राष्ट्रीय
-सरोज सिंह
भारत में कोरोना का टीकाकरण शुरू हुए तीन दिन हो चुके हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ अब तक 3 लाख 81 हज़ार से ज़्यादा लोगों को कोरोना का टीका लग चुका है.
इसी बीच अब तक 580 लोगों को टीका लगने के बाद 'एडवर्स इफ़ेक्ट' (प्रतिकूल प्रभाव) देखने को मिला है. ये कुल लोगों को लगे टीके का मात्र 0.2 फ़ीसदी ही है. यानी कुल मिलाकर देखें तो 0.2 फ़ीसदी लोगों में टीका लगने के बाद परेशानी देखी गई.
फिर भी भारत सरकार पहले दो दिन में अपने टीकाकरण अभियान के लक्ष्य को केवल 64 फ़ीसदी ही हासिल कर पाई है. पहले दो दिन में सरकार तक़रीबन 3 लाख 16 हज़ार लोगों को कोरोना का टीका लगाना चाहती थी, लेकिन केवल 2 लाख 24 हज़ार लोगों को ही टीका लग पाया.
कई राज्यों में टीका लगवाने वाले लोग पहले दिन टीकाकरण केंद्र पर नहीं पहुँचे. दिल्ली की बात करें तो तय लोगों में से केवल 54 फ़ीसदी लोगों को ही टीका लगा.
तो क्या टीका लगने के बाद लोगों में एडवर्स इफ़ेक्ट दिखने की वजह से कम लोग टीका लगवा रहे हैं? या वजह कुछ और है?
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव डॉ. मनोहर अगनानी ने टीकाकरण के बाद होने वाले इस तरह के इफे़क्ट के बारे में विस्तार से समझाया.
उनके मुताबिक़, "टीका लगने के बाद उस इंसान में किसी भी तरह के अनपेक्षित मेडिकल परेशानियों को एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन कहा जाता है. ये दिक़्क़त वैक्सीन की वजह से भी हो सकती है, वैक्सीनेशन प्रक्रिया की वजह से भी हो सकती है या फिर किसी दूसरे कारण से भी हो सकती है. ये अमूमन तीन प्रकार के होते हैं- मामूली, गंभीर और बहुत गंभीर."
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उन्होंने बताया कि ज़्यादातर ये दिक़्क़तें मामूली होती हैं, जिन्हें माइनर एडवर्स इफ़ेक्ट कहा जाता है. ऐसे मामलों में किसी तरह का दर्द, इंजेक्शन लगने की जगह पर सूजन, हल्का बुख़ार, बदन में दर्द, घबराहट, एलर्जी और रैशेज़ जैसी दिक़्क़त देखने को मिलती है."
लेकिन कुछ दिक़्क़तें गंभीर भी होती हैं, जिन्हें सीवियर केस माना जाता है. ऐसे मामलों में टीका लगवाने वाले को बहुत तेज़ बुखार आ सकता है या फिर ऐनफ़लैक्सिस की शिकायत हो सकती है. इस सूरत में भी जीवन भर भुगतने वाले परिणाम नहीं होते. ऐसे गंभीर मामले में भी अस्पताल में दाख़िले की ज़रूरत नहीं पड़ती है.
लेकिन बहुत गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट में टीका लगने वाले व्यक्ति को अस्पताल में दाख़िल कराने की नौबत आती है. इन्हें सीरियस केस माना जाता है. ऐसी सूरत में जान भी जा सकती है या फिर व्यक्ति को आजीवन किसी तरह की दिक़्क़त झेलनी पड़ सकती है. बहुत गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट के मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं. लेकिन इसका असर पूरे टीकाकरण अभियान पर पड़ता है.
भारत में हुए अब तक के टीककारण अभियान के बाद केवल तीन लोगों को अस्पताल में दाख़िले की ज़रूरत पड़ी है, जिनमें से दो को छुट्टी दी जा चुकी है.
दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल के मेडिकल डॉयरेक्टर डॉ. बीएल शेरवाल के मुताबिक़, हर टीकाकरण अभियान में इस तरह के कुछ एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को मिलते हैं. पूरे टीकाकरण अभियान में 5 से 10 फ़ीसदी तक इस तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट का मिलना सामान्य बात है.
ऐनफ़लैक्सिस क्या है?
बीबीसी से बातचीत में डॉ. बीएल शेरवाल ने बताया कि जब टीकाकरण के बाद किसी व्यक्ति में गंभीर एलर्जी के रिएक्शन देखने को मिलते हैं तो उस स्थिति को ऐनफ़लैक्सिस कहा जाता है. इसकी वजह टीकाकरण नहीं होता है. किसी ड्रग से एलर्जी होने पर भी इस तरह की दिक़्क़त व्यक्ति में देखने को मिलती है.
ऐसी अवस्था के लिए एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन किट में इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे ऐसी ज़रूरत ना के बराबर ही पड़ती है. ये सीवियर केस एडवर्स इफ़ेक्ट के अंतर्गत आते हैं.
एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन प्रक्रिया में क्या होता है?
एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन से जुड़े तमाम मुद्दों के बारे में हमने बात की एम्स में ह्यूमन ट्रायल के प्रमुख डॉ. संजय राय से.
उन्होंने बताया कि एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन के लिए बाक़ायदा पहले से प्रोटोकॉल तय किए जाते हैं. ऐसे एडवर्स इफ़ेक्ट की सूरत में टीकाकरण केंद्र पर मौजूद डॉक्टर और स्टाफ़ को आपात स्थिति से निपटने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है.
उन्होंने बताया कि हर व्यक्ति को टीका लगने के बाद 30 मिनट तक टीकाकरण केंद्र पर इंतज़ार करने के लिए कहा जाता है, ताकि किसी भी तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट को मॉनिटर किया जा सके. हर टीकाकरण केंद्र में इसके लिए एक किट तैयार कर रखने की बात की गई है, जिसमें ऐनफ़लैक्सिस की अवस्था से निपटने के लिए कुछ इंजेक्शन, पानी चढ़ाने वाली ड्रिप और बाक़ी ज़रूरी समान का होना अनिवार्य बताया गया है.
किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए किसी नज़दीकी अस्पताल में ख़बर करनी है और किस तरह से उसके बारे में Co-WIN ऐप में पूरी विस्तृत जानकारी को भरना है, ये भी बताया गया है.
ऐसी किसी स्थिति से बचने के लिए ज़रूरी है कि टीके को सही तरह से सुरक्षित रखा जाए, व्यक्ति को टीका लगाने के पहले उसकी मेडिकल हिस्ट्री की पूरी जानकारी ली जाए. किसी ड्रग से एलर्जी की सूरत में भारत सरकार के नियमों के मुताबिक़ उन्हें कोरोना का टीका नहीं लगाया जा सकता.
टीका लगाने से पहले व्यक्ति को टीके के बाद होने वाली दिक़्क़तों के बारे में पहले से बताया जाए. सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के मुताबिक़ हर व्यक्ति को टीका लगाते वक़्त ऐसी तमाम जानकारियाँ दी जा रही हैं.
सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट
इतना ही नहीं, अगर बहुत गंभीर यानी सीरीयस एडवर्स इफ़ेक्ट होने पर किसी की मौत हो जाती है, तो इसके लिए नेशनल एईएफ़आई (AEFI) गाइडलाइन के हिसाब से जाँच की जाएगी, जिसके लिए बाक़ायदा डॉक्टरों का एक पैनल है.
अगर सीरीयस मामले में टीकाकरण के बाद व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती नहीं कराया गया था, तो मामले में परिवार की रज़ामंदी से पोस्टमॉर्टम कराने की बात कही गई है. अगर परिवार इसके लिए राज़ी ना हो, तो भी एक अलग फ़ॉर्म भरने और जाँच की ज़रूरत होती है.
