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डोनाल्ड ट्रंप विरासत में क्या छोड़कर जाएंगे
21-Jan-2021 10:57 AM
डोनाल्ड ट्रंप विरासत में क्या छोड़कर जाएंगे

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का चार साल का कार्यकाल काफ़ी उतार चढाव भरा रहा है, ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि डोनाल्ड ट्रंप की विरासत क्या होगी? वे व्हाइट हाउस में क्या कुछ छोड़कर जा रहे हैं?

इस सवाल का जानने के लिए हमने कुछ विशेषज्ञों से बात की. इन लोगों ने क्या कुछ कहा, पढ़िए.

अमेरिकी इंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के फ़ेलो मैथ्यू कॉन्टेनेटी, डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान रिपब्लिकन पार्टी के उभार और अमेरिकी कंज़रवेटिव मूवमेंट को बड़ी बात बताते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के ऐसे पहले राष्ट्रपति के तौर पर याद किए जाएंगे जिन पर दो बार महाभियोग लगाया गया. उन्होंने चुनावी नतीजों के चोरी होने की बात को हवा दी, इलेक्ट्रोल कॉलेज वोट को सर्टिफ़िकेट देने की प्रक्रिया का विरोध करने के लिए उन्होंने अपने समर्थकों को वाशिंगटन बुलाया, उनसे कहा कि ताक़त के बल पर ही देश को वापस हासिल कर सकते हैं. इन समर्थकों ने कैपिटल हिल में हिंसा की और सरकार की संवैधानिक व्यवस्था में दख़ल देने की कोशिश की.

जब इतिहासकार ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के बारे में लिखेंगे तो कैपिटल हिल में हुई हिंसा के परिपेक्ष्य में उनके कार्यकाल को देखेंगे. उनके कार्यकाल के दौरान जिन दूसरे मुद्दों पर भी इतिहासकारों की नज़र होगी उनमें 'अल्टरेनिटव राइट' का दावा करने वाले आनलाइन दक्षिणपंथी समूह के साथ लगभग यातना तक पहुंचे उनके संबंध, 2017 में चार्लोटेसेविली विरोध प्रदर्शन को नृशंसता से निपटना, दक्षिणपंथी अतिवादियों की हिंसा में बढ़ोत्तरी और पुरुषवादी कांस्पेरिसीज थ्योरी को बढ़ावा देने की उनकी शैली शामिल होगी.

यदि डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूर्ववर्तियों के नीतियों का अनुसरण किया होता और सत्ता हस्तांतरण शांतिपूर्ण ढंग से होता तो उन्हें परिवर्तन सोचने वाले एक ऐसे नेता के तौर याद किया जाता जो लोकप्रिय भी रहा हो.

उन्हें ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर भी देखा जाता जिनके शासनकाल में (कोविड-19 संक्रमण से पहले) आर्थिक प्रगति में उछाल देखने को मिला था. इसके अलावा उनके कार्यकाल में चीन के प्रति अमेरिकी सोच बदली, चरमपंथी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया गया, अंतरिक्ष कार्यक्रम को नए सिरे से बेहतर रूप दिया गया. साथ ही अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में कंज़रवेटिव लोग बहुमत में आए और कोविड-19 की वैक्सीन को रिकॉर्ड कम समय में तैयार करने का अभियान चलाया गया.

लाउरा बेलमोंटे वर्जिनिया टेक कॉलेज ऑफ़ लिबरल आर्ट्स एंड हम्यून साइंसेज की डीन और इतिहास प्रोफ़ेसर हैं. साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ और कल्चरल डिप्लोमेसी पर किताब की लेखिका हैं.

मेरे ख्याल से उन्होंने ग्लोबल लीडरशिप को छोड़कर अंदर के मामलों पर ज़्यादा ध्यान दिया. इसे किलेबंदी जैसी मानसिकता कह सकते हैं. मुझे नहीं लगता है कि इसमें वे कामयाब हुए लेकिन उनकी कोशिशों से अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को कितना नुक़सान हुआ है- इसका आकलन अभी होना है.

