सामान्य ज्ञान

तुषारजनिकी क्या है ?
08-Jan-2021 12:40 PM
तुषारजनिकी क्या है ?

तुषारजनिकी या प्राशीतनी (अंग्रेज़ी-क्रायोजेनिक्स) भौतिकी की वह शाखा है, जिसमें अत्यधिक निम्न ताप उत्पन्न करने व उसके अनुप्रयोगों के अध्ययन किया जाता है। क्रायोजेनिक का उद्गम यूनानी शब्द क्रायोस से बना है जिसका अर्थ होता है शीत यानी बर्फ की तरह शीतल।
इस शाखा में (-150एसे., -238 एफै. या 123 कै.) तापमान पर काम किया जाता है। इस निम्न तापमान का उपयोग करने वाली प्रक्रियाओं और उपायों का क्रायोजेनिक अभियांत्रिकी के अंतर्गत अध्ययन करते हैं। यहां देखा जाता है कि कम तापमान पर धातुओं और गैसों में किस प्रकार के परिवर्तन आते हैं।  कई धातुएं कम तापमान पर पहले से अधिक ठोस हो जाती हैं। सरल शब्दों में यह शीतल तापमान पर धातुओं के आश्चर्यजनक व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान होता है। 
इसकी एक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक तत्वों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन और अन्य में मनुष्यों और पौधों पर प्रशीतन के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। कुछ वैज्ञानिक तुषारजनिकी को पूरी तरह कम तापमान तैयार करने की विधि से जोडक़र देखते हैं जबकि कुछ कम तापमान पर धातुओं में आने वाले परिवर्तन के अध्ययन के रूप में।
वैज्ञानिकों के अनुसार इसमें -180ए फारेनहाइट (-123ए सेल्सियस) से नीचे के तापमान पर ही अध्ययन किया जाता है। यह तापमान जल के प्रशीतन बिन्दु   से काफी नीचे होता है और जब धातुओं को इस तापमान तक लाया जाता है तो उन पर आश्चर्यजनक प्रभाव दिखाई देते हैं। इतना कम तापमान तैयार करने के कुछ तरीके होते हैं, जैसे विशेष प्रकार के प्रशीतक या नाइट्रोजन जैसी तरल गैस, जो अनुकूल दाब की स्थिति में तापमान को नियंत्रित कर सकती है। धातुओं को तुषारजनिकी द्वारा ठंडे किए जाने पर उनके अणुओं की क्षमता बढ़ती है।  इससे वह धातु पहले से ठोस और मजबूत हो जाते हैं। इस विधि से कई तरह की औषधियां तैयार की जाती हैं और विभिन्न धातुओं को संरक्षित भी किया जाता है। 
रॉकेट और अंतरिक्ष यान में क्रायोजेनिक ईंधन का प्रयोग भी होता है। तुषारजनिकी का प्रयोग जी एस एल वी रॉकेट में भी किया जाता है। जी.एस.एल.वी. रॉकेट में प्रयुक्त होने वाली द्रव्य ईंधन चालित इंजन में ईंधन बहुत कम तापमान पर भरा जाता है, इसलिए ऐसे इंजन क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन कहलाते हैं। इस तरह के रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस इंजन में हाइड्रोजन और ईंधन क्रमश: ईंधन और ऑक्सीकारक का कार्य करते हैं। ठोस ईंधन की अपेक्षा ये कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होते हैं और रॉकेट को बूस्ट देते हैं। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक आवश्यक होती है।   तुषारजनिकी संरक्षण की एक शाखा को क्रायोनिक कहते हैं।  

मांडूक्य उपनिषद
मांडूक्य उपनिषद, अथर्ववेदीय उपनिषद है जिसकी गणना प्रथम दस उपनिषदों में होती है। आकार की दृष्टिï से यह सबसे छोटा है।  इसमें केवल  बारह मंत्र हैं, लेकिन महत्व की दृष्टिï से इसका स्थान बहुत ऊंचा है।  इस उपनिषद में अनावश्यक विस्तार में जाए बिना आध्यात्मिक विद्या का निचोड़ थोड़े से मंत्रों में भर दिया गया है। इसमें जीव और विश्व की ब्रह्मïï से उत्पत्ति और लय तथा तीनों का तादात्म्य प्रतिपादित किया गया है । यह उपनिषद ओम की बड़ी विलक्षण व्याख्या करता है।  गौड़पादाचार्य 
 

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news