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तेलंगाना का एक नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए इतना बड़ा क्यों बन गया है?
02-Dec-2020 5:34 PM
तेलंगाना का एक नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए इतना बड़ा क्यों बन गया है?

-अभय शर्मा

 तेलंगाना के कुल 119 विधायकों और 17 सांसदों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के केवल दो विधायक और चार सांसद ही हैं। इसके बाद भी भाजपा राज्य के एक नगर निगम चुनाव में अपनी पूरी ताक़त झोंक रही है। ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव (जीएचएमसी) एक दिसंबर को होना हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता भूपेन्द्र यादव, जिन्होंने बिहार में भाजपा की जीत की रणनीति तैयार की थी, उन्हें इस चुनाव की जि़म्मेदारी दी गई है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय कैबिनेट मंत्री स्मृति ईरानी, प्रकाश जावड़ेकर और युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या एक हफ़्ते से यहां के चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए हैं। यह चुनाव इस हफ्ते तब और सुखिऱ्यों में आ गया, जब गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यहां प्रचार के लिए पहुंच गए। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि तेलंगाना का एक छोटा सा नगर निगम चुनाव भाजपा के लिए आखिर इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है?

विधानसभा उपचुनाव ने भाजपा का मनोबल बढ़ाया

बीते नवंबर में तेलंगाना की दुब्बाक विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। यह सीट राज्य की सत्ताधारी पार्टी-तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के विधायक की मौत के बाद ख़ाली हुई थी। टीआरएस ने उपचुनाव में दिवंगत विधायक की पत्नी को ही उम्मीदवार बनाया था। यह सीट टीआरएस के लिए काफी अहम मानी जाती है क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव जिस सीट से चुनाव जीत कर आते हैं, वह इससे सटे हुए इलाके में ही आती है। एक तरह से इसे टीआरएस का गढ़ कहा जाता है। उपचुनाव में इस सीट पर टीआरएस का पूरा चुनाव प्रबंधन के चंद्रशेखर राव के भतीजे हरीश राव ने संभाला था। हरीश राव को टीआरएस का अहम चुनावी रणनीतिकार माना जाता रहा है। लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी टीआरएस यह उपचुनाव हार गई और भाजपा को यहां से जीत मिली। भाजपा का मनोबल दुब्बाक उपचुनाव में मिले वोट प्रतिशत ने भी बढ़ाया, जो पिछली बार के 13।75 फ़ीसद से बढक़र 38।5 फ़ीसद पर पहुंच गया।

पंचायत से पार्लियामेंट

तक पहुंचने का नारा

भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने अपने कार्यकर्ताओं को एक नारा दिया था, उन्होंने कहा था कि पार्टी अपना विस्तार तभी कर सकती है, जब वह ‘पंचायत से पार्लियामेंट’ तक पहुंचने का लक्ष्य रखेगी। इसके बाद पार्टी ने हरियाणा सहित कई राज्यों में यह रणनीति अपनाई और इसी फार्मूले के तहत उसने न केवल कार्यकर्ताओं में जोश भरा बल्कि इन राज्यों की सत्ता पर भी कब्जा किया। नरेंद्र मोदी और अमित शाह काफी समय से दक्षिण भारत में अपनी पार्टी का विस्तार चाहते हैं। भाजपा को लगता है कि अगर ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में उसने जीत हासिल की या कोई अच्छा प्रदर्शन भी किया तो इसकी गूंज पड़ोसी राज्य तमिलनाडु तक पहुंचेगी जहां अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने हैं।

कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि 2014 के बाद से यह पहली बार है जब तेलंगाना के किसी चुनाव में भाजपा अपने मनमुताबिक प्रचार की रणनीति अपनाने के लिए स्वतंत्र है। चूंकि अब वह चंद्रशेखर राव की मदद के बिना भी उच्च सदन में अपने अहम बिल पास करा सकती है इसलिए वर्तमान चुनाव में भाजपा ने चंद्रशेखर राव के खिलाफ काफी आक्रामक रुख अपना रखा है।