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान, मेरे लिए सबसे चौंकाने वाला पल 2018 में व्लादिमीर पुतिन के साथ हेलसिंकी में हुई प्रेस कांफ्रेंस थी. इसमें ट्रंप ने चुनाव में दख़ल देने के मामले में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों के बदले पुतिन का पक्ष लिया था.

एक राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप समाज के लोकतांत्रिक ताक़तों के ख़िलाफ़ पूरी ताक़त से खड़े थे, ऐसे में उनके दूसरे कार्यकाल की कल्पना मुझे नहीं थी. ट्रंप ने इस दौरान बहुराष्ट्रीय संस्थाओं से समझौतों पर भी हमला किया. उन्होंने पेरिस जलवायु संधि और ईरानी न्यूक्लियर फ्रेमवर्क से अमेरिका को अलग कर लिया था.

ट्रंप ने तुर्की के राष्ट्रपति रेचैप तैयप अर्दोआन और ब्राजील के राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो की प्रशंसा की. उत्तर कोरियाई राष्ट्रपति किम जोंग ऊन से मुलाक़ात की. यह सब दर्शाता है कि उन्होंने उन देशों के साथ अमेरिकी रिश्ते को बेहतर करने की कोशिश की जो घोषित तौर पर अमेरिकी नीतियों का विरोध करते आए हैं. यह मेरे ख्याल से विशिष्ट रहा.

तरह तरह के मुद्दे

इसके अलावा उन्होंने दुनिया भर में मानवाधिकार को बढ़ाव देने वाले प्रयासों से अमेरिका को अलग कर लिया, इसके अलावा उन्होंने अमेरिकी गृह विभाग की सालाना मानवाधिकार रिपोर्ट के कंटेंट में भी बदलाव किया. इन रिपोर्टों से एलजीबीटी समानता जैसे मुद्दों को शामिल नहीं किया गया.

कैथरीन ब्राउनेल पुर्डूय यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यकाल को मीडिया, राजनीति और पापुलर कल्चर के लिहाज़ से आंका है.

साफ़-साफ़ कहूं तो डोनाल्ड ट्रंप, रिपब्लिकन पार्टी के अंदर उनके समर्थकों और कंज़रवेटिव मीडिया ने अमेरिकी लोकतंत्र को इम्तिहान के दौर में डाल दिया है. इससे पहले ऐसा कभी देखने को नहीं मिला. ट्रंप ने जिस तरह से लाखों लोगों को अपनी मनगढ़ंत बातों को सच मानने का यकीन कराया उससे अमेरिकी राष्ट्रपति और मीडिया के आपसी संबंधों का आकलन करने वाले इतिहासकार आर्श्चयचकित होंगे.

राष्ट्रपति के तौर पर ट्रंप ने चार सालों तक जो ग़लत जानकारियां लोगों से शेयर कीं, उसी का नतीजा थी छह जनवरी को अमेरिकी कैपिटल हिल में हुई घटना.

जिस तरह से रिचर्ड निक्सन के पद से हटने के दशकों बाद भी वाटरगेट और महाभियोग की जांच का आकलन किया जाता है उसी तरह से ट्रंप के ऐतिहासिक आकलन की मुख्य बात कैपिटल हिल की हिंसा होगी.

दूसरी अहम बात क्या लगी?

डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह की भीड़ की तुलना बराक ओबामा के शपथ ग्रहण की भीड़ से करके ट्रंप प्रशासन में सलाहकार रहीं कैलायन कोनवे ने अल्टरनेटिव फ़ैक्ट्स (वैकल्पिक सच) की धारणा का पहला उदाहरण दिया था.

20वीं शताब्दी के सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों में घटनाओं और नीतियों की अपने अनुकूल व्याख्या का चलन देखा गया जो लगतार बढ़ता भी रहा. इस दौरान इन लोगों ने मीडिया को भी नियंत्रित करते रहे. लेकिन ट्रंप के कार्यकाल में अपने वैकल्पिक सच को पेश करने की शुरुआत हुई जो अनुकूल व्याख्या से आगे की बात थी और इसने यह भी तय कर दिया था कि ट्रंप प्रशासन ग़लत जानकारियों के आधार पर शासन करेगा.

