अंतरराष्ट्रीय
चीन के चांग ई-5 मून मिशन ने चांद की सतह से पहली रंगीन तस्वीर भेजी है. चीन के इस मून लैंडर ने चांद की सतह पर अपने पैर के पास ले लेकर क्षितिज तक की तस्वीर ली है.
चांद से मिट्टी और पत्थर के नमूने पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार किए गए इस मिशन ने मंगलवार को सफलतापूर्वक चांद के सतह पर लैंडिग की थी.
उतरने के बाद से ही इसने चांद की सतह से नमूने इकट्ठा करने का काम शुरू कर दिया है. इसे रिटर्न मॉड्यूल तक पहुंचाने की शुरूआत गुरुवार से की जा सकती है.
ये काम कुछ दिनों तक ही किया जाएगा जिसके बाद नमूनों को चांद की कक्षा में पहले से ही मौजूद सर्विस व्हीकल और रिटर्न मॉड्यूल तक पहुंचाया जाएगा, जो इसे वापिस धरती तक पहुंचाएगा.
योजना के अनुसार रिटर्न मॉड्यूल मंगोलिया के भीतरी इलाक़े में सिज़िवांग के घास के मैदानों में लैंड कर सकता है.
चांग ई-5 मिशन से पहले चीन ने दो और मून मिशन भेजे थे, साल 2013 में चांग ई-3 और 2019 में चांग ई-4 मून मिशन. इन दोनों में है एक लैंडर के साथ-साथ एक छोटा मून रोवर शामिल किया गया था.
इन दोनों की तुलना में चांग ई-5 जटिल मिशन है.
8.2-टन के चांग ई-5 को एक अंतरिक्षयान के ज़रिए 24 नवंबर को दक्षिणी चीन के वेनचांग स्टेशन से छोड़ा गया था.
कुछ दिन पहले ये मिशन चांद के ऊपर पहुंचा और इसने खुद को चांद की कक्षा में स्थापित किया और चांद के चक्कर लगाने लगा. बाद में ये दो टुकड़ों में बंट गया - पहला सर्विस व्हीकल और रिटर्न मॉड्यूल जो चांद की कक्षा में ही रुका रहा और दूसरा मून लैंडर जो धीरे-धीरे चांद की सतह की तरफ बढ़ने लगा.
मून लैंडर चांद की सतह पर मॉन्स रूमकेर में उतारा गया जो चांद की ज्वालामुखी वाली पहाड़ियों के पास मौजूद एक जगह है.
चांद की सतह से मिट्टी और पत्थर इकट्ठा करने के लिए भेजे गए चांग ई-5 मून लैंडर में कैमरा, रडार, एक ड्रिल और स्पेक्ट्रोमीटर फिट किया गया है. अब ये इनका इस्तेमाल कर चांद की सतह से मिट्टी के बेहतर नमूने इकट्ठा करेगा.
चांग ई मून मिशन
चांग ई-5 से 44 साल पहले, अब तक मून मिशन के दौरान अमेरिकी अपोलो अंतरिक्षयान से चांद पर गए अंतरिक्षयात्रियों और सोवियत रूस के रोबोटिक लूना कार्यक्रम ने चांद की सतह से क़रीब 400 किलो तक मिट्टी और पत्थर जमा किए हैं, लेकिन अधिकतर वो मिशन थे जिनमें अंतरिक्षयात्री शामिल थे.
चांद से लाए ये सभी नमूने क़रीब तीन अरब साल पुराने हैं.
माना जा रहा है कि मॉन्स रूमकेर से लाए गए नमूनों की उम्र 1.2 से 1.3 अरब साल होगी, यानी वो पहले लाए गए नमूनों की अपेक्षा नए होंगे. जानकारों का मानना है कि इससे चांद के भूवैज्ञानिक इतिहास के बारे में अधिक जानकारी मिल सकेगी.
इन नमूनों की मदद से वैज्ञानिकों को सटीक रूप से 'क्रोनोमीटर' तैयार करने में भी मदद मिलेगी जिससे सौर मंडल के ग्रहों के सतहों की उम्र को माना जाता है.
ये किसी ग्रह या उपग्रह की सतह पर मौजूद ज्वालामुखी की संख्या पर निर्भर करता है. वैज्ञानिकों के अनुसार जिस ग्रह की सतह पर अधिक ज्वालामुखी होंगे वो अधिक पुरानी होगी यानी उसकी उम्र अधिक होगी (इसके लिए वैज्ञानिक ज्वालामुखी के क्रेटर की संख्या की गिनती करते हैं). हालांकि इसके लिए अलग-अलग जगहों को देखा जाना ज़रूरी होता है.
अपोलो और लूना मिशन के भेजे गए नमूनों से 'क्रोनोमीटर' तैयार करने में वैज्ञानिकों को काफी मदद मिली थी. अब चांग ई-5 मिशन के भेजे नमूनों से उन्हें इसे और सटीक रूप से विकसित करने में मदद मिलेगी. (bbc)