संपादकीय
मध्यप्रदेश के एक प्रमुख और बड़े शहर जबलपुर में म्युनिसिपल ने बगीचे में आने पर टिकट लगाई है। किसी बगीचे में दस रूपए, किसी में बीस रूपए की टिकट लगाई गई है, दुपहिया खड़े करने के लिए बीस रूपए से लेकर पचास रूपए तक देने होंगे, और महीने भर बगीचे में जाने के लिए तीन सौ रूपए का मासिक पास बनवाना पड़ेगा। इसे ऑक्सीजन टैक्स कहा गया है। जाहिर है कि जबलपुर के लोग इसका जमकर विरोध कर रहे हैं।
कोई स्थानीय संस्था इस कदर बेवकूफ हो सकती है, यह उसकी एक गजब की मिसाल है। अभी कुछ ही समय पहले तक तो देश भर में म्युनिसिपल दवाखाने भी चलाती थीं, और कई जगहों पर अस्पताल भी। किसी शहर को साफ रखना, वहां पर बगीचा बनाना, तालाब साफ रखना, और लोगों के घूमने-फिरने की जगह विकसित करना, मैदान का रख-रखाव करना म्युनिसिपल की बुनियादी जिम्मेदारियों में आता है। यह सिलसिला अंग्रेजों के समय से चले आ रहा है। आज हालत यह है कि जबलपुर में अगर कोई परिवार अपने चार लोगों के साथ बगीचे में घूमने जाए तो उसे बारह सौ रूपए महीने का पास बनवाना पड़ेगा। इसे ऑक्सीजन टैक्स करार दिया गया है। अब एक तरफ तो मध्यप्रदेश की सत्तारूढ़ भाजपा के नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से इंडिया को फिट रहने का आव्हान करते हैं, और दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी के प्रदेश में बगीचे की खुली हवा में सांस लेने के लिए टैक्स लगाया जा रहा है।
जब शासन-प्रशासन अपनी बुनियादी जिम्मेदारियों से दूर हो जाए, सरकारी स्कूलें बंद करने लगे, सरकारी अस्पताल बंद करने लगे, हाईवे पर टोल-टैक्स के बाद अब शहरों में ऑक्सीजन टैक्स लगाने लगे तो मान लेना चाहिए कि यह जनकल्याणकारी सरकार नहीं रह गई, यह कारोबारी सरकार रह गई है जो कि इंसानी फेंफड़ों का टेंटुआ मरोडक़र उससे उगाही कर रही है। किसी म्युनिसिपल को पैसों की कमी पड़ रही है तो उसे अपनी फिजूलखर्ची में किफायत बरतनी चाहिए, अपने भ्रष्टाचार को घटाना चाहिए, शहर के बड़े महंगे कारोबारियों से अधिक टैक्स लेना चाहिए, कमाई के दूसरे साधन जुटाने चाहिए जिनका बोझ संपन्न तबका उठा सके। आज शहरों में संपन्न तबका तो सैकड़ों या हजारों रूपए महीने की फीस देकर महंगे एयरकंडीशंड जिम में जा सकता है, लेकिन मध्यमवर्गीय और गरीबों के जाने के लिए तो सिर्फ सरकारी बगीचे, तालाब के किनारे, और खेल के मैदान रहते हैं। वहां पर इस किस्म का मनमानी टैक्स लगाकर जबलपुर म्युनिसिपल अपनी बेवकूफी के अलावा कुछ उजागर नहीं कर रहा।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से जबलपुर प्रदेश के हाईकोर्ट का शहर रहा है। आज भी मध्यप्रदेश का हाईकोर्ट जबलपुर में है। वहां के लोगों को इस ऑक्सीजन या फेंफड़ा टैक्स के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर करनी चाहिए ताकि अदालत से म्युनिसिपल को फटकार लग सके। एक तरफ तो शहरों को भट्टी में तब्दील करने वाले बढ़ते चले जा रहे एयरकंडीशनरों पर म्युनिसिपल कोई टैक्स नहीं लगातीं। अपने आपको ठंडा रखने के लिए शहर की हवा में जलती-सुलगती लपटों को फेंकने वाले एसी पर्यावरण को बिगाडऩे के एक सबसे बड़े जिम्मेदार हैं। लेकिन शहर की गर्मी को सीधे-सीधे बढ़ाने वाले ऐसे एसी पर म्युनिसिपल या पर्यावरण का कोई टैक्स नहीं लगता। आबादी का एक फीसदी से भी कम हिस्सा एसी का इस्तेमाल करता है, और बाकी 99 फीसदी आबादी पर गर्म हवा झोंक देता है। अगर जबलपुर या किसी और म्युनिसिपल को कोई मौलिक टैक्स लगाकर अपने खर्चों की भरपाई करनी भी थी, तो उन्हें सिर्फ संपन्न तबके के इस्तेमाल वाले एसी या ऐसे दूसरे सामानों पर टैक्स लगाना था। अपनी सेहत ठीक रखने के लिए बगीचे जाने वाले हर आय वर्ग के लोगों पर ऐसा भारी-भरकम फेंफड़ा-टैक्स लगाना मूर्खता की पराकाष्ठा है। हमें जरा भी शक नहीं है कि जबलपुर हाईकोर्ट तुरंत ही इस टैक्स को खारिज कर देगा। लोगों को थोड़ी सी मशक्कत करनी पड़ेगी, और एक जनहित याचिका लगानी पड़ेगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)