टीकाकरण होने के बाद सीरियस एडवर्स इफे़क्ट के कारण अस्पताल में भर्ती होने पर मौत होती है, तो गाइडलाइन के मुताबिक़ पूरी प्रक्रिया की विस्तृत जाँच की जानी चाहिए. जाँच द्वारा ये स्थापित होता है कि ये एडवर्स इफ़ेक्ट वैक्सीन में इस्तेमाल किसी ड्रग की वजह से हुआ है या फिर वैक्सीन की क्वालिटी में दिक़्क़त की वजह से, या टीका लगाने के दौरान हुई गड़बड़ी की वजह से या ये किसी और तरह के संयोग की वजह से हुआ है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ हर एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन में गड़बड़ी की वजह को जल्द से जल्द सूचित किया जाना बेहद ज़रूरी है.
एडवर्स इफ़ेक्ट क्या होंगे ये कैसे तय होता है?
एम्स में ह्यूमन ट्रायल के प्रमुख डॉ. संजय राय के मुताबिक़, "फ़िलहाल एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन के जो भी प्रोटोकॉल तय किए गए हैं, वो अब तक के ट्रायल डेटा के आधार पर हैं. लॉन्ग टर्म ट्रायल डेटा के आधार पर आमतौर पर ऐसे प्रोटोकॉल तैयार किए जाते हैं. लेकिन भारत में कोरोना के जो टीके लगाए जा रहे हैं, उनके बारे में लॉन्ग टर्म स्टडी डेटा का अभाव है. इसलिए फ़िलहाल जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसी के आधार पर ये एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन प्रोटोकॉल तैयार किया गया है."
क्या हर टीकाकरण अभियान में एक जैसा ही एडवर्स इफ़ेक्ट होता है?
ऐसा नहीं है कि हर वैक्सीन के बाद एक ही तरह के एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को मिले. कई बार लक्षण अलग-अलग भी होते हैं. ये इस बात पर निर्भर करता है कि वैक्सीन बनाने का तरीक़ा क्या है और जिसको लगाया जा रहा है उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कैसी है.
जैसे बीसीजी का टीका देने के बाद उस जगह पर छाला जैसा उभार देखने को मिलता है. उसी तरह से डीपीटी के टीके के बाद कुछ बच्चों को हल्का बुख़ार होता है. ओरल पोलियो ड्रॉप देने पर किसी तरह का एडवर्स इफ़ेक्ट देखने को नहीं मिलता है. इसी तरह से कोरोना का टीका - कोविशील्ड और कोवैक्सीन के एडवर्स इफ़ेक्ट भी एक जैसे नहीं भी हो सकते हैं.
कोवैक्सीन और कोविशील्ड के एडवर्स इफ़ेक्ट क्या हैं?
कोवैक्सीन की ट्रायल प्रक्रिया को ख़ुद डॉ संजय राय काफ़ी नज़दीक से देखा है. उनके मुताबिक़ कोवैक्सीन में किसी तरह के गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट तीनों चरणों के ट्रायल में देखने को नहीं मिले हैं. हालांकि इसके तीसरे चरण में अभी पूरा डेटा नहीं आया है. तीसरे चरण में 25 हज़ार लोगों को ये वैक्सीन लगाया जा चुका है.
कोवैक्सीन के दौरान जो हल्के लक्षण देखने को मिले वो हैं- दर्द, इंजेक्शन लगने की जगह पर सूजन, हल्का बुख़ार, बदन में दर्द और रैशेज़ जैसी मामूली दिक़्क़तें. ऐसे लोगों की संख्या ट्रायल के दौरान 10 फ़ीसदी थी. 90 फ़ीसदी लोगों में कोई दिक़्क़त देखने को नहीं मिली थी.
भारत सरकार दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाती है, जिनमें देशभर के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को टीका लगाया जाता है. पोलियो टीकाकरण अभियान के दौरान तो भारत में तीन दिन में एक करोड़ बच्चों का टीकाकरण किया जाता है. अगर इतना बड़ा अभियान सालों से भारत चला पा रहा है, इसका मतलब है कि एडवर्स इफ़ेक्ट फ़ॉलोइंग इम्यूनाइज़ेशन का प्रोटोकॉल भारत में अच्छे से पालन किया जा रहा है.
