संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीकी घरेलू चुनौती झेलती बाइडन-हैरिस सरकार, और हिंदुस्तानी बेवजह उम्मीद से !
20-Jan-2021 5:20 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अमरीकी घरेलू चुनौती झेलती  बाइडन-हैरिस सरकार, और  हिंदुस्तानी बेवजह उम्मीद से !

अमरीका चार बरस की गंदगी और हिंसा के बाद आज फिर इंसानियत के एक दौर में पांव रखने जा रहा है जब डोनल्ड टं्रप नाम का कलंक वहां के राष्ट्रपति भवन से आज किसी समय हट जाएगा, और दुनिया के बाकी देशों, बाकी नस्लों, बाकी रंगों, बाकी अल्पसंख्यकों के प्रति एक उदार भाव रखने वाले जो बाइडन और कमला हैरिस राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का काम संभालेंगे। अब से कुछ घंटों बाद, भारतीय समय के मुताबिक आधी रात के पहले अमरीका अपनी नई सरकार को शपथग्रहण करते देखेेगा, और यह समारोह पच्चीस हजार से अधिक सिपाहियों-सैनिकों के घेरे में होने जा रहा है क्योंकि चुनाव हारने के बाद जाते-जाते भी ट्रंप ने अपने हिंसक और नस्लभेदी समर्थकों से संसद भवन पर हमला करवा दिया था। ऐसा राष्ट्रपति अमरीका के इतिहास में कोई दूसरा नहीं हुआ था, और उम्मीद करनी चाहिए कि दुनिया के किसी भी देश को ऐसा हिंसक और नस्लभेदी मुखिया न देखना पड़े। 

हिंदुस्तान सहित दुनिया के तमाम देशों को बात-बात पर जंग के सनकी फतवे देने वाले ट्रंप से छुटकारा पाकर राहत मिलेगी। जिस हिंदुस्तान में तमाम परंपराओं को तोडक़र इस ट्रंप की चुनावी-मेहमाननवाजी की, नमस्ते ट्रंप नाम का सबसे बड़ा चुनावी जलसा अहमदाबाद में कोरोना का खतरा उठते हुए भी किया, उसी मेहमान के नमस्ते के बढ़े हुए हाथ पर मानो इस ट्रंप ने थूक दिया था। अमरीका लौटते ही उसने अपने पर फिदा नेताओं वाले हिंदुस्तान को लेकर गंदे शब्द इस्तेमाल किए। दूसरी तरफ अपने पूरे कार्यकाल में ट्रंप ने अमरीका में, और अमरीका के लिए काम करने वाले हिंदुस्तानियों के पेट पर लात ही मारी। आज खबरें उबल रही हैं कि नए राष्ट्रपति जो बाइडन अपने पहले फैसलों में ही हिंदुस्तानी कामगारों को राहत पहुंचाने जा रहे हैं। 

ट्रंप नाम की जो गंदगी आज अमरीकी सरकार से हट रही है, वह इस बात की एक बड़ी मिसाल रही कि किसी देश के प्रमुख को कैसा-कैसा नहीं होना चाहिए। बुरे लोग भी इस बात की अच्छी मिसाल हो सकते हैं कि उनके बाद कोई उनकी तरह के न हों। अमरीकी राजनीति हिंदुस्तान से इस मायने में बहुत अलग है कि वहां निर्वाचित शासनप्रमुख पर उसकी पार्टी का मानो कोई काबू ही नहीं रह जाता है। ट्रंप अपनी रिपब्लिकन पार्टी के नाम खासी शर्मिंदगी लिखकर जा रहे हैं, और इस संकीर्णतावादी पार्टी में वे, और उतने ही लोग ट्रंप के इतिहास से खुश रहेंगे जो कि नफरतजीवी हैं, नस्लोन्मादी हैं, जंगखोर हैं, महिला-विरोधी हैं, और गरीबों को मिटा देना चाहते हैं। ट्रंप की पार्टी में भी जो लोग थोड़ी सी बेहतर सोच रखते हैं, वे आज भी शर्मिंदा हैं और संसद पर हमला करवाने वाले ट्रंप के खिलाफ संसद के निचले सदन में वोट दे चुके हैं।

भारत के प्रति ट्रंप का रूख कैसा रहेगा इसे लेकर कई लोगों के मन में एक फिक्र भी है। इसकी एक वजह यह है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्रंप के आखिरी कई महीनों में उसके चुनाव प्रचारक सरीखा काम किया था, और भारत सरकार अबकी बार ट्रंप सरकार का इश्तहार करते दिख रही थी। लेकिन बाइडन पिछले डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति बराक ओबामा की विरासत के साथ हैं। वे ओबामा के उपराष्ट्रपति भी थे, और उनकी पार्टी की अपनी सोच भी आप्रवासियों के लिए एकदम साफ है। इसलिए ट्रंप के साथ एक निहायत गैरजरूरी घरोबा कायम करके उसके चुनाव में हाथ बंटाकर भारत के प्रधानमंत्री ने नाजुक कूटनीतिक रिश्तों को खतरे में डालने का काम किया था, लेकिन नए अमरीकी राष्ट्रपति से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे भारत के साथ दीर्घकालीन व्यापक रिश्तों के हित में, और खुद अमरीका के हित में भारत के लोगों के साथ नरमी का रूख बरतेंगे। फिलहाल भारत के लोग इस बात को लेकर ही खुशियां मना सकते हैं कि ट्रंप की टीम में बहुत से लोग भारतवंशी हैं, और उनकी उपराष्ट्रपति कमला देवी हैरिस तो आधी भारतवंशी हैं ही। भारत को अपने तात्कालिक स्वार्थ से परे अमरीका को देखना चाहिए, और पिछले महीनों में रिश्तों की संभावनाओं पर जो आंच आई है, उसे सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। 

जिस तरह एक उन्मादी, आत्ममुग्ध, महत्वोन्मादी, नस्लवादी सिरफिरे का राज देश को बांटकर ही खत्म होता है, अमरीका आज बुरी तरह बंटा हुआ है। टं्रप के हिंसक और हथियारबंद समर्थकों की तरफ से वहां इतना बड़ा खतरा है कि आज राजधानी में शपथग्रहण के वक्त किसी हथियारबंद हमले से निपटने की भी तैयारी की गई है। नई सरकार को इस देश को फिर से एक करने पर बड़ी मेहनत करनी होगी और जैसा कि कुछ दिन पहले बराक ओबामा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अमरीकी समाज में इतना विभाजन कर दिया गया है कि उसे एक करना बहुत बड़ी चुनौती होगी।
 
बाइडन-प्रशासन में भारतवंशी चेहरों को लेकर भारत को और यहां के लोगों को गैरजरूरी खुशी का शिकार नहीं होना चाहिए। वे तमाम लोग अमरीकी हैं, भारत के नहीं। और अमरीका देश ही ऐसा है कि वहां दुनिया भर से पहुंचे हुए अलग-अलग नस्लों के लोग मिलकर ही उसे एक ताकतवर और कामयाब देश बनाते हैं। हर धर्म, हर नस्ल, हर राष्ट्रीयता के लोगों को मिलकर किस तरह एक देश दुनिया का सबसे कामयाब बनता है, इसकी मिसाल अमरीका में देखकर हिंदुस्तानी उससे अगर कुछ सीखें, तो वे अपने देश को बेहतर बना सकते हैं, जो कि आज बदतर बनने की राह पर है। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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