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पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट का आदेश, फिर से बनाई जाए हिंदू संत की समाधि और पैसा तोड़ने वाले गैंग से वसूला जाए
06-Jan-2021 9:10 AM
पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट का आदेश, फिर से बनाई जाए हिंदू संत की समाधि और पैसा तोड़ने वाले गैंग से वसूला जाए

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ़्ते के अंदर हिंदू संत की समाधि का पुनर्निमाण शुरू करने का आदेश दिया है.

इसके साथ ही ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत की सरकार को कोर्ट में रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है.

हाल ही में ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के करक ज़िले में हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि को स्थानीय लोगों की एक नाराज़ भीड़ ने ढहा दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए मंगलवार को सुनवाई की. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गुलज़ार अहमद की अगुवाई में तीन सदस्यों की बेंच ने मामले की सुनवाई की.

पुलिस आईजी सनाउल्लाह अब्बासी और ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के मुख्य सचिव डॉक्टर काज़ीम नियाज़ सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद थे.

सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ

पुलिस के आईजी सनाउल्लाह अब्बासी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में अब तक 92 पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया है. इसमें एसपी और डीएसपी भी शामिल हैं.

इस घटना को अंजाम देने वाले 109 लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया है. घटना स्थल के पास एक सौ पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं.

उन्होंने बताया कि एक मौलवी शरीफ़ ने भीड़ को हिंसा के लिए भड़काया.

सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद ने कहा कि पुलिस अधिकारियों को निलंबित करना ही काफ़ी नहीं है.

चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद ने कहा कि सरकार के आदेश का किसी भी स्थिति में पालन होना चाहिए. इस घटना ने पाकिस्तान की छवि को दुनिया भर में ख़राब किया है.

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने दो हफ़्ते के अंदर समाधि को फिर से बनाए जाने का काम शुरू करने का आदेश दिया.

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण कार्य के लिए पैसा मौलवी शरीफ़ और उनके 'गैंग' से वसूलने की बात कही.

ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के चेयरमैन ने कोर्ट को बताया कि समाधि की देखभाल हिंदू समुदाय की ओर से किया जाता है और चूंकि इस समाधि के आस-पास कोई हिंदू आबादी नहीं है इसलिए यह समाधि बंद पड़ा हुआ है और कोई बोर्ड स्टाफ़ यहाँ नियुक्त नहीं किया गया है.

हिंदुओं के लिए पवित्र स्थल

पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के चेयरमैन रमेश कुमार ने कोर्ट से कहा कि सैकड़ों हिंदू हर साल समाधि स्थल पर आते हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि साल 1997 में मौलवी शरीफ़ ने यहाँ मंदिर तोड़ दिया था. तब हिंदू वहाँ अपने पैसे से मंदिर बनाना चाहते थे लेकिन बोर्ड ने मना कर दिया था.

अल्पसंख्यक आयोग के शोएब सुदले शिकायत करते हैं कि प्रॉपर्टी बोर्ड ने इसे बचाने के लिए जो करना चाहिए था वो नहीं किया.

उन्होंने कहा कि यह जगह हिंदुओं के लिए वैसे ही पवित्र स्थल है जैसे सिखों के लिए करतारपुर. ना कि सिर्फ़ यह बात है कि इस घटना से पाकिस्तान की बेइज़्ज़ती हुई है.

ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के मुख्य सचिव डॉक्टर काज़ीम नियाज़ ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वस्त किया कि प्रांतीय सरकार मंदिर को फिर से बनाने का ख़र्च उठाएगी.

लेकिन चीफ़ जस्टिस ने उन्हें समाधि में आग लगाने वालों से पैसे वसूलने के लिए कहा है.

उन्होंने कहा कि वो ऐसा दोबारा करेंगे अगर जब तक कि उनकी जेब से पैसे नहीं निकलते हैं.

कार्रवाई और रिपोर्ट

चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद ने इवैक्यू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के चेयरमैन को आदेश दिया है कि वो तत्काल घटना स्थल का दौरा करें और पुनर्निमाण का कार्य शुरू करवाएं.

