राजनीति

रजनीकांत: राजनीति में आने में जिन्हें 25 साल लग गए
04-Dec-2020 8:37 PM
रजनीकांत: राजनीति में आने में जिन्हें 25 साल लग गए

दिल्ली, 04 दिसम्बर | रजनीकांत की राजनीति में रूचि के बारे में तमिलनाडु के लोगों को पहली बार साल 1996 में पता चला. उस समय जयललिता तमिलनाडु की मुख्यमंत्री थीं. उनके दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरण के विवाह समारोह ने देश भर में बेहिसाब ख़र्च की वजह से सुर्ख़ियां बटोरी थीं.

रजनीकांत ने तब खुलकर कहा था कि सरकार में बहुत भ्रष्टाचार है और इस तरह की सरकार को सत्ता में नहीं होना चाहिए.

वैसे साल 1995 में रजनीकांत ने पहली बार किसी राजनीतिक मुद्दे पर अपनी राय ज़ाहिर की थी. एमजीआर कड़गम पार्टी के नेता आरएम वीरप्पन की मौजूदगी में एक समारोह में रजनीकांत ने तमिलनाडु में 'बम-कल्चर' के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में फैले 'बम-कल्चर' की ज़िम्मेदारी राज्य की सरकार को लेनी चाहिए.
साल 1996 में मूपनार ने कांग्रेस छोड़कर तमिल मनीला कांग्रेस नामक पार्टी बनाई. उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी जिसकी बागडोर पीवी नरसिंह राव के हाथ में थी. कांग्रेस पार्टी तमिलनाडु में एआईएडीएमके के साथ गठजोड़ करना चाहती थी. इसके विरोध में मूपनार ने अपनी तमिल मनीला कांग्रेस पार्टी बनाई, जिसने डीएमके के साथ हाथ मिलाया.

चुनाव में समर्थन

रजनीकांत ने इस गठजोड़ का खुलकर समर्थन किया. ये पहला मौक़ा था जब रजनीकांत ने किसी पार्टी के लिए अपने समर्थन का एलान किया.

एआईएडीएमके की सरकार के प्रति उस समय लोगों के मन में काफ़ी असंतोष था. इससे डीएमके को राज्य के चुनाव में शानदार जीत मिली और वो सत्ता में आई. कहा जाता है कि इस जीत में रजनीकांत के समर्थन ने अहम भूमिका अदा की थी. उनके फ़ैंस ने चुनावों के दौरान डीएमके गठबंधन और मूपनार पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन में काम किया.

साल 1998 में रजनीकांत ने संसदीय चुनावों के दौरान डीएमके गठबंधन का समर्थन किया. लेकिन उन्हें पहले जैसा समर्थन नहीं मिला. एआईएडीएमके ने भारी बहुमत से जीत दर्ज की. इसके बाद धीरे-धीरे रजनीकांत ने सत्तारूढ़ एआईएडीएमके पार्टी की आलोचना करना कम कर दिया.

फिर जब साल 2002 में कावेरी जल विवाद चरम पर था, कुछ राजनीतिक दलों ने कहा कि रजनीकांत कर्नाटक से आते हैं, इसलिए इस मामले पर अपनी राय ज़ाहिर नहीं करते हैं. इस आरोप के बाद रजनीकांत ने तमिलनाडु फ़िल्म इंडस्ट्री की ओर से आयोजित भूख-हड़ताल में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई और एलान किया कि उनका समर्थन तमिलनाडु के लोगों के लिए है. उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी ओर से एक करोड़ रुपये दान देने की घोषणा भी की थी.

साल 2004 में जब बाबा फ़िल्म बनी, उसमें रजनीकांत के धार्मिक नेतृत्व और पॉलिटिक्स में एंट्री को दिखाया गया. लेकिन डॉक्टर रामदॉस के नेतृत्व में पीएमके पार्टी ने इस फ़िल्म की स्क्रीनिंग में बाधा डाली.