ट्रंप ने सोशल मीडिया की ताकत का इस्तेमाल करके मनोरंजन और राजनीति के बीच की दीवार को मिटा दिया. इसके जरिए वे अपने आलोचकों को नज़रअंदाज़ करके सीधे समर्थकों से जुड़े.

फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट, जॉन एफ़ कैनेडी और रोनाल्ड रीगन भी न्यू मीडिया के तौर तरीक़ों और सेलिब्रेटी स्टाइल से लोगों से सीधे जुड़े थे. इसने राष्ट्रपति के कामकाज के तरीक़े और उम्मीदों को बदला और ट्रंप ने जो किया उसके लिए रास्ता तैयार हुआ था.

मैरी फ्रांसेस बेरी पेनसेल्वेनिया यूनिवर्सिटी में अमेरिकी इतिहास और समाज की प्रोफ़ेसर हैं. 1980 से 2004 के बीच मैरी अमेरिकी नागरिक अधिकार आयोग की सदस्य रही हैं. उन्होंने ट्रंप के कार्यकाल को क़ानूनी इतिहास और सामाजिक नीतियों के हिसाब से आंक रही हैं.

न्यायाधीशों के साथ ट्रंप ने जो किया है उसका असर अगले 20-30 सालों तक जारी रहेगा. नीतियां क़ानून के हिसाब से भी मान्य हों और उसे लागू करने की चुनौती रहेगी, चाहे इस दौरान कोई राष्ट्रपति रहे या किसी का प्रशासन रहे.

अदालतों में रिपब्लिकन पार्टी द्वारा नियुक्त न्यायाधीशों का नियंत्रण है. कई बार न्यायाधीश हमें चौंकाते हैं लेकिन इतिहास गवाह रहा है कि वे वही करते हैं जो उनकी राजनीति पार्टी या राजनीतिक पृष्ठभूमि की ओर से करने को कहा जाता है.

उन्होंने जब पहली बार काले लोगों के समुदाय में ख़ास लोगों की मदद के लिए फ़र्स्ट स्टेप पैकेज के प्रावधानों का समर्थन किया तो लोगों ने उनकी उस बात को माफ़ कर दिया जिसमें उन्होंने उस विधेयक में संशोधन का समर्थन किया था जिस विधेयक के ज़रिए पहली बार काले लोगों के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को पहली बार बजट आवंटित किया जाना था.

उन्होंने इन सब पहलूओं को आपस में मिला दिया. उन्होंने ऐसा कार्यक्रम शुरू किया था जिसके ज़रिए काले कारोबारियों और उद्यमियों को ऋण लेने में आसानी होने लगी, उससे पहले ये ऋण लेने में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता था.

इन सबका असर ये हुआ कि काले युवाओं ने ज़्यादा संख्या में ट्रंप का समर्थन किया था. अगर यह ट्रेंड क़ायम रहा थो रिपब्लिकन पार्टी को फ़ायदा मिलेगा.

मार्ग्रेट ओ मारा वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफ़ेसर है. वे ट्रंप कार्यकाल को आधुनिक अमेरिका के राजनीतिक, आर्थिक और मेट्रोपॉलिटन नज़रिए से आंक रही हैं.

तनाव भरे माहौल में सत्ता हस्तांतरण के मामले पहले भी देखने को मिले हैं. हार्बर्ट हूवर अपनी हार पर काफ़ी आहत थे लेकिन पेनसेल्वेनिया एवेन्यू में शपथ ग्रहण सामारोह में वे अपनी कार में मौजूद थे. उन्होंने फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट से पूरे समय कोई बात नहीं की लेकिन वह शांतिपूर्ण हस्तांतरण था.