चीफ़ जस्टिस गुलज़ार अहमद ने छोड़े गए वक़्फ़ संपत्तियों का पूरा लेखा-जोखा भी माँगा. इसके साथ ही निर्देश दिया कि वो बंद पड़े मंदिरों और खुले मंदिरों का विवरण भी दें.

ख़ाली पड़ी वक़्फ़ संपत्तियों पर जिन अधिकारियों ने अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है, उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का भी निर्देश चीफ़ जस्टिस ने दिया.

उन्होंने दो हफ़्तों के अंदर ये सारी रिपोर्टें बेंच के सामने पेश करने को कहा है.

इस मामले में अगली सुनवाई दो हफ़्तों के लिए स्थगित कर दी गई है. बाद में इस पर विस्तार से फ़ैसला आने की उम्मीद है.

क्या है विवाद की वजह

पिछले हफ़्ते ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत के करक ज़िले के टेरी गांव में हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि को स्थानीय लोगों की एक नाराज़ भीड़ ने ढहा दिया था.

पुलिस के मुताबिक़ स्थानीय लोग एक हिंदू नेता की ओर से इस समाधि से लगते हुए अपना घर बनाने को लेकर नाराज़ थे.

इलाक़े के रूढ़िवादी लोग इस समाधि स्थल का शुरू से ही विरोध करते रहे थे. साल 1997 में इस समाधि पर पहली बार स्थानीय लोगों ने हमला किया था.

हालांकि बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह की प्रांतीय सरकार ने इसका पुनर्निमाण कराया था.

सरकार के समर्थन और कोर्ट के फ़ैसले के बावजूद टेरी में हालात तनावपूर्ण बने रहे.

समाधि के पुनर्निमाण शुरू करने से पहले स्थानीय प्रशासन ने टेरी कट्टरपंथी लोगों से लंबी बातचीत की थी.

साल 2015 में ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह के एडिशनल एडवोकेट जनरल वक़ार अहमद ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट में इस सिलसिले में एक रिपोर्ट पेश की थी.

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग जब पाँच शर्तों पर तैयार हो गए थे, उसके बाद ही समाधि के पुनर्निमाण की इजाज़त दी गई.

ऐसा कहा जाता है कि समझौते की एक शर्त ये भी थी कि हिंदू समुदाय के लोग टेरी में अपने धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे.

वे वहां पर केवल अपनी धार्मिक प्रार्थनाएं कर सकेंगे.

समाधि पर उन्हें न तो बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा करने की इजाज़त होगी और न ही समाधि स्थल पर किसी बड़े निर्माण कार्य की मंज़ूरी दी जाएगी.

इसके अलावा हिंदू समुदाय के लोग उस इलाक़े में ज़मीन भी नहीं ख़रीद सकेंगे और उनका दायरा केवल समाधि स्थल तक ही सीमित रहेगा.

यह समाधि इवैक्यू ट्रस्ट बोर्ड की संपत्ति है.

इसका निर्माण उस जगह कराया गया था जहां हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज का निधन हुआ था और साल 1919 में यहीं पर उनकी अंत्येष्टि की गई थी.

उनके अनुयायी यहां पूजा-पाठ के लिए हर साल आते रहे थे. साल 1997 में ये सिलसिला उस वक़्त रुक गया जब ये मंदिर ढहा दिया गया.

इसके बाद हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज के अनुयायियों ने मंदिर के पुननिर्माण की कोशिशें शुरू कीं.

हिंदू समुदाय के लोगों का आरोप था कि एक स्थानीय मौलवी ने सरकारी ट्रस्ट की प्रॉपर्टी होने के बावजूद इस पर क़ब्ज़ा कर लिया था.

यह संपत्ति औक़ाफ़ विभाग से ताल्लुक़ रखती है जिसका काम प्रांत में धार्मिक स्थलों की देखरेख करना है.

आख़िरकार सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद साल 2016 में फिर से यह समाधि बन पाई थी. (bbc)

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