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सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस शरद ए बोबड़े ने मंगलवार को एक सुनवाई के दौरान कहा कि कमिटियों के गठन को लेकर लोगों की समझ अजीब है. अग्रेज़ी अख़बार 'द हिन्दू' ने इस ख़बर को प्रमुखता से प्रकाशित किया है.
जस्टिस बोबडे ने कहा, "एक विषय को लेकर किसी व्यक्ति की पहले की राय को आधार बनाकर किसी ख़ास मुद्दे की जाँच के लिए बनी कमिटी का हिस्सा बनने से उसे अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता. किसी ख़ास विषय पर किसी व्यक्ति का विचार उसके पक्षपाती होने का प्रमाण नहीं है."
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "क़ानून की समझ को लेकर यहाँ कन्फ़्यूजन है. कमिटी का हिस्सा बनने से पहले किसी व्यक्ति की अपनी एक राय हो सकती है, लेकिन उसकी राय बदल भी सकती है... हम ये तर्क नहीं दे सकते कि कमिटी का हिस्सा ऐसा एक सदस्य नहीं हो सकता है."
12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए एक कमिटी का गठन किया था. इस कमिटी के सदस्यों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना हो रही है. सोशल मीडिया पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कमिटी में जिन लोगों को रखा है उसे लेकर जमकर आलोचना हो रही है.
चार सदस्यों वाली इस कमिटी से भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने ख़ुद को अलग कर लिया था. इस कमिटी को अदालत ने सरकार और किसानों के बीच वार्ता की ज़िम्मेदारी दी है और दो महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया है. हालाँकि जस्टिस बोबड़े ने सुनवाई की दौरान इस कमिटी का नाम लिए बिना ये बातें कही हैं.
विवादित कृषि क़ानूनों को लेकर जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त कमिटी ने राज्य सरकारों और स्टेट एग्रीकल्चर मार्केटिंग बोर्ड्स के साथ किसान यूनियनों और कॉपरेटिव से मिलने का फ़ैसला किया है. यह मुलाक़ात 21 जनवरी से शुरू होगी.
दूसरी तरफ़ गणतंत्र दिवस पर किसान यूनियनों की ट्रैक्टर परेड को लेकर सिंघु बॉर्डर पर किसान नेताओं और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के बीच बातचीत हुई है. इसी मामले की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में होनी है. आज केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच 10वें चरण की बात भी होनी है. यह वार्ता मंगलवार को ही होनी थी लेकिन कृषि मंत्रालय ने टाल दिया था. (बीबीसी)