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जन्मदिन पर याद : धरम पवन मन लोभा
01-Jan-2021 12:30 PM
जन्मदिन पर याद : धरम पवन मन लोभा

  पवन दीवान का जन्मदिन 1 जनवरी  

-कनक तिवारी

विज्ञान महाविद्यालय रायपुर के छात्र के रूप में पवन दीवान की तरुण महत्वाकांक्षाओं से रूबरू होने का शिक्षक होने के नाते अवसर मिला। मेरे लिए पवन दीवान का निजी मूल्यांकन करना अलग तरह का रोमांचक आत्मीय अनुभव वृत्तांत है। वह मुझे पूरी कक्षा से अलग नजर आया। पूछने पर उसने बताया कि वह संस्कृत और हिन्दी विषयों की समझ तो रखता है लेकिन साथ साथ अंगरेजी भाषा और साहित्य में भी पारंगतता चाहता है। सफेद पाजामा और आधी बांह की सफेद कमीज पहने बिना चप्पलों के एक छात्र को गैलरी वाली कक्षा की सबसे अंतिम और ऊंची सीट पर बैठे मैंने पहली बार देखा। उसकी आंखों में अंगरेजी में दिए जा रहे लेक्चर और अंगरेजी साहित्य की बानगियों के अनुरूप सचेतन ढल रही भाव भंगिमाओं को बूझने की विनोदप्रिय उत्सुकता साथ साथ झांक रही थी। मुझे उस छात्र ने आकर्षित किया। मैं प्राध्यापक होने के पहले महाविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष रह चुका था। छात्रों से मेरे निजी रिश्ते का समीकरण अन्य अध्यापकों से भिन्न था। मैं चपल, नटखट, शैतान और राजनीतिप्रिय विद्यार्थियों का मार्गदर्शक ज्यादा था। इसी अनौपचारिक पृष्ठभूमि में मैंने पवन दीवान से उसकी कठिनाइयों, जिज्ञासाओं और प्रतिप्रश्नों के सिलसिले में लगातार बातचीत की।

मैंने पवन से कहा कि अनिच्छुक रास्ते पर चलकर अपना जीवन सार्थक नहीं कर सकते। तुमने कांटों भरा रास्ता चुना है। वह तुम्हारे व्यक्तित्व को फूल की पांखुड़ियों जैसा नहीं खिला सकता। एक एडवेंचर करो या नहीं। खतरा तुम्हें उठाना ही होगा। मैं तुम्हें अंगरेजी साहित्य का पाठ पढ़ा सकता हूं लेकिन जीवन का नहीं। कोई रास्ता है तो जो दिखाई तो दे रहा है। पवन दीवान ने हिम्मत की। पवन दीवान ने अपनी सुदृढ़ हनु के साथ कहा कि सर यह काम तो मैं करके रहूंगा। आप मुझे आशीर्वाद दीजिए। सांसारिक उपलब्धियों को ठुकराकर धर्म संस्कृति के रास्ते पर चलना उसे मनुष्योचित जोखिमभरा और श्रेयस्कर लगा। इस व्यक्ति ने अपने जीवन को एक दुर्लभ बीजक बनाने के बजाय खुली किताब की तरह जनमानस का पाठ्यक्रम बना दिया।

पवन दीवान को राजनीति के शोषकों ने बार बार गुमराह नहीं किया होता तो वे भी धरती पर और बड़ा काम करने ही आए थे। सत्तामूलक राजनीति मनुष्य की नैसर्गिक प्रतिभा का शोषण और क्षरण करती है। पवन दीवान भी इसी साजिश का शिकार हुए। राजनेताओं और पार्टियों ने उनका अपने कंधों के रूप में इस्तेमाल किया। कुटिलता से परिचय नहीं होने के कारण पवन दीवान सियासी षड़यंत्र के हेतु को समझ नहीं पाते थे। यह अजीब है कि दो परस्पर विरोधी पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को उनकी बार बार जरूरत महसूस होती थी। इस लिहाज से वे एकमेव द्वितीयो नास्ति की तरह के अनिवार्य विकल्प बने रहे।

पवन दीवान की सबसे लोकप्रिय सियासी कविता में इस बात की चेतावनी बिखेरी गई है कि यदि शोषण बदस्तूर कायम रहा तो छत्तीसगढ़ तेलंगाना बन सकता है। मैंने उलाहना देकर पूछा कि राजसत्ता तो अत्याचार बन्द नहीं करेगी। पवन दीवान ने तात्कालिक उत्तर दिया सर आप देखना छत्तीसगढ़ तेलंगाना बनकर रहेगा। बस्तर में पसरे नक्सलवाद और उससे जुड़े तब के आंध्रप्रदेश (और अब तेलंगाना भी) उस विभीषिका को झेलते रहे हैं जो कवि की कविता की आशंका से बढ़कर भारत की भूगोल का सच हो गया है। कभी पवन दीवान ने जनता पार्टी की एक सभा में इन्दिरा जी को लेकर कटाक्ष किया था कि तुम दुर्गा हो तो हमको क्या मुर्गा समझती हो। मैंने कहा था कि सन्यासी होकर मुर्गा शब्द के बदले गुर्गा भी तो कह सकते थे। एक ठहाका लगाकर उन्होंने कहा। ‘सर आपने मुझे अंगरेजी साहित्य पढ़ाया। हिन्दी साहित्य पढ़ाते तो मैं शब्दों के चयन में आपसे सलाह लेता रहता।‘

अपनी ग्रामीण शैली में निखालिस छत्तीसगढ़ी बोलते पवन दीवान में धार्मिक विषयों की अद्भुत मीमांसा करने का हुनर नैसर्गिक गुण था। सामाजिक जीवन वैसे ही तरह तरह के विषाद, विद्रूप और विसंगतियों से भरा होता है। पवन दीवान की उपस्थिति में हर व्यक्ति का जीवन स्पंदनशील हो उठता था। वह स्पंदन खामोश हो गया है। दूर दूर तक कोई दूसरा पवन दीवान छत्तीसगढ़ के जीवन को उस तरह जीवंत बनाता चले। इसकी संभावना क्षीण है।

बाद के वर्षों में प्रसिद्ध संन्यासी, राजनीतिज्ञ, धार्मिक प्रवचनकर्ता और कवि साहित्यकार बनकर भी वह विनम्रता में मेरे चरण स्पर्श करता रहा। एक बार उसके चुनाव की जनसभा में मैंने भाषण दिया। तब भी उसने इसी मुद्रा में चरण स्पर्श कर मेरे गुरु होने को महत्वपूर्ण बना दिया। उनके सफल, संघर्षमय, यशस्वी और कई बार विरोधाभासी होते जीवन पर टिप्पणियां करने का आज वक्त नहीं है। मुझे भगवा वस्त्र धारण करने के पहले के पवन दीवान की कुछ कम सफेद पाजामे और आधी बांह की कमीज पहने अपने व्यक्तित्व को तराशने की जद्दोजहद का निहायत औसत छत्तीसगढ़िया युवक केवल याद भर नहीं आ रहा है। यादों में कील की तरह बिंधकर नहीं होने की टीस देता रहेगा।

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