सामान्य ज्ञान
भारतीय प्रशासनिक सेवाएं , जिन्हें इंडियन सिविल सर्विस या संक्षिप्त में आई.सी.एस. नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा दी गयीं अभिजात वर्गीय नागरिक सेवाएं थीं, जो अब बदलकर अल्पकालिक नागरिक सेवाओं के रूप में उपस्थित हैं, हालांकि वर्तमान में इनका रूप एकदम भिन्न है।
ईस्ट इंडिया कंपनी के काल में, इन सेवाओं के प्रार्थी, एच.ई.आई.सी.एस (सम्मानित ईस्ट इंडिया कंपनी नागर सेवक) कहलाते थे। भारत में इस ब्रिटिश स्थापना काल में नागर सेवकों (सिविल सर्वैंट्स) के दो समूह होते थे-
1. उच्च पदस्थ-जो कम्पनी के साथ कॉन्वेनैंट्स में आये, उन्हें कॉन्वेनैंटेड सेवक कहते थे।
2. अनकॉन्वेनैंटेड-जो किसी ऐसे अनुबंध में बंधे नहीं थे। यह समूह प्राय: अपेक्षाकृत निम्नस्तर पर तैनात होता था।
यह भेदभाव, इम्पीरियल सिविल सर्विस ऑफ इंडिया के गठन, जो लोक सेवा आयोग (पब्लिक सर्विस कमीशन)1886-87 की सिफारिश से गठित हुई थी, के बाद समाप्त हो गया। लेकिन कॉन्वेनेटेड शब्द लम्बी अवधि तक सेवा संलग्न पद के लिये प्रयोग होता रहा। इम्पीरियल सिविल सर्विस नाम को सिविल सर्विस ऑफ इंडिया में बदल दिया गया। किन्तु इंडियन सिविल सर्विस पद बना रहा।
कुछ प्रमुख भारतीय आई सी एस अधिकारी हैं- सत्येंद्र टैगोर ,रोमेश दत्त ,बिहारी लाल गुप्ता , सुरेंद्रनाथ बैनर्जी , श्रीपाद बाजी ठाकुर, आनंदराम बरुआ, कृष्ण गोविंद गुप्ता (बाद में सर), बृजेंद्रनाथ डे, ज्ञानेंद्रनाथ गुप्ता, सतीश चंद्र मुखर्जी , गुरुसहाय दत्त , सुकुमार सेन, सत्येंद्रनाथ राय ,सुभाष चंद्र बोस (बाद में 1921 में त्यागपत्र ) देबेश दास आदि।