अंतरराष्ट्रीय

चीन और रूस की सामरिक नजदीकियों से बढ़ती चिंताएं
26-Dec-2020 1:04 PM
चीन और रूस की सामरिक नजदीकियों से बढ़ती चिंताएं

चीन और रूस की सामरिक नजदीकियां बीते सालों में और बढ़ गई हैं. संयुक्त राष्ट्र से लेकर एशिया प्रशांत के क्षेत्र में यह करीबी ज्यादा साफ दिखाई देती है. हाल में बॉम्बर जहाजों की संयुक्त गश्त ने कई देशों की चिंता बढ़ा दी है.

  डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-

चीन और रूस के बीच साझा सामरिक समझ पिछले कई बरसों से लगातार बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में इन दोनों के बीच समन्वय तो देखते ही बनता है. बीते दस सालों में यह समझ और मजबूत हुई है - खास तौर से जब मामला अमेरिका या उसके सैन्य गठजोड़ के एशियाई साथियों से जुड़ा हो. दक्षिण कोरिया इस सामरिक समीकरण में खास तौर पर कमजोर पड़ जाता है. अमेरिका के एशियन अलायंस के दूसरे साथियों - जापान और आस्ट्रेलिया के मुकाबले दक्षिण कोरिया की स्थिति काफी अलग है. इस संदर्भ में उत्तर कोरिया का दक्षिण कोरिया और अमेरिका के प्रति लड़ाकू रवैया और उसके चीन और रूस के साथ दोस्ताना और कुछ हद तक अलायंस पार्टनर जैसे सम्बंध मामले को खासा पेचीदा बना देते हैं. परेशानी का सबब यह भी है कि अमेरिका का अलायंस पार्टनर होने के बावजूद जापान और दक्षिण कोरिया के बीच आपसी खटपट भी काफी है.

उत्तर पूर्व एशिया के इन देशों की इस आपसी खींचतान के बीच चीन और रूस के बढ़ते सैन्य समन्वय का ताजा उदाहरण हाल ही में तब देखने को मिला जब 22 दिसम्बर को चीन और रूस की वायु सेनाओं ने पश्चिमी प्रशांत महासागर क्षेत्र में संयुक्त एयर पेट्रोलिंग मिशन को अंजाम दिया.

रूस की वायुसेना के अनुसार उसके टीयू – 95 स्ट्रैटेजिक बॉम्बर जहाजों  ने चीन के 4 एच-6के बाॉम्बर जहाजों के साथ मिलकर पूर्वी चीन सागर और जापान सागर पर साथ - साथ उड़ान भरी और गश्त लगाई. रूस और चीन की इस इलाके में की गयी यह दूसरी ऐसी गतिविधि थी. पिछली बार इन दोनों देशों ने ऐसी ही साझा गश्त जुलाई 2019 में लगाई थी. इस दिलचस्प साझा गश्त में शामिल छह लड़ाकू विमान दोकदो द्वीपसमूहों के ऊपर से भी गुजरे. यह द्वीपसमूह, जिन्हें ताकेशिमा द्वीपों के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच सीमा विवाद का हिस्सा हैं. इन द्वीपों पर फिलहाल दक्षिण कोरिया का कब्जा है जिसे जापान स्वीकार नहीं करता और बरसों से इस पर अपना दावा बनाए हुए है.

दक्षिण कोरियाई सूत्रों के अनुसार चीनी लड़ाकू विमान पूर्वी चीन सागर में सोकोट्रा के पास से उसके सीमा क्षेत्र में घुसे. चीन इसे सुयन चट्टान का नाम देता है तो दक्षिण कोरिया इसे लेओडो चट्टान की संज्ञा देता है.

जापान और दक्षिण कोरिया के सीमाक्षेत्र में रूस और चीन के बाॉम्बर विमान क्या कर रहे थे इसका जवाब तो रूस और चीन ही दे सकते हैं, लेकिन इस हरकत से जापान और दक्षिण कोरिया के कान तो खड़े हो ही गए हैं. खास तौर से जापान जिसके सबसे बड़े सैनिक अड्डे और अमेरिका के एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़े सैन्य ठिकाने ओकिनावा के ऊपर भी यह बाॉम्बर विमान दिखाई पड़े. लिहाजा, आनन फानन में जापान  ने भी अपने लड़ाकू विमानों को रूस और चीन के विमानों के पीछे लगा दिया जिससे उसके प्रतिरोध का पता चल सके. इस घटना से जापान की चिंताएं भी बढ़ी हैं. जापानी विदेश सेवा के एक उच्च अधिकारी ने चीन की बढ़ती कारगुजारियों को ताइवान की सुरक्षा से जोड़ते हुए कहा है कि जापान की सुरक्षा ताइवान की सुरक्षा से सीधे जुड़ी है, और अमेरिका के बाइडेन प्रशासन को इस पर खास ध्यान देना होगा.

