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ब्रिटेन ने फ़ाइज़र के टीके को मंज़ूरी दी
02-Dec-2020 2:03 PM
ब्रिटेन ने फ़ाइज़र के टीके को मंज़ूरी दी

ब्रिटेन दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने फ़ाइज़र कंपनी के बनाए टीके के इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है.

ब्रिटिश नियामक संस्था एमएचआरए ने कहा है कि फ़ाइज़र/बायोएन्टेक की ये वैक्सीन कोविड-19 से 95% सुरक्षा देती है और इसके व्यापक इस्तेमाल की अनुमति देना सुरक्षित है.

बताया जा रहा है कि कुछ ही दिनों के भीतर ऐसे लोगों को टीका लगना शुरू हो जाएगा जिन्हें सबसे ज़्यादा ख़तरा है.

ब्रिटेन ने पहले से ही इस टीके की चार करोड़ डोज़ के लिए ऑर्डर दिया हुआ है,

हर व्यक्ति को टीके के दो डोज़ दिए जाएँगे. यानी अभी दो करोड़ लोगों को टीका मिल सकता है.

ये दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित वैक्सीन है जिसे बनाने में 10 महीने लगे. आम तौर पर ऐसी वैक्सीन के तैयार होने में एक दशक तक का वक़्त लग जाता है.

हालाँकि जानकारों का कहना है कि टीके के बावजूद लोगों को संक्रमण रोकने के नियमों का पालन करते रहना चाहिए.


कैसे काम करती है ये वैक्सीन?

ये एक नई तरह की एमआरएनए कोरोना वैक्सीन है जिसमें महामारी के दौरान इकट्ठा किए कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड के छोटे टुकड़ों को इस्तेमाल किया गया है. कंपनी के अनुसार जेनेटिक कोड के छोटे टुकड़े शरीर के भीतर रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाती है और कोविड-19 के ख़िलाफ शरीर को लड़ने के लिए तैयार करती है.

इससे पहले कभी इंसानों में इस्तेमाल के लिए एमआरएनए वैक्सीन को मंज़ूरी नहीं दी गई है. हालांकि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान लोगों को इस तरह की वैक्सीन के डोज़ दिए गए हैं.

एमआरएनए वैक्सीन को इंसान के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है. ये इम्यून सिस्टम को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने और टी-सेल को एक्टिवेट कर संक्रमित कोशिाकओं को नष्ट करने के लिए कहती है.

इसके बाद जब ये व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित होता है तो उसके शरीर में बनी एंटीबॉडी और टी-सेल वायरस से लड़ने का काम करना शुरू कर देते हैं.


वैक्सीन की रेस में और कौन-कौन शामिल?

ऑक्सफर्ड-एस्ट्राज़ेनिका की वैक्सीन - ये वाइरल वेक्टर टाइप वैक्सीन है जिसकमें जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड वायरस का इस्तेमाल किया गया है. इसे फ्रिज में सामान्य तापमान पर स्टोर किया जा सकता है और इसकी दो डोज़ लेनी होंगी. अब तक क्लिनिकल ट्रायल में इसे 62 से 90 फीसदी तक कारगर पाया गया है.

इस वैक्सीन के प्रति डोज़ की क़ीमत 4 डॉलर तक होगी.

मॉडर्ना की वैक्सीन - ये एमआरएनए टाइप की कोरोना वैक्सीन है जिसे वायरस के जेनेटिक कोड के कुछ टुकड़े शामिल कर बनाया जा रहा है. इसे माइनस 20 डिग्री तापमान पर स्टोर करने की ज़रूरत होगी और इसे छह महीनों तक ही स्टोर किया जा सकेगा. इसकी दो डोज़ लेनी होंगी और अब तक हुए क्लिनिकल ट्रायल में इसे 95 फीसदी तक कारगर पाया गया है.

इस वैक्सीन के प्रति डोज़ की क़ीमत 33 डॉलर तक होगी.

फ़ाइज़र की वैक्सीन - मॉडर्ना की वैक्सीन की तरह ये भी एमआरएनए टाइप की कोरोना वैक्सीन है. अब तक हुए क्लिनिकल ट्रायल में इसे 95 फीसदी तक कारगर पाया गया है. इसे माइनस 70 डिग्री के तापमान पर स्टोर करना होगा.

ये वैक्सीन दो डोज़ दी जाएगी और प्रति डोज़ की क़ीमत 15 डॉलर तक होगी.

गामालेया की स्पुतनिक-वी वैक्सीन - ये ऑक्सफर्ड की वैक्सीन की तरह वाइरल वेक्टर टाइप वैक्सीन है जिसके अब तक हुए क्लिनिकल ट्रायल में 92 फीसदी तक कारगर पाया गया है. इसे फ्रिज में सामान्य तापमान पर स्टोर किया जा सकता है और इसकी दो डोज़ लेनी होंगी.

इस वैक्सीन के प्रति डोज़ की क़ीमत 7.50 डॉलर तक होगी.

इसके अलावा रूस स्पुत्निक नाम की एक और वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहा है. वहीं चीनी सेना ने कैनसाइनो बायोलॉजिक्स की बनाई एक वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी है. ये दोनों वैक्सीन ऑक्सफर्ड की वैक्सीन की तरह वाइरल वेक्टर टाइप वैक्सीन हैं.

(स्रोत- वैक्सीन बनाने वाली कंपनी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के जारी किए आंकड़ों के अनुसार) (bbc.com)

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