अंतरराष्ट्रीय

चीन के #MeToo अभियान की दिशा और दशा तय करने वाला केस
02-Dec-2020 5:16 PM
चीन के #MeToo अभियान की दिशा और दशा तय करने वाला केस

-विनसेंट नी

झोऊ शियोक्सआन उर्फ़ शायनज़ी एक जाने-माने टीवी होस्ट के ख़िलाफ़ कोर्ट पहुँची हैं

चीन के कोर्ट में बुधवार को एक ऐसे मुक़दमे की सुनवाई हो रही है जिसे लेकर जानकार कह रहे हैं कि ये देश के #metoo आंदोलन का भविष्य तय कर सकता है.

झोऊ शियोक्सआन उर्फ़ शायनज़ी एक जाने-माने टीवी होस्ट के ख़िलाफ़ कोर्ट पहुँची हैं. उनका आरोप है कि इस टीवी होस्ट ने 2014 में उनका यौन शोषण किया था.

लेकिन टीवी होस्ट सभी आरोपों से इनकार करते हैं और उन्होंने भी शायनज़ी और उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा कर दिया है.

जानकारों का कहना है कि चीन में शायद ही ऐसा होता है कि ऐसा कोई मामला इस चरण तक पहुँचे.

मुक़दमे की सुनवाई सार्वजनिक नहीं होगी. सुनवाई से पहले शायनज़ी ने बीबीसी से कहा कि चाहे जो भी हो, वे इसे लेकर पछताएँगी नहीं.

उन्होंने कहा, "अगर मैं जीत जाती हूँ तो इससे बहुत सी महिलाओं को सामने आकर अपनी कहानी बताने का हौसला मिलेगा. अगर मैं हार जाती हूँ तो तब तक अपील करती रहूँगी जब तक मुझे न्याय नहीं मिल जाता."

जब साल 2018 में हॉलीवुड प्रोड्यूसर हार्वी वाइंसटाइन के ख़िलाफ़ कई मुक़दमे सामने आए तब शायनज़ी ने अपनी दोस्त का साथ देते हुए अपना अनुभव भी वीचैट पर लिखने का सोचा.

उस वक़्त 25 साल की शायनज़ी ने अपना 2014 का अनुभव 3000 शब्दों के एक लेख में बताया. उनका आरोप था कि जब वे चीनी सरकारी मीडिया चैनल सीसीटीवी में इंटर्नशिप कर रही थीं तब जाने-माने टीवी होस्ट झू जुन ने उनका यौन शोषण किया.

शियांजी ने कहा कि उन्होंने पुलिस में भी शिकायत दर्ज करवाई थी लेकिन उनका दावा है कि पुलिस ने उन्हें आरोप वापस लेने को कहा क्योंकि झू एक बड़े टीवी होस्ट हैं और समाज में उनका काफ़ी रुतबा है.

शायनज़ी का लेख चीन के इंटरनेट पर जल्द ही वायरल हो गया जब उनकी एक एनजीओ कार्यकर्ता दोस्त शू चाओ ने अपने वीबो अकाउंट पर इसे शेयर किया.

उन दिनों अमेरिका और यूरोप में #metoo आंदोलन के चलते चीनी मीडिया में भी यौन शोषण पर चर्चा शुरू हो चुकी थी और चीन में भी इससे सम्बंधित कुछ शिकायतें सामने आयी थी.

पिछले साल जनवरी में बीजिंग यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर को एक पूर्व छात्रा के यौन शोषण के आरोप में नौकरी से निकाल दिया था.

कुछ महीने बाद, एक जानी-मानी चैरिटी संस्था के संस्थापक को भी अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.

उन पर आरोप था कि साल 2015 में एक फंडरेज़िंग इवेंट के दौरान उन्होंने एक वॉलंटियर का रेप किया.

चीनी मीडिया ने शायनज़ी की शिकायत में दिलचस्पी दिखाई क्योंकि जिस व्यक्ति पर उन्होंने आरोप लगाया है, वे काफ़ी लोकप्रिय हैं.

कई महिलाओं और पुरुषों ने भी ऑनलाइन कहा कि उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा और शायनज़ी का साथ देने आगे आए.

लेकिन शायनज़ी का दावा है कि जल्द ही इस घटना की मीडिया रिपोर्टिंग सेंसर ने बंद करवा दी.

इसके कुछ हफ़्ते बाद शायनज़ी और शू चाओ पर होस्ट झू ने मानहानि का दावा कर दिया. लेकिन हुआ ये कि इसके बाद इस घटना ने चीनी मीडिया का ध्यान ज़्यादा आकर्षित किया.

शायनज़ी ने कहा कि तबसे ही यौन शोषण के हज़ारों पीड़ित, चाहे महिला हो या पुरुष, सब सोशल मीडिया के ज़रिए उनके संपर्क में हैं.

शायनज़ी ने बीबीसी को बताया, "मुझे इससे बहुत नुक़सान हुआ है. एक बार तो उन्होंने मुझ पर आरोप लगा दिया कि मुझे कोई भ्रम की मानसिक बीमारी है और मुझे ये साबित करना पड़ा कि मैं बिल्कुल ठीक हूँ."

"सबूत इकट्ठा करने की प्रकिया में मुझे अपना अनुभव बार-बार जीना पड़ा. हर बार यातना और अपमान महसूस होता था."

