विचार / लेख

किसान आंदोलन सफल हो अगले साल के लिए दुआ है
31-Dec-2020 2:24 PM
किसान आंदोलन सफल हो अगले साल के लिए दुआ है

-कनुप्रिया

इन दिनों किसानों के कई वीडियोज़ देखे, उनकी बातें सुनीं, और ये मेरे लिये अचरज भरी ख़ुशी की बात थी कि जिन किसानों के लिये हमारे मन मे छवि गऱीब, लाचार, अनपढ़ और बहकाए बरगलाए जाने लायक व्यक्ति की होती है वो न सिफऱ् अपने मुद्दे को बेहतरीन तरीके से समझते हैं बल्कि विश्व राजनीति, भारत सरकारों द्वारा किये गए समझौते, वर्तमान सरकार द्वारा की जाने वाली कारस्तानियों और अपने हक़ को भी तथाकथित पढ़े लिखे समझदार मध्यम वर्ग से बहुत बेहतर तरीके से जानते समझते हैं, उस मध्यम वर्ग से अधिक जो यह समझता है कि वह निजीकरण की आग की आँच से इसलिये बहुत दूर रहेगा क्योंकि उसके पास ठीक ठाक पूँजी है।

जबकि मीडिया राहुल गाँधी पर शोर मचा रहा है,यह मुद्दे से भटकाने भर के तत्कालीन प्रयास से अधिक कुछ साबित नही होने वाला है, बल्कि यह साबित करता है कि कॉंग्रेस और राहुल गाँधी अगर इस आंदोलन के समर्थन में खड़े हैं तो यह सराहनीय है मगर  किसान उनके बल पर यह आंदोलन नही कर रहे हैं। इससे विपक्षी / कॉंग्रेसी साजि़श का आरोप भी बेकार सिद्ध होता है।

इस आंदोलन की सफलता बिल के वापस लेने में भले दिखाई देती हो मगर अपने बने रहने में यह जिस तरह के विमर्श को बनाए रख रहा है वह महत्वपूर्ण है। मीडिया के प्रचारतंत्र के बूते भटकाए जाने वाले झूठ और बहानो की उम्र ज़्यादा नही होती। राहुल भले विदेश चले गये हों मगर प्रधानमंत्री ख़ुद दिल्ली और उसके आसपास उद्घाटन करते घूम रहे हैं इस सच को मीडिया चिल्ला चिल्ला कर अगर न भी बोल रहा हो मगर दिखता तो है ही। और ऐसे कई सचो पर से जो उघडऩे के लिये पूरा वक़्त चाहते हैं आंदोलन की बढ़ती हुई उम्र लगातार सूचनाओं, चिंतन और  विमर्श के जरिये भ्रम के पर्दो को हटाए जाने के लिये पर्याप्त समय देती रहेगी, यह आंदोलन की कम बड़ी सफलता नहीं।

ऊब और थकान हम मध्यम वर्ग की दुविधा हो सकती है मगर जिनके लिये सवाल जीने मरने के हों उनके पास थकने के विकल्प नही होते, 6 महीने भी डटे रहने की किसानों की बात से तो यही लगता है। इस बीच जड़त्व के शिकार लोगों के वैचारिक- व्यवहारिक बाँध भी टूटेंगे, और पैरों के बंधन भी, तब सम्भव है आंदोलन को अपेक्षित बल वहाँ से भी प्राप्त हों जहाँ से उम्मीद अभी कम है। धीरे धीरे राजस्थान, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के किसान भी शामिल हो ही रहे हैं।

2020 महामारी का साल है तो आंदोलनों का साल भी है, यह साल कई मायनों में मील का पत्थर है जो इससे पहले के सालों से इसके बाद के सालों को अलग करता है। इस साल की सामाजिक गतिविधियों ने हमे और जागरूक किया है, वैचारिक रूप से समृद्ध किया है। कई व्यक्तिगत दुखों, परेशानियों और अर्थ व्यवस्था को लगे बड़े धक्के के बीच 2020 अगर दुनिया के सबसे बड़े किसान आंदोलन के रूप में जाना जाएगा तो इस साल की यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं। यह आंदोलन सफल हो अगले साल के लिए दुआ है।

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