तेलंगाना में जगह बनाने का भाजपा के लिए बेहतरीन मौका

पिछली बार हैदराबाद के जीएचएमसी चुनाव में मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के बेटे केटी रामा राव ने पूरी रणनीति तैयार की थी। जानकारों की मानें तो के चंद्रशेखर राव ने पार्टी में अपने बेटे का कद बढ़ाने के लिए उसे यह जिम्मेदारी दी थी क्योंकि पार्टी में केटी रामा राव से ज़्यादा उनके भतीजे हरीश राव की चलती थी। केटी रामा राव के नेतृत्व में टीआरएस ने जीएचएमसी चुनाव में 150 में से 99 सीटें जीती थीं। इस चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को 44, भाजपा को तीन और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। इस बार भी जीएचएमसी चुनाव की जिम्मेदारी केटी रामा राव के पास है और हरीश राव उप-चुनाव में हार की वजह से फि़लहाल साइडलाइन कर दिए गए हैं। जानकारों की मानें तो टीआरएस की अंदरूनी लड़ाई, हैदराबाद में इस साल दो बार आई बाढ़ के चलते लोगों की नाराजगी और दुब्बाक चुनाव में हार की वजह से इस समय टीआरएस थोड़ी कमजोर नजर आ रही है। ऐसे में भाजपा को लगता है कि राज्य में जगह बनाने का यह अच्छा मौका हो सकता है। तेलंगाना के कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस नगर निगम चुनाव में भाजपा के पूरी ताकत से उतरने के पीछे एक और वजह भी बताते हैं। इनके मुताबिक तेलंगाना में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस है। (बाकी पेज 5 पर)

जो लगातार राज्य में कमजोर होती जा रही है। बीते लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को महज तीन सीटें जबकि राज्य में पैर जमाने की कोशिश कर रही भाजपा को चार सीटें मिली थीं। हालिया दुब्बाक उपचुनाव में पूरा जोर लगाने के बाद भी कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी। ऐसे में भाजपा नेताओं का मानना है कि दो चुनावों के बाद अब अगर उनकी पार्टी ग्रेटर हैदराबाद निगम चुनाव में भी कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन कर देती है तो कांग्रेस नहीं, बल्कि भाजपा तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी बन जायेगी।

भाजपा को जीत की उम्मीद क्यों?

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम देश के सबसे बड़े नगर निगमों में से एक है। यह नगर निगम चार जिलों में फैला हुआ है जिसमें पुराना हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल-मलकजगिरी और संगारेड्डी इलाके आते हैं। इस नगर निगम में तेलंगाना की 24 विधानसभा सीटें और पांच लोकससभा की सीटें आती हैं। पूरे ग्रेटर हैदराबाद में करीब 65 फीसदी हिन्दू और 30 फीसदी मुस्लिम आबादी है। धर्म के आधार पर जनसंख्या के इन्हीं आंकड़ों से भाजपा को यहां अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है।

पुराने हैदराबाद में दस विधानसभा सीटें आती हैं और यहां 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। यह क्षेत्र असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का गढ़ माना जाता है, पिछले विधानसभा चुनाव में उसे यहां की सात सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यही वजह है कि ओवैसी की पार्टी केवल इसी इलाके की 51 सीटों पर नगर निगम चुनाव लड़ रही है। लेकिन भाजपा और सत्ताधारी टीआरएस ने नगर निगम की सभी 150 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। भाजपा इस चुनाव में ध्रुवीकरण की कोशिश में है। उसके नेताओं ने रोहिंग्या मुसलमान, सर्जिकल स्ट्राइक, बांग्लादेश और पाकिस्तान को इस चुनाव का अहम मुद्दा बन दिया है। वे इन सबके बहाने ओवैसी पर निशाना साध रहे हैं और ओवैसी और चंद्रशेखर राव को अंदरखाने एक बता रहे हैं। हैदराबाद के कुछ पत्रकारों के मुताबिक भाजपा को लगता है कि पुराने हैदराबाद में ओवैसी ज्यादा सीटें ले जाएंगे। लेकिन, बाकी इलाकों में वह टीआरएस से सीधी टक्कर लेगी और हिंदू वोटों के धुर्वीकरण के चलते वह निगर निगम की सत्ता तक भी पहुंच सकती है। (satyagrah.scroll.in)

 

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