संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या सचमुच किसानों की जीत?
12-Jan-2021 4:17 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सुप्रीम कोर्ट का आदेश क्या  सचमुच किसानों की जीत?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने कल के रूख के मुताबिक आज केन्द्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है। इसके अलावा अदालत ने किसानों से बात करने के लिए एक कमेटी बनाई है जो उनकी मांगों पर चर्चा करेगी। कल ही इस मुद्दे पर हमने इसी जगह काफी खुलासे से लिखा था कि जजों का जुबानी रूख किसानों के लिए हमदर्दी का था। लेकिन आज का यह अंतरिम आदेश पहली नजर में केन्द्र सरकार के लाए हुए एकतरफा कानूनों पर अमल तो रोक रहा है, किसानों से बात करने की जरूरत भी बता रहा है, लेकिन देश के लोगों के मन में शक की कमी नहीं है। बहुत से लोग यह मान रहे हैं कि इस आदेश के बाद एक किस्म से किसान आंदोलन बेमतलब का दिखने लगेगा, और इससे कुल मिलाकर सरकार की नीयत और हसरत ही पूरी होते दिख रही है।

अभी तक सुप्रीम कोर्ट के आदेश, और आदेश के पहले की जुबानी चर्चा की जो जानकारी खबरों में आई है, उनके मुताबिक आंदोलन कर रहे किसान तो ऐसी कोई कमेटी बनाने के ही खिलाफ हैं, उनके वकील ने सुप्रीम कोर्ट जजों से कहा कि किसान तो ऐसी किसी कमेटी में पेश भी नहीं होंगे। इस पर अदालत का यह रूख आया है कि अगर किसान समस्या का समाधान चाहते हैं, तो हम ये नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी के सामने पेश नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कृषि अर्थशास्त्र और कृषि से जुड़े हुए चार लोगों की एक कमेटी बनाई है, और यह भी साफ किया है कि अदालत इस कमेटी का काम चाहती है। अदालत ने यह भी कहा है कि कृषि कानूनों पर अमल पर रोक अंतहीन नहीं रहेगी।

कल सुप्रीम कोर्ट के जजों ने जिस अँदाज में केन्द्र सरकार के वकील की जुबानी खिंचाई सरीखी की थी, अदालत का वही अंदाज नए संसद भवन सहित 20 हजार करोड़ के सेंटर विस्ता निर्माण के खिलाफ बहस के दौरान भी था। लेकिन जब फैसला आया तो केन्द्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ तमाम आपत्तियां खारिज कर दी गईं, और सरकार को निर्माण की इजाजत दे दी गई थी। अभी पिछले पखवाड़े का ही यह फैसला लोगों को भूला नहीं है, और सोशल मीडिया पर कल का अदालती रूख भारी संदेह के साथ देखा जा रहा था, और उसे सरकार की मर्जी का एक जाल माना जा रहा था। आज भी सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश लोगों के मन से शक खत्म नहीं कर पा रहा है, और कई लोगों का यह मानना है कि यह सरकार के पक्ष को मजबूत करने वाला, और किसान आंदोलन को बीच में ही बेअसर कर देने वाला आदेश है।

हम सुप्रीम कोर्ट की नीयत पर कोई शक नहीं कर रहे, और पहली नजर में उसके शब्दों को ही उसकी भावना भी मानकर चल रहे हैं। लेकिन हाल के महीनों में, बीते एक-दो बरसों में सुप्रीम कोर्ट के बहुत सारे फैसले ऐसे आए जो कि सरकार के रूख से सहमति रखने वाले थे, और खुद न्यायपालिका के मौजूदा और भूतपूर्व कई लोगों ने इन फैसलों को बड़ा कमजोर इंसाफ माना था। अभी भी सेंट्रल विस्ता पर सुप्रीम कोर्ट की इजाजत तीन में से एक जज की असहमति वाली है, और इस फैसले में शहरी विकास के बहुत से विशेषज्ञों को निराश भी किया है।

कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के आज के आदेश को किसानों की जीत बता रहे हैं। दूसरी तरफ किसानों के वकील ऐसी किसी कमेटी के खिलाफ थे, और अब अदालत के कहे मुताबिक किसानों को कमेटी के सामने ही अपनी बात रखनी होगी। कुल मिलाकर जो किसान सरकार के साथ अपनी बातचीत से निराश और असंतुष्ट थे, आंदोलन जारी रखने की जिद पर अड़े हुए थे, आज उन्हें सरकार के सामने से हटाकर एक कमेटी के हवाले कर दिया गया है, और यह किसानों की अदालती हार ही हुई है। यह हाल के बरसों का सबसे मजबूत किसान आंदोलन हो गया था, और यह किसान आंदोलन होने के साथ-साथ सिक्खों के मान-सम्मान से भी जुड़ गया था। यह पूरी नौबत अदालत के आज के अंतरिम आदेश से एकदम फीकी पड़ गई है, और इसे किसी भी शक्ल में किसानों की जीत मानना कुछ मुश्किल है। लेकिन यह आदेश केन्द्र सरकार के लिए बड़ी राहत लेकर आया है जिसे अब किसानों सेकिसी तरह की बात करने की जरूरत नहीं रह गई है। इसे कमेटी की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश होने, और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक राह देखनी है क्योंकि उसके बनाए हुए कानून खारिज तो हुए नहीं है, फैसले तक महज उनके अमल पर रोक लगी है जो कि बहुत बड़ी बात नहीं है।

कल सुप्रीम कोर्ट जजों ने जुबानी बातचीत में केन्द्र सरकार के वकील के मार्फत केन्द्र सरकार की काफी खिंचाई की थी, लेकिन आज यह अंतरिम आदेश आने पर यह साफ हो रहा है कि अदालत की नीयत चाहे जो हो, किसान आंदोलन की नियति अब कमजोर हो गई है। आगे देखें क्या होता है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

 

 

 

 

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