विचार / लेख

यह सम्मान है या अपमान
04-Dec-2020 4:00 PM
यह सम्मान है या अपमान

-पुष्य मित्र

आजकल भाजपा और संघ से जुड़े लोगों ने देश के महापुरुषों को याद करने का एक नया तरीका विकसित किया है। वे उस महापुरुष की उपलब्धियों के बारे में नहीं बोलते, बल्कि यह बताते हैं कि नेहरू ने या कांग्रेस ने उन्हें कैसे कमतर बनाकर रखा। चाहे राजेंद्र प्रसाद की बात हो, पटेल की बात हो या सुभाषचंद्र बोस की बात हो। ये उनकी उपलब्धियों की चर्चा कम करते हैं।

मतलब यह कि हर बार वे सिर्फ नेहरू को ही याद करते हैं, इन महापुरुषों को नहीं। ये नहीं बताते कि चम्पारण सत्याग्रह से लेकर संविधान निर्माण तक राजेंद्र बाबू की क्या भूमिका रही। पटेल ने कैसे किसानों के हित की लड़ाईयां लड़ी। सुभाष बाबू ने कैसे देश के बाहर आज़ाद हिन्द फौज जैसी सेना को विस्तार दिया। इनके लिए ये तमाम महापुरुष सिर्फ इसलिये महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कभी नेहरू से इनका कोई विवाद था। ये अभी भी इनके कंधे पर बंदूक रखकर नेहरू और कांग्रेस पर गोलियां चलाने के बहाने ढूंढते हैं। बाकी ये महापुरुष इनके लिए किसी और मतलब के नहीं हैं।

अगर मतलब होता तो इन्होंने राजेंद्र बाबू की जयंती पर मेधा दिवस मनाने की घोषणा कर दी होती। उनकी पोती तारा सिन्हा लंबे समय से इस बात की मांग कर रही हैं। उन्होंने केन्द्र सरकार से भी मांग की थी कि देश के पहले राष्ट्रपति के नाम पर एक दिवस तो हो ही सकता है। मगर केन्द्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने इन्हें यह कह कर टरका दिया कि 2034 में जब राजेंद्र प्रसाद की 150वीं जयंती मनाई जायेगी, तब इस सवाल पर विचार करेंगे। बताईये, यही है इनका सम्मान।

सच तो यह है कि कोई भी व्यक्ति गुण और दोष दोनों से बनता है। अवगुण नेहरू में भी थे तो राजेंद्र बाबू में भी। चम्पारण सत्याग्रह और किसान महासभा का इतिहास पढ़ते हुए ऐसे कई तथ्य सामने आये जो राजेंद्र बाबू की छवि धूमिल करने वाले थे। मगर जब उनके व्यक्तित्व पर समेकित रूप से देखते हैं तो उनका सकारात्मक पक्ष का पलड़ा भारी दिखता है। नेहरू और राजेंद्र प्रसाद में विचार का झगड़ा था, इसमें कोई बुराई नहीं। ये दोनों कभी देश की जनता के हित के खिलाफ नहीं हुए। राजेंद्र बाबू ने बिहार के किसानों के लिए कई बड़े काम किये।

अगर आप सचमुच राजेंद्र बाबू को याद करना चाहते हैं तो उस युवा वकील को याद कीजिये जिसने गांधी के प्रभाव में एक झटके में अपनी जबरदस्त वकालत की प्रक्टिस को छोडक़र सादगी भरे जीवन को अपना लिया और देश के लिए खुद को समर्पित कर दिया। अगर आप उन्हें इस बात के लिए याद करते हैं कि उनकी नेहरू से क्या अदावत थी तो आप उनका सम्मान कम अपमान अधिक कर रहे हैं।

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