एक भी एडवर्स इफ़ेक्ट होने का बुरा असर टीकाकरण अभियान पर ज़रूर पड़ता है.
क्या एडवर्स इफ़ेक्ट होने से लोग वैक्सीन लेने से घबराने लगते हैं? वैक्सीन हेज़िटेंसी के लिए ये एक कारण है?
अभी तक टीकाकरण की पूरी प्रक्रिया में केवल तीन ही मामले ऐसे आए हैं, जिनमें एडवर्स इफ़ेक्ट में व्यक्ति को अस्पताल में दाख़िल कराने की ज़रूरत पड़ी है.
वैसे वैक्सीन हेज़िटेंसी का सीधा एडवर्स इफ़ेक्ट से संबंध नहीं होता है. वैक्सीन को लेकर लोगों में हिचकिचाहट के कई कारण होते हैं. लोगों को वैक्सीन के बारे में सही जानकारी का पता ना होना इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कारण माना जाता है.
वैक्सीन की सेफ़्टी और एफ़िकेसी से जुड़े सवाल हों तो भी लोग टीका लगाने से हिचकते हैं. अक्सर वैक्सीन लगने की शुरुआत होने पर ये हिचक लोगों में देखने को मिलती है, फिर बीतते समय के साथ ये कम होते जाती है. लेकिन अगर एडवर्स इफ़ेक्ट में कोई गंभीर बात सामने आती है, तो लोग टीका लगवाने से परहेज़ कर सकते हैं, वर्ना ये मामूली दिक़्क़तें सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा होती हैं.
लोकल सर्कल्स नाम की एक संस्था पिछले कुछ समय से भारत में लोगों में वैक्सीन हेज़िटेंसी कितनी है, इसे लेकर ऑनलाइन सर्वे कर रही है. 3 जनवरी के आँकड़ों के मुताबिक़, भारत में 69 फ़ीसदी जनता को कोरोना वैक्सीन को लगाने को लेकर हिचकिचाहट है.
आंकड़े
ये सर्वे भारत के 224 ज़िलों के 18000 लोगों की ऑन-लाइन प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार किया गया है. इस संस्था के सर्वे के मुताबिक़, हर बीतते महीने के साथ भारत में लोगों में ये हिचकिचाहट बढ़ती जा रही है. लेकिन टीकाकरण अभियान शुरू होने के बाद लोगों में क्या ये हिचक बढ़ी है, इसके बारे में अभी कोई अध्यन नहीं हुआ है.
पूरी दुनिया में इस वक़्त कोरोना की नौ वैक्सीन्स को अलग-अलग देशों की सरकार ने मंज़ूरी दी है. इनमें से दो फ़ाइज़र और मोडर्ना वैक्सीन mRNA वैक्सीन हैं. इस तकनीक से निर्मित वैक्सीन का इस्तेमाल पहली बार इंसान पर किया जा रहा है. डॉ. संजय के मुताबिक़ इनके टीकाकरण के बाद कुछ गंभीर एडवर्स इफ़ेक्ट रिपोर्ट किए गए हैं.
बाक़ी चार वैक्सीन ऐसी हैं, जो वायरस को इन-एक्टीवेट कर बनाई गई हैं, जिनमें भारत बॉयोटेक की कोवैक्सीन और चीन वाली वैक्सीन शामिल हैं.
बाक़ी दो वैक्सीन ऑक्सफ़ोर्ड एस्ट्राज़ेनेका (कोविशील्ड) और स्पूतनिक हैं, उन्हें वैक्टर वैक्सीन कहा जा रहा है. mRNA वैक्सीन के अलावा किसी और वैक्सीन के इस्तेमाल में कोई सीरियस एडवर्स इफ़ेक्ट सामने नहीं आए हैं. (bbc.com)