शू चाओ फ़िलहाल इंग्लैंड में पढ़ रही हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा कि अगर कोर्ट ने झू के पक्ष में फ़ैसला दिया तो उन दोनों लड़कियों पर मानहानि का केस चलेगा.

उन्होंने कहा, "लेकिन मैं इन आरोपों से लड़ने के लिए तैयार हो रही हूँ, चाहे दूर से भी लड़ना पड़े."

झू ने लगातार इन आरोपों को ख़ारिज किया है. बीबीसी ने झू और उनके वकीलों से भी इंटर्व्यू करने की कोशिश की लेकिन उनका कोई जवाब नहीं आया.

'अब भी माफ़ी नहीं माँगी'
चीन में कार्यस्थलों पर यौन शोषण के ख़िलाफ़ क़ानून हैं. लेकिन हाल तक यौन शोषण की कोई परिभाषा तय नहीं थी.

येल लॉ स्कूल के पॉल साई चाइना सेंटर में इस विषय के जानकार डॉरीयस लॉनग्रिनो ने कहा, "आज तक बेहद कम यौन शोषण से संबंधित केस चीनी कोर्ट तक पहुँचे हैं. अक्सर ये देखने में आया है कि अगर वर्कप्लेस पर किसी अभियुक्त को सज़ा दी गयी है तो फिर वह कम्पनी पर ही लेबर कांट्रैक्ट के उल्लंघन का आरोप लगा कर केस कर देता है."

"या तो अभियुक्त कम्पनी पर केस कर देता है या शिकायतकर्ता पर मानहानी का केस कर देता है."

बल्कि 'यौन शोषण' शब्द साल 2005 में महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित एक क़ानून के दौरान ही सामने आया.

डॉरीयस ने बताया कि तबसे ही कई स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर इसे लागू करने की कोशिशें हुई लेकिन ज़मीन पर कम ही बदलाव देखने को मिला.

एक एनजीओ 'बीज़िंग युआनझोंग जेंडर डिवेलप्मेंट सेंटर' के मुताबिक़ 2010 से 2017 तक पाँच करोड़ कोर्ट के आदेशों में से सिर्फ़ 34 ही यौन शोषण से संबंधित हैं.

इनमें से सिर्फ़ दो पीड़ितों ने अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था और दोनों में सबूत के अभाव की वजह से केस ख़ारिज हो गया.

हालाँकि ऐसा लग रहा है कि अब चीज़ें बदल रही हैं.

पिछले साल एक हाई-प्रोफ़ाइल केस में एक समाजसेविका ने एक एनजीओ के डायरेक्टर-जनरल के ख़िलाफ़ केस जीता था.

चीनी मीडिया ने इसे #metoo आंदोलन की पहली जीत कहा था.

जुलाई में आयी एक चीनी न्यूज़ रिपोर्ट के मुताबिक़ कोर्ट ने दोषी को 15 दिन के अंदर माफ़ीनामा देने का आदेश दिया था लेकिन केस जीतने के बावजूद पीड़ित को एक साल बाद भी माफ़ीनामा नहीं मिला है.

वर्कप्लेस पर यौन शोषण
मई में चीनी सांसद एक नया सिविल कोड लेकर आए हैं जो एक जनवरी 2021 से लागू होगा. इस कोड में यौन हिंसा को परिभाषित किया गया है- "कोई एक्शन जो दूसरे कि मर्ज़ी के बिना, बोलने, लिखने, तस्वीरों के ज़रिए या शारीरिक तौर पर किया जाये."

इस कोड में कहा गया है कि सरकार, कम्पनी और स्कूलों को भी ऐसा बर्ताव रोकने की कोशिश करनी होगी.

आलोचकों का कहना है कि यौन शोषण के पीड़ितों की सुरक्षा के लिए ये अब भी काफ़ी नहीं है.

डॉरीयस के मुताबिक़, "इस कोड में ये तो कहा गया है कि कम्पनियों को वर्कप्लेस पर यौन शोषण रोकने के लिए कदम उठाने होंगे लेकिन ये नहीं कहा गया है कि अगर कम्पनी ऐसा नहीं करती है तो उस पर क्या कार्रवाई होगी."

2018 के एक सर्वे के मुताबिक़, 100 भागीदारों में से 81% ने बताया कि उनकी कम्पनियों में यौन शोषण के ख़िलाफ़ नीतियाँ ही नहीं हैं और 12% ने बताया कि नीतियाँ हैं लेकिन उनका निर्वाहन नहीं हो रहा. सिर्फ़ 7% ने कहा कि उनकी कम्पनी ने इन नीतियों को लागू किया है.

तमाम कमियों के बावजूद डॉरीयस मानते हैं कि शायनज़ी के केस का इतनी दूर तक आना ही हौसला बढ़ाता है.

"ये एक बड़ा पल होगा जहां हम देखेंगे कि कोर्ट इस मामले की निष्पक्ष सुनवाई करती है या नहीं."

"इसके बाद ही कहा जा सकेगा कि क़ानून यौन शोषण के पीड़ितों की सुरक्षा करने में सक्षम है."

(बीबीसी के यित्सिंग वांग के सहयोग से)  (bbc.com)

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