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फ्रांस में कट्टरपंथ विरोधी नए कानून पर मुसलमानों को एतराज
09-Dec-2020 6:44 PM
फ्रांस में कट्टरपंथ विरोधी नए कानून पर मुसलमानों को एतराज

PHOTO CREDIT DW.COM

(DW.COM)

फ्रांस, 09 दिसंबर | इरफान ठक्कर और उमर अहमद पेरिस के पास सेंट-प्री में रहते हैं और अहमदिया मुसलमान समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. 30 साल के ठक्कर इमाम हैं और स्थानीय मस्जिद में नियमित रूप से इमामत करते हैं.  डीडब्ल्यू से बातचीत में ठक्कर कहते हैं, "मैं फ्रेंच हूं.. और फिर भी मुझे यहां गैर मुसलमान को यह बात बार बार समझानी पड़ती है. बहुत से लोग सोचते हैं कि इस्लाम फ्रांस से मेल नहीं खाता, लेकिन यह सच नहीं है."

पास ही बैठे अहमद भी ठक्कर की बात से सहमति जताते हैं. वह कहते हैं, "हमारे साथ ऐसा बर्ताव होता है जैसे कि हम किसी और देश के नागरिक हैं, किसी और नस्ल के लोग हैं. इसकी वजह यह है कि मीडिया इस्लाम के बारे में तभी बात करता है जब कहीं पर कोई आतंकवादी हमला होता है."

इन दोनों को हाल में दिए गए फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के उस भाषण पर एतराज है जिसमें उन्होंने कहा था कि इस्लाम संकट में है और साथ ही उन्होंने "कट्टरपंथी इस्लामी अलगाववाद" की बात भी की. ठक्कर कहते हैं, "वह ऐसा कैसे कह सकते हैं. यह तो बहुत ज्यादा कलंकित करने वाली बात है."

अहमद और ठक्कर का कहना है कि फ्रांस की सरकार जो नए कदम उठाने जा रही है उनसे समाज में मुसलमानों का अलगाव और बढ़ेगा.

मस्जिदों की निगरानी

फ्रांस में हाल में पेरिस और नीस के आसपास तीन आतंकवादी हमले हुए जिनमें कुल चार लोग मारे गए और दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. इसके बाद ही फ्रांस की सरकार ने कट्टरपंथ की रोकथाम के लिए नए उपायों के बारे में सोचा है. सरकार ने लगभग 50 मुस्लिम संगठनों और 75 मस्जिदों की निगरानी बढ़ा दी है. फ्रांस का इरादा ऐसे लगभग 200 कट्टरपंथियों को देश से बाहर निकलाने का भी है जो फ्रांस के नागरिक नहीं हैं.

बुधवार को फ्रांस की कैबिनेट में पेश होने वाले बिल के तहत देश में सभी मस्जिदों की निगरानी बढ़ाई जाएगी. उन्हें मिलने वाली वित्तीय मदद और इमामों की ट्रेनिंग पर भी नजर रखी जाएगी. इसके साथ ही इंटरनेट पर नफरत फैलाने वाली सामग्री पोस्ट करने के खिलाफ भी नियम बनेंगे और सरकारी अधिकारियों को धार्मिक आधार पर डराने धमकाने पर जेल की सजा का प्रावधान भी होगा. यह बिल 2021 के शुरू में संसद में पहुंच सकता है जिसके कुछ महीनों बाद इसे कानून की शक्ल दी जा सकती है.

ठक्कर और अहमद मस्जिदों और संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त इमामों की निगरानी के खिलाफ नहीं हैं. अहमद कहते हैं, "यह हमारे भी हित में है कि इन कट्टरपंथी लोगों के खिलाफ कुछ किया जाए, जिनका इस्लाम को लेकर हमारी सोच से कोई वास्ता नहीं है. हमें भी अपने परिवारों को उनसे बचाना है."

मुसलमानों पर कंलक

आसिफ आरिफ एक वकील हैं और उनका संबंध भी अहमदिया समुदाय से है. उन्होंने एक किताब भी लिखी है जिसका शीर्षक है: फ्रांस में मुसलमान होने का मतलब. वह कहते हैं, "अब आतंकवादियों को मस्जिदों में कट्टरपंथी नहीं बनाया जाता, बल्कि यह काम इंटरनेट और अंतरराष्ट्रीय नेटवर्कों के जरिए होता है."

आरिफ का कहना है कि फ्रांस की सरकार के कदमों से मुसलमानों की छवि को और नुकसान होगा. उनकी राय है, "आतंकवाद से लड़ने के लिए हमारे पास पहले ही पर्याप्त कानून हैं, जिन्हें आप दुनिया के सबसे सख्त आतंकवाद रोधी कानूनों में से एक मान सकते हैं." वह कहते हैं, "हमारी आजादी पर और पाबंदी लगाने वाले नए कानून लाने की बजाय सरकार को मौजूदा कानूनों को ही ठीक से लागू करना चाहिए."

दूसरी तरफ फ्रांस की सरकार इससे इनकार करती है कि वह इस्लाम को निशाना बना रही है. फ्रांस के राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता ने एक हालिया प्रेस कांफ्रेंस में डीडब्ल्यू को बताया, "हम इस्लाम से भयभीत नहीं हैं." उन्होंने कहा, "हम सिर्फ अपने गणतंत्र के मूल्यों को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं." प्रवक्ता का कहना है कि कुछ मस्जिदें इंटरनेट पर नफरत भरी वाली सामग्री फैला रही हैं और उन्होंने इस बारे में पेरिस के पास स्थित ग्रांड मॉस्क ऑफ पेंटिन का जिक्र किया. इस मस्जिद ने एक वीडियो पोस्ट किया था जिसमें इतिहास पढ़ाने वाले सैमुएल पेटी की निंदा की गई थी. अपनी क्लास में पैगंबर मोहम्मद के कार्टून दिखाने के लिए हाल में पेटी की गला काट कर हत्या कर दी गई थी. 18 साल के एक चेचन मुसलमान ने अक्टूबर में पेटी का हत्या की.

वोटों की राजनीति

फ्रांस के शहर मार्से में इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज ऑन अरब एंड मुस्लिम वर्ल्ड में राजनीति विज्ञानी फ्रांसुआ बुरगा कहते हैं कि जब बात धर्म की आती है तो सरकार तटस्थ नहीं रह पाती. वह फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों को निशाना बनाते हुए कहते हैं, "वह दक्षिणपंथियों और धुर दक्षिणपंथियों को खुश करने के लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं क्योंकि उन्हें 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में इन लोगों के वोट चाहिए."

बुरगा कहते हैं कि माक्रों को यह बात स्वीकार करनी ही होगी कि कट्टरपंथ फैलने में कुछ हिस्सेदारी तो देश की भी है. वह बताते हैं, "जब बात नौकरी की आती है तो मुसलमानों के साथ भेदभाव होता है और वे इस देश में खुद को अलग थलग पाते हैं." बुरगा कहते हैं कि ऐसे हालत में कुछ लोग कट्टरपंथ की तरफ चले जाते हैं. वह कहते हैं, "इस तरह की समस्याओं को मानने से हमारे इस देश में कट्टरपंथ से निपटने में मदद मिलेगी."

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