संपादकीय
देश भर के सिनेमाघरों में फिल्में पहुंचाने वाले डिस्ट्रीब्यूटरों ने सलमान खान से एक खुली अपील की है कि वे अपनी नई फिल्म राधे को इंटरनेट पर, ओटीटी पर जारी करने के बजाय उसे सिनेमाघरों में रिलीज करें ताकि अब तक मंद या बंद पड़े सिनेमाघरों में जिंदगी लौट सके। देश भर के सिनेमाघर ठप्प होने से दसियों लाख लोग बेरोजगार हुए हैं, और उन्हें किसी एक रौशनी की तलाश है। सलमान खान एक कामयाब अभिनेता और निर्माता हैं, और उनकी फिल्में हिन्दू और मुस्लिम, सभी समुदायों के दर्शकों के बीच बड़ी लोकप्रिय रहती हैं। उनकी फिल्में बड़े बजट की भी रहती हैं जिनसे डिस्ट्रीब्यूटरों को अच्छा कारोबार होने की उम्मीद है। सिनेमाघर बंद होने से न सिर्फ हिन्दुस्तान में बल्कि बाकी दुनिया में भी इंटरनेट पर फिल्मों का कारोबार लगातार बढ़ा है, और लोग घरों में स्मार्ट-टीवी पर, कम्प्यूटर या स्मार्टफोन पर ओटीटी-प्लेटफॉर्म पर फिल्में देखने लगे हैं। इस नए कारोबार ने लॉकडाऊन के दौरान छलांगें लगाकर नए ग्राहक बनाए हैं, और उम्मीद से अधिक कमाई की है। लेकिन सिनेमाघरों के साथ जुड़े हुए दसियों लाख रोजगार हिन्दुस्तान में ऐसे हैं जिनकी कोई जगह इंटरनेट पर आने वाली फिल्मों में नहीं है।
यह तो एक चर्चित कारोबार है इसलिए यह खबरों में भी आया और इसी बहाने हम भी इस पर लिख रहे हैं, लेकिन आज पूरी दुनिया में कोरोना-लॉकडाऊन ने कारोबार के तौर-तरीके बदलकर रख दिए हैं। एक आम और औसत हिन्दुस्तानी शहर की हर संपन्न बस्ती में लोग सुबह उठते बाद में हैं, उनकी कॉलोनियों में फेरी लगाकर फल-सब्जी बेचने वाले, दूसरे कई किस्म के सामान बेचने वाले लोग आवाज लगाने लगते हैं। यह सब लॉकडाऊन के पहले नहीं था, लेकिन लॉकडाऊन ने इतने रोजगार खाए, इतने कारोबार बंद करवाए कि लोगों को दूसरे काम-धंधे तलाशने पड़े। लॉकडाऊन अब खत्म हो गया है, लेकिन कारोबार पटरी पर नहीं लौटा है। स्कूल-कॉलेज बंद चल रहे हैं, और उनमें न फीस आ रही है, न तनख्वाह दे पाना मुमकिन हो रहा है। इमारतों का किराया लग रहा है, न्यूनतम बिजली बिल लग रहा है, बसों या दूसरे ढांचे का बैंक का कर्ज खड़ा है, और अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है। पूरे हिन्दुस्तान में लाखों होटल बंद हो गए हैं, रेस्त्रां अब तक जिंदा रहने लायक कमाई नहीं कर रहे हैं, मनोरंजन के कार्यक्रम करने वाले बेरोजगार घर बैठे हैं, और शादी-ब्याह के जलसे, उनकी पार्टियों का इंतजाम करने वाले लगभग बेरोजगार हैं।
यह तो ठीक है कि कोरोना की दहशत अगले साल-छह महीने में इतनी घट सकती है कि लोग फिर से पुराने ग्राहक बन जाएं, लेकिन जैसा कि कल ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा है कि अगला कोई वायरस कोरोना से अधिक खतरनाक भी आ सकता है। ऐसा अगर होगा तो वह एक बार फिर लॉकडाऊन जैसी नौबत लाएगा। आज दुनिया के तमाम काम-धंधों को, कारीगरों से लेकर मजदूर तक लोगों को ऐसे विकल्प ढूंढकर और सोचकर रखने हैं जो कि अगली किसी महामारी के वक्त, या किसी और किस्म की आर्थिक मंदी के दौर में उनको जिंदा रख सकें। आज जब दीवारों पर पेंट करने वाले लोग सब्जी बेचने पर मजबूर हैं, कहीं बैंड पार्टी के लोग झाड़ू बेचते घूम रहे हैं, स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षक सडक़ किनारे चाय ठेला लगा रहे हैं, तो दुनिया को एक वैकल्पिक जिंदगी के बारे में सोचकर रखना होगा, और उसके लिए तैयार भी होना होगा।
दुनिया की पिछली महामारी सौ बरस पहले आई थी, और उसके दस बरस बाद दुनिया की सबसे बड़ी मंदी भी आई थी जो कि दस बरस चली थी। अमरीका जैसा सबसे बड़ा कारोबारी देश उस दौरान जितने किस्म के आर्थिक और सामाजिक पतन का शिकार हुआ, वह इतिहास में अच्छी तरह दर्ज है। आज दुनिया में जो लोग जिंदा हैं, उनमें से गिने-चुने लोगों ने ही महामारी और मंदी का वह एक के बाद एक चला दौर देखा था। वे अब मौत के इतने करीब हैं कि उस वक्त का तजुर्बा आज किसी के लिए सबक भी नहीं है। इसलिए आज की दुनिया को एक संक्रामक रोग और एक आर्थिक मंदी-बंदी से जूझना पहली बार सीखने मिल रहा है। लोगों को ऐसे और, अगले दौर के लिए तैयार रहना चाहिए, अपने आपको बेहतर तैयार करना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि वह बंदी-मंदी अभी के मुकाबले अधिक कड़ी और बड़ी हो। इस बार भी बड़े कारोबारियों से लेकर छोटे मजदूरों तक तमाम लोगों ने लॉकडाऊन की मार झेली है, इससे सबक लेकर सबको यह सोचना चाहिए कि अगले किसी बुरे दौर में लोगों की कौन सी जरूरतें बुनियादी बनी रहेंगी, और कौन सी जरूरतों को लोग छोडऩे के लिए मजबूर होंगे। इसका कुछ तजुर्बा तो इस बार भी हुआ है, और लोगों को यह सोचना चाहिए कि अगली नौबत आने पर वे, उनका कारोबार, या उनका रोजगार किस तरह जिंदा रहेंगे। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)