दक्षिण कोरिया के लिए भी यह चिंताजनक बात है क्योंकि रूस और चीन के विमान उसके एयर डिफेंस आइडेंटिफिकेशन जोन (एडीआईजेड) में घुस आए. दक्षिण कोरिया इन विमानों का कुछ कर तो नहीं पाया, और करे भी क्या? इन दो सैन्य महाशक्तियों को रोकने की क्षमता तो दक्षिण कोरिया में है नहीं, फिर भी उसने अपने लड़ाकू विमान किसी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए लगा रखे थे. दक्षिण कोरिया चीन जैसी सैन्य क्षमता और आक्रामक रवैया तो रखता नहीं कि वह भी घोषणा कर दे कि यदि कोई विमान उसके एडीआईजेड में घुसेगा तो उसे मार गिराया जाएगा. बहरहाल दक्षिण कोरिया के विदेश और रक्षा मंत्रालयों ने चीन और रूस के अपने समकक्षों को अपनी चिंताओं से अवगत कर दिया है, जिनका हासिल कुछ नहीं होना है यह भी सब को पता है. दक्षिण कोरिया ने यह भी कहा कि चीनी और रूसी विमान उसके एडीआईजेड में घुसे तो सही लेकिन किसी वायुक्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया. अब एक तुलनात्मक रूप से कमजोर, दुश्मनों से घिरा और शांतिप्रिय देश इससे ज्यादा कह भी क्या सकता है?

अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार रूस और चीन के इस साझा एयर पेट्रोलिंग को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अक्टूबर 2020 में दिए गए उस बयान से भी जोड़ कर देखते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि रूस और चीन के बीच व्यापक स्तर पर सैन्य सहयोग और अलायंस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

इस साझा एयर पेट्रोलिंग से कुछ बातें तो बिल्कुल साफ हैं. पहली यह कि आने वाले समय में चीन और रूस के बीच सैन्य सहयोग और बढ़ेगा जिसका सीधा असर जापान और दक्षिण कोरिया की सुरक्षा नीतियों और चिंताओं पर पड़ेगा.

जापान और दक्षिण कोरिया के बीच विवादों के चलते इन दोनों ही देशों के पास अमेरिका का मुंह ताकने के अलावा कोई और रास्ता नहीं दिखता. हालांकि यह भी साफ है कि अगर जापान और दक्षिण कोरिया पर दबाव बढ़ता है तो वह आपसी सहयोग की तरफ भी बढ़ सकते हैं लेकिन अमेरिकी हस्तक्षेप के बिना यह संभव नहीं होगा.

इस एयर पेट्रोलिंग का तीसरा और महत्वपूर्ण संदेश बाइडेन प्रशासन के लिए है. उत्तर पूर्व एशिया में अमेरिकी प्रभुत्व बनाये रखना बाइडेन प्रशासन के लिए एक कठिन चुनौती होगा. उत्तर कोरिया का मसला तो एक सिरदर्द है ही. अपने साथियों की चिंताओं को दूर करने के साथ साथ अमेरिका को अपने दोस्तों को नजदीक लाने की कोशिश भी करनी पड़ेगी.

जहां तक भारत का सवाल है तो रूस और चीन के बीच बढ़ते सैन्य सहयोग के इस पर भी दूरगामी परिणाम होंगे. चीन के साथ पिछले दस महीनों से गलवान घाटी और आसपास के इलाकों में चल रहे भारत – चीन सीमा गतिरोध, और अमेरिका और क्वाड के अन्य सदस्यों से बढ़ती सैन्य नजदीकियों के बीच रूस से भारत की दोस्ती अक्सर सवालों के घेरे में आ जाती है. रूस के साथ अपने सैन्य सहयोग को द्विपक्षीय धुरी पर रखना और अमेरिका, पाकिस्तान, या चीन के साथ अपने या रूस के संबंधों से भारत-रूस संबंधों को प्रभावित ना होने देना भारतीय विदेश नीति के समक्ष एक चुनौती है जिससे निपटने को प्राथमिकता देना एक बेहद जरूरी है. 

(राहुलमिश्रमलायाविश्वविद्यालयकेएशिया-यूरोपसंस्थानमेंअंतरराष्ट्रीयराजनीतिकेवरिष्ठप्राध्यापकहैं)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news