ट्रंप एक तरह से, राजनीतिक दलों के अंदर जो कुछ भी उथलपुथल चल रहा है, उसकी अभिव्यक्ति हैं. यह केवल रिपब्लिकन पार्टी में नहीं हो रहा है, डेमोक्रेट्स भी हो रहा है, या कहें अमेरिकी राजनीति में ही हो रहा है- लोगों का सरकार, सरकारी संस्थाओं और विशेषज्ञता से मोहभंग होता जा रहा है.

ट्रंप कई मायनों में असाधारण हैं, लेकिन किसी पद के अनुभव के बिना राष्ट्रपति चुना जाना उनकी सबसे बड़ी ख़ासियत रही.

ट्रंप तो चले जाएंगे लेकिन सत्ता प्रतिष्ठानों को बड़ी निराशा होगी. जब आप ख़ुद को शक्तिहीन होते हैं तब आप ऐसे शख़्स को वोट देते हैं जो सबकुछ अलग ढंग से करने का वादा करता हो, ट्रंप ने वास्तव में ऐसा किया था.

राष्ट्रपति जिन लोगों को नियुक्त करते हैं, उससे भी राष्ट्रपति का कार्यकाल परिभाषित होता है. लेकिन काफ़ी अनुभव रखने वाले रिपब्लिकन लोगों को प्रशासन में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है.

समय के साथ ट्रंप का प्रशासन समर्थकों के झुंड में तब्दील हो गया, जिसमें बहुत अनुभवी लोग नहीं रहे थे और विचारधारा के स्तर पर बेहतर प्रशासन में दिलचस्पी नहीं रखते थे. इन सबका असर यह हुआ कि अमेरिकी नौकरीशाही को फिर से तैयार करने में लंबा वक़्त लगेगा.

श्रीकृष्णा प्रकाश वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने ट्रंप के कार्यकाल का आकलन संवैधानिक व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और राष्ट्रपति की शक्तियों के आधार पर किया है.

उनके प्रशासन का अंतिम दौर सबसे अहम रहा है, अपने समर्थकों के आधार पर वे लगातार दूसरे कार्यकाल में लौटने की बात कहते रहे.

उन्होंने लोगों को राष्ट्रपति के लिए पर वह विचार करने के लिए मजबूर किया जिसे बुश और ओबामा प्रशासन के दौरान सच नहीं माना जा सकता. जैसे कि 25वें संशोधन और महाभियोग के बारे में बिल क्लिंटन के बाद से लोगों ने सोचा भी नहीं था.

ट्रंप जैसा कोई दूसरा शख़्स राष्ट्रपति के पद पर आ सकता है यह सोचते हुए संभव है कि लोग अलग रूख़ अपनाएंगे. यह संभव है कि अमेरिकी कांग्रेस उन्हें कम प्रतिनिधित्व देगी और कुछ अधिकारी भी ले ले.

ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति यह दिखाया है कि बहुत सारे लोग इन कारोबारी समझौतों का विराध करते हैं. ये लोग वैसे शख़्स को वोट दे सकते हैं जो अमेरिका को इन समझौतों से या तो बाहर निकाल ले या फिर इन समझौतों को थोड़ा पारदर्शी बनाए.

ट्रंप ने यह भी ज़ाहिर किया है कि चीन अमेरिका का फ़ायदा उठा रहा है और इससे अमेरिका को आर्थिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से नुक़सान हो रहा है- मेरे ख्याल से अमेरिकी लोगों में भी इस पहलू को लेकर सहमति है. कोई भी चीन को लेकर नरम रुख़ नहीं अपनाना चाहता है, हालांकि कोई कनाडा के प्रति नरम रूख़ को लेकर सवालिया निशान नहीं उठाता.

मुझे लगता है कि लोग सख़्त होने पर ज़ोर देना चाहते हैं, या कम से कम चीन के प्रति सख़्त दिखना चाहते हैं. घरेलू मोर्चे पर ट्रंप ने लोकलुभावनी नीतियों पर ज़ोर दिया. हालांकि यह उनकी नीतियों में पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया लेकिन अब कहीं ज़्यादा रिपब्लिकन को लोकलुभावने विचारों को अपनाते देखा जा सकता है. (bbc)

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