विचार / लेख
-कनुप्रिया
बहुत साल पहले एक फि़ल्म देखी थी ‘अकेले हम अकेले तुम।’ फिल्म का नायक गायक होता है और नायिका गायिका, यूँ तो हर फिल्म में नायक नायिकाएँ बहुत अच्छा ही गाते हैं मगर इस फिल्म के किरदारों की ये खासियत अलग से दिखाई गई। शादी के बाद नायक अपने गायिकी के करियर को बढ़ाने के लिए प्रयासरत हो जाता है और नायिका जो समान रूप से प्रतिभाशाली है घर और बेटे को संभालने में व्यस्त हो जाती है, मगर वो चाहती है कि नायक जब अपने लिए काम खोजे तो उसके लिए भी खोजे, इसी मुद्दे पर उनका विवाद बढ़ जाता है और नायिका घर छोडक़र चली जाती है।
अब नायक पर जिम्मेदारी आ जाती है कि वो बेटा सम्भाले, वो अपने करियर पर फोकस नही कर सकता, वो छोटी मोटी नौकरी ढूँढता है और बच्चा संभालता है वहीं नायिका अपनी प्रतिभा के कारण करियर के ऊँचे पायदान पर पहुँचती है।
फिल्म में जो यह रोल रिवर्सल था वो यह दिखाता है कि नायक के साथ जो बीता वो unusual था इसलिये दर्शक उससे सहानुभूति भले कर लें मगर यही अगर usual pattern होता यानी नायिका घर बच्चा सम्भालती रहती और उसका करियर ख़त्म हो जाता तो किसी को उसमे कुछ भी असामान्य नही लगता। समाज के ठ्ठशह्म्द्वह्य ऐसे ही होते हैं वो असामान्य को भी सामान्य की महसूस कराते हैं।
संसार के किसी भी जीव के प्राथमिक कर्तव्यों में होता है उसकी प्रजाति बचाना, और इसके लिये जीव क्या क्या नही करते, ड्डठ्ठद्बद्वड्डद्य द्मद्बठ्ठद्दस्रशद्व ऐसी ऐसी जानकारियों से भरा है कि चकित हो जाएँ। जैकलीन कैनेडी पर एक डॉक्युमेंट्री देखी थी वो vogue में जूनियर सब एडिटर की तरह काम कर चुकी थीं और वाशिंगटन नैशनल हेराल्ड में फोटोग्राफर का कर रही थीं जब वो जॉन कैनेडी से मिली और शादी के बाद एक दृश्य में वो कहती हैं कि मुझसे कहा गया बच्चे पैदा करना और सम्भालना स्त्री का पहला कर्तव्य है और यह अमेरिका की फर्स्ट लेडी कह रही थी 60 के दशक में।
कई धर्म जो स्त्रियों को दूर रखने की बात करते हैं जिनका कहना है कि स्त्रियों के कारण ध्यान और मोक्ष में दिक्कत आती है वो सब मुख्यत: पुरुषोनमुखी धर्म हैं, जो पुरुष के मोक्ष और ज्ञान की राह में स्त्री की स्थिति देखते हैं, क्योकि जिन कारणों से वो स्त्रियों को दूर रखने की बात करते हैं उन्ही कारणों से पुरुषों को दूर रखा जाता अगर उनकी प्राथमिकता में स्त्री का ध्यान और मोक्ष होता। मगर स्त्री मनुष्य प्रजाति के महत्वपूर्ण काम मे लगी थी।
ध्यान से ध्यान आया कुछ साल पहले एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने , मैं नाम भूल रही हूँ, स्त्रियों के प्रयोगशाला में काम करने पर रोक लगाने की बात कही थी, उसके अनुसार इससे पुरुष रिसर्चर्स का ध्यान बंटता था, कमाल है कि उसने स्त्री रिसर्चर्स के ध्यान बंटने की बात नहीं कही थी। और लोग कहते हैं कि ध्यान और मोक्ष स्त्री के बस का नहीं।
यह सच है कि स्त्री हमेशा ही मनुष्य सन्तति को जन्म देने और भविष्य के विश्व नागरिको के पालन पोषण की गुरुतर जिम्मेदारी को अपने कंधों पर ज़्यादा उठाती आई है और इसके बदले में उसे कम प्रतिभाशाली, कम योग्य, ध्यान मोक्ष के लायक नही , विज्ञान तकनीक जितनी बुद्धि नहीं, आदि तानो से नवाज़ा जाता रहा है। दरअसल उससे वाँछित सामाजिक दायित्व की पूर्ति करवाने का यह एक harrasment वाला तरीक़ा है कि उसे किसी दूसरे रास्ते के क़ाबिल ही न समझा जाये, वहीं दूसरा तरीका महानता वाला है जिसने उससे अति मानव होने की अपेक्षा की है कि वो अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं का गला भी पूरी तरह घोटे रखे, जबकि ज़रूरत बस इतनी भर थी इस मानव समाज मे उसके इस योगदान को समझा जाए, appreciate किया जाए और ज़्यादा से ज़्यादा सहयोग किया जाए।
एक मूर्ख समर्थक अपने नेता को गाली दिलवा देता है, जय श्रीराम के नारे ने राम के नाम को भय की वस्तु बना दिया, जिहाद की आक्रामकता ने इस्लाम पर सवाल उठवा दिए, यीशु तो ख़ुद सूली पर पहले ही चढ़े हुए थे, कल से एक बुद्धिस्ट की नासमझी के पीछे बेचारे बुद्ध गरियाये जा रहे हैं और बुद्ध बनाम यशोधरा स्त्री बनाम पुरुष का सवाल बना दिया गया, जबकि बुद्ध ने महत्वपूर्ण सामाजिक कर्तव्य निभाया और यशोधरा ने मातृत्व का। पितृसत्ता के विरोध का पुरुष बनाम स्त्री का झगड़ा हो जाना मानो सर फुटौव्वल के सिवा कहीं नही पहुँचना है, जबकि इसके विरोध का मामला महज स्त्री के हित तक सीमित नही। इस सबके बीच अभी तो बेचारे बुद्ध बख्शे जाएँ बाकी स्त्रियाँ तो अपना रास्ता इस सबके बीच से निकालना सीखती ही रहेंगी।