कई जगहों पर पार्टी समर्थकों और रजनीकांत के फै़ंस के बीच झड़पें हुईं. तब रजनीकांत ने चेन्नई के राघवेंद्र मैरिज हॉल में अपने फ़ैंस के साथ बैठक की और पीएमके के ख़िलाफ़ वोट डालने के लिए कहा. लेकिन इसका असर नहीं हुआ और पीएमके उम्मीदवार चुनाव में जीत गए.

राजनीतिक राय से दूरी बनाई

यही वो समय था जब रजनीकांत ने राजनीति में दख़ल और राजनीतिक राय ज़ाहिर करने से बचना शुरू कर दिया. हालांकि साल 2004, 2006 और साल 2008 की हर प्रेस मीट में उनसे राजनीतिक हालात के बारे में पूछा गया. लेकिन उन्होंने कभी सीधा जबाव नहीं दिया और कहा- "समय आने दीजिए, समय ही हमें जबाव देगा." इससे लोगों में उम्मीदें जगीं और अगले छह साल इसी तरह बीत गए.

फिर साल 2014 में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस ने संसदीय चुनावों में नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर आगे बढ़ाया. मोदी ने चेन्नई में रजनीकांत के आवास पर मुलाक़ात की.

मुलाक़ात के बाद रजनीकांत ने कहा, "मोदी एक ग्रेट लीडर और अच्छे प्रशासक हैं. मैं उन्हें चुनाव में सफल होने के लिए शुभकामना देता हूं." हालांकि रजनीकांत ने भारतीय जनता पार्टी का नाम नहीं लिया.

साल 2014 में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता को जब आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में 14 दिन के लिए जेल भेजा गया, इस बारे में उनकी राय पूछे जाने पर रजनीकांत ने बस एक शब्द कहा और वो शब्द था- "हैप्पी".

करुणानिधि और जयललिता का निधन

पांच दिसंबर 2017 को बीमारी की वजह से जयललिता का निधन हो गया. करुणानिधि ख़राब सेहत की वजह से सक्रिय राजनीति से दूर होने लगे और सात अगस्त 2018 को उनका भी निधन हो गया.
रजनीकांत ने 31 दिसंबर 2017 को करुणानिधि से मुलाक़ात की थी और प्रेस को बताया था कि उन्होंने राजनीति में आने के बारे में करुणानिधि से चर्चा की है. उन्होंने ये भी बताया था कि करुणानिधि ने उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी हैं. तब इससे संकेत मिला था कि रजनीकांत सक्रिय राजनीति में आ रहे हैं, लेकिन फिर बात आई-गई हो गई.

साल 2019 में जब रजनीकांत से उनके राजनीतिक समर्थन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वो किसी का समर्थन नहीं कर रहे हैं और उनका फ़ैन क्लब इस चुनाव में नहीं लड़ेगा. उन्होंने ये भी कहा कि वो साल 2021 में तमिलनाडु के आगामी विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. लेकिन उसके बाद उनके इर्द-गिर्द पार्टी की कोई गतिविधि नज़र नहीं आई और राजनीतिक दलों ने उनकी आलोचना भी की.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ईके पलानीसामी, राज्य के मंत्री, बीजेपी नेता और डीएमके नेता भी अक्सर ये कहते रहे, "पहले उन्हें पार्टी तो बनाने दीजिए फिर हम इस बारे में बात करेंगे. पार्टी बनाने का हक़ हर किसी को है."

तमिलनाडु के कुछ मंत्री तो यहां तक कहते थे कि ये वैसा ही है जैसे कि बच्चे के पैदा होने से पहले ही उसका नाम रख दिया जाए.

साल 1991 से राजनीति में रुचि का रजनीकांत का जो सफ़र शुरू हुआ, वो वर्ष 1996 में चुनावी राजनीति में दिलचस्पी तक जा पहुंचा. लेकिन उसे परिपक्व और आधिकारिक घोषणा तक पहुंचने में साल 2020 तक का वक़्त लग गया.(bbc.com/hindi)

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