़ोन करती हैं और पूछती हैं कि कुछ काम आया क्या? कुछ तो काम दिलवा दो हमें."

फ़हमीदा की तरह ज़रीन रफ़ीक़ शेख भी बॉलीवुड में पिछले चार सालों से बॉडीगार्ड का काम करती आ रही हैं.

वो कहती हैं, "कई फ़िल्म जैसे सुपर-30, ज़ीरो, छपाक, कलंक जैसी बड़ी फ़िल्मों की शूटिंग से लेकर उनके इवेंट के अलावा बड़ी-बड़ी पार्टियों का हिस्सा रह चुकी हूँ."

इस तरह के काम की चुनौतियों के बारे में ज़रीन ने बताया, "इस काम में जाने का तो समय होता है लेकिन आने का कोई समय नहीं होता. घंटों खड़े रहना होता है. जब स्टार्स अपनी फ़िल्मों के प्रमोशन के लिए मॉल जाते हैं तो वहां भीड़ बहुत होती है और हमारा काम होता है सितारों को उस भीड़ से सुरक्षित निकालना. कई बार लोग हमें धक्का देते हैं, कई बार हम लोगों पर ग़ुस्सा करते हैं तो लोग हमें पलटकर गालियां भी देते हैं, हमें सहना होता है. लोग अपना प्यार दिखाने के लिए कलाकरों पर कुछ न कुछ फेंक देते हैं ऐसे में ये हमारा काम होता है कि उन्हें किसी भी तरह की कोई चोट ना लगे. इसका ध्यान भी रखना होता है कि कोई उनके साथ ज़बरदस्ती तस्वीरें ना खिंचवाए."

गुज़ारा चलाने का संकट

ज़रीन कोरोना संकट के दौर में परिवार चलाने की चुनौतियों के बारे में बताती हैं, "मेरे परिवार में मैं और मेरी दो बेटियां हैं. उनकी देखरेख मैं ही करती हूँ. फ़िल्म 'छपाक' मेरा आख़िरी काम था उसके बाद मार्च में ये लॉकडाउन हो गया था सात महीने घर पर थी बिना किसी रोज़गार के अब जब शूटिंग शुरू हुई तो ये फ़िल्म प्रोडक्शन वाले अभी महिलाओं को बुला नहीं रहे हैं."

"अगर आगे चलकर ऐसा ही हाल रहा तो हमारे लिए जीवन निर्वाह करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि फ़िल्म उद्योग में हमारे हितों पर ध्यान देने के लिए कोई संगठन भी नहीं है. जहां अलग-अलग संघों, परिषदों और फ़िल्मी संस्थानों से जुड़े दिहाड़ी मज़दूरों को मदद मिल रही है वहीं हमारे पास किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं है."

तीन साल से बॉडीगार्ड का काम कर रही सुनीता निकल्जे को बॉलीवुड इंडस्ट्री की लाइन बहुत पसंद है. वो कहती हैं, "मेरे परिवार में मेरे सास-ससुर, दो बच्चे और पति हैं. कुछ साल पहले पति के साथ दुर्घटना हुई जिसके चलते उनके सिर पर चोट लगने से उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा और कुछ सालों से घर की ज़िम्मेदारी मेरे कंधे पर आ गई जिसके चलते मुझे नौकरी करनी पड़ी."

"मेरे घरवालों और मुझे मेरी ये नौकरी बहुत पसंद है क्योंकि यहाँ इज़्ज़त बहुत है. परिवार वालों को ख़ुशी होती है जब वो रिश्तेदारों को बताते हैं कि मैं कलाकारों की सुरक्षा देने का काम करती हूँ, इस लाइन में पैसे भी अच्छे हैं, कलाकार भी हमें इज़्ज़त और सम्मान देते हैं."

'कई बार ताक़त से ज़्यादा दिमाग़ लगाना पड़ता है'

सुनीता कहती हैं कि सेट पर गर्म मिजाज़ का दिखना ज़रूरी है. वो कहती हैं, "हमें सेट पर थोड़ा कड़क रहकर लोगों से पेश आना होता है क्योंकि जब शूटिंग चल रही होती है तो कुछ जूनियर आर्टिस्ट मोबाइल से फ़ोटो खींचते हैं इसलिए हमें सेट पर सबकी तलाशी लेनी होती है और लोगों का मोबाइल ज़ब्त करना पड़ता है क्योंकि अगर फ़ोटो वायरल हो गई तो इसका मतलब हमने ठीक से काम नहीं किया."

"जब कभी आउटडोर शूटिंग चल रही होती है तो लोग हमसे पूछते हैं कि क्या यहाँ शूटिंग चल रही है? तो हमें उनसे झूठ भी बोलना पड़ता है ये कहकर की साउथ फ़िल्म है हीरो नया है. क्योंकि अगर हम उनको बता देंगे कि शाहरुख़ ख़ान हैं यहाँ तो वो लोग पूरा दिन खड़े रहेंगे और हमें भी परेशान करेंगे इसलिए कई बार हमें ताक़त से ज़्यादा दिमाग़ भी लगाना पड़ता है."

कोरोना तो भेदभाव नहीं करता?

सुनीता कहती हैं, "इस कोरोना और फिर लॉकडाउन ने सारी जमा पूंजी ख़र्च करवा दी है. मेरी प्रोडक्शन हाउस से एक ही विनती है कि कोरोना ने पुरुषों के मुक़ाबले हमारी ताक़त कम नहीं की है. कोरोना किसी के साथ भेदभाव नहीं कर रहा है."

वैसे ऐसा नहीं है कि प्रोडक्शन हाउस महिला बॉडीगार्ड के साथ जानबूझ कर भेदभाव कर रहे हैं बल्कि वास्तविकता में आयोजनों में कमी होने के चलते काम कम हो गया है, जिसके चलते इन महिलाओं के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है.(https://www.bbc.com/hindi)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news