संपादकीय

दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जब तक सब सुरक्षित नहीं, तब तक कोई सुरक्षित नहीं
19-Jan-2021 4:56 PM
दैनिक ‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : जब तक सब सुरक्षित नहीं,  तब तक कोई सुरक्षित नहीं

आज दो खबरें एक साथ आईं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्ल्यूएचओ, के प्रमुख ने कहा है कि दुनिया के गरीब देशों को अगर कोरोना वैक्सीन नहीं मिल पाएगी, तो बाकी दुनिया भी महफूज नहीं रहेगी। उन्होंने कहा है कि संपन्न और विपन्न देशों के बीच अगर वैक्सीन का जरूरत के मुताबिक बंटवारा नहीं हुआ तो यह महामारी धरती पर लंबे समय तक बनी रहेगी। उन्होंने एक महत्वपूर्ण बैठक की शुरूआत में यह चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि इस महामारी के जल्द खत्म होने की उम्मीदें खतरे में है क्योंकि संपन्न देश तमाम उपलब्ध टीके खरीदकर जमाखोरी कर रहे हैं, और गरीब देशों के लिए कुछ नहीं छोड़ रहे हैं। उन्होंने आंकड़े दिए हैं कि 49 संपन्न देशों में अब तक 3 करोड़ 90 लाख टीके लगाए जा चुके हैं, और एक गरीब देश ऐसा है जहां 25 हजार भी नहीं, कुल 25 टीके दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया एक बहुत बड़ी नैतिक नाकामयाबी के मुहाने पर खड़ी है, और संपन्न देशों के ऐसे स्वार्थ के दाम विपन्न देशों में गरीबों की जिंदगी से चुकाए जाएंगे। उनका यह मानना है कि संपन्न देशों की यह नीति खुद को शिकस्त देने की होगी कि गरीब देशों के अधिक जरूरतमंद लोगों की भी बारी टीकों के लिए बाद में आए।

दूसरी खबर भारत की है जिसमें अपने कुछ पड़ोसी देशों सहित कई दूसरे देशों को मुफ्त में टीका देने की घोषणा की है। भारत ने अफगानिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और मारीशस को करीब एक करोड़ टीके तोहफे में देने की तैयारी की है जिसकी औपचारिक घोषणा अभी बाकी है। भारत अपनी इस कार्रवाई से पड़ोसी देशों और भारत से जुड़े हुए दूसरे छोटे देशों में एक सद्भावना पैदा कर सकता है, या बढ़ा सकता है। यह वक्त ऐसा है जब भारत की आधी सदी पहले की वैक्सीन-निर्माण की शुरूआत का फायदा आज इस बढ़ी हुई क्षमता की शक्ल में मिल रहा है। देश में इतने टीके बनाने की क्षमता है कि वह कई दूसरे देशों के भी काम आ सके।

लेकिन टीके की सप्लाई से जुड़ी कुछ और बातों पर भी गौर करने की जरूरत है। भारत की कम से कम एक टीका कंपनी ने यह घोषणा की है कि वह जल्द ही बाजार में भी कोरोना-वैक्सीन उपलब्ध कराएगी। ब्रिटेन में आजकल में ही निजी खरीदी के लिए दवा दुकानों में वैक्सीन पहुंच रही है। अब डब्ल्यूएचओ की चेतावनी देखें तो यह साफ है कि बहुत से देशों के गरीबों को, और बहुत से गरीब देशों को वैक्सीन खरीदना शायद नसीब न हो सके। ऐसे में दुनिया के हर किस्म के संगठनों को अपने सदस्यों के माध्यम से ऐसा अभियान छेडऩा चाहिए कि लोग अपने परिवारों के लिए जितनी वैक्सीन पा रहे हैं, सरकार से मुफ्त में या बाजार से खरीदकर पा रहे हैं, उतनी ही वैक्सीन वे गरीब लोगों को दान भी करें। कुछ विश्वसनीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों को इस तरह के दान को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान छेडऩा चाहिए और दान देने के भरोसेमंद अकाऊंट भी शुरू करने चाहिए। जिस हिन्दुस्तान में पांच दिनों में लोगों ने राम मंदिर के लिए सौ करोड़ रूपए दान कर दिए हैं, उस हिन्दुस्तान में टीके के लिए दान करने वाले लोग भी जुटाए जा सकते हैं, अगर दान जुटाने वाले संगठनों के तरीके पारदर्शी हों, और उनकी साख अच्छी हो। ऐसी रकम विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्थाओं के रास्ते गरीब देशों तक भी जानी चाहिए। जिस तरह पोलियो के वायरस को पूरी धरती से खत्म करने के अभियान के बिना वह बेअसर था, और अब शायद एक या दो देशों में वह जरा सा बच गया है, बाकी खत्म हो चुका है, उसी तरह कोरोना को खत्म करने के लिए भी संपन्न देशों या संपन्न लोगों को विपन्न देशों और विपन्न लोगों का साथ देना होगा।

हमने पिछले एक बरस में यह देखा है कि महानगरों से घर लौटने वाले मजदूरों की मदद करने को सोनू सूद नाम के एक अभिनेता ने अकेले कितनी कोशिश की, और मजदूरों की मदद पूरी हो जाने के बाद किस तरह उसने अपनी क्षमता और ताकत का इस्तेमाल दूसरे जरूरतमंद बीमारों और बच्चों के लिए किया है। ऐसी मजबूत साख वाले लोगों को अपने-अपने दायरे में गरीबों की मदद करनी चाहिए, और गरीब देशों के अधिक जरूरतमंद स्वास्थ्य कर्मचारियों, फ्रंटलाईन वर्करों को टीके भेजने की नैतिक जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए। भारत में अब कंपनियों को सीधे टीके बेचना शुरू होने वाला है ताकि वे अपने कर्मचारियों को पहले टीके लगवा सकें। कंपनियों को अपने सीएसआर बजट से सामाजिक सरोकार पूरा करते हुए आसपास के कुछ और लोगों को भी टीके लगवाना चाहिए ताकि सरकार पर बोझ कम हो सके। यह मौका अलग-अलग धर्मगुरूओं, आध्यात्मिक गुरूओं, सामाजिक और कारोबारी नेताओं के सामाजिक सरोकारों को तौलने का भी है कि वे अपने दायरे से परे बाकी लोगों के लिए क्या करने जा रहे हैं। यह महामारी आज तो दुनिया में कुछ काबू में आते दिख रही है, लेकिन लोगों को एक-दूसरे की मदद की आदत अगर पड़ेगी, तो वह आगे भी किसी दूसरे संक्रामक रोग या किसी प्राकृतिक विपदा के वक्त काम आएगी। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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