सामान्य ज्ञान
सिलिकोसिस एक गंभीर बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है। गुजरात की क्वाट्ज और स्टोन क्रशर्स ही इसकी जनक है। इससे मध्यप्रदेश के अलीराजपुर, झाबुआ और धार जिलों के आदिवासी भी प्रभावित हैं। पहले इस बीमारी को टीबी ही समझा जाता था, लेकिन इस क्षेत्र में रिसर्च ने साबित कर गिया है यह टीबी नहीं, बल्कि सिलिकोसिस है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में 30 लाख से भी अधिक श्रमिक सिलिका धूल कणों के सीधे संपर्क में है, जबकि निर्माण और भवन गतिविधियों में शामिल करीब 85 लाख लोगों को क्वाट्र्ज की धूल (कांच या ऐसे ही पदार्थों के बारीक कण) का सामना करना पड़ता है। इन श्रमिकों के फेफड़ों की कार्यप्रणाली का आकलन करने वाली कई रिपोट्र्स में उनके रेस्ट्रिक्टिव और ऑब्सट्रक्टिव दोनों पैटर्न सामने आए हैं। मध्य भारत में सिलिका से बनने वाली पेंसिल के श्रमिकों पर किए गए अध्ययनों से पता चलता है कि उनकी मृत्यु की दर बहुत अधिक है। इन श्रमिकों की औसत आयु 35 साल थीं, जबकि इनके सिलिका धूण कणों के संपर्क की औसत अवधि 12 साल थी।
कश्मीरी भाषा
कश्मीरी भाषा का विकास अपभ्रंश से 10 शताब्दी में हुआ। यह भाषा अपनी मौखिक परंपरा और लोक साहित्य के लिए प्रसिद्ध रही है। कश्मीरी में कविता का आरंभ ग्यारहवीं शताब्दी में माना जाता है। 14 वीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के साथ ही यहां की राजभाषा 6 सौ वर्षों तक फारसी रही है। इसलिए कश्मीरी को विकसित होने का अवसर कम मिला। बाद में उर्दू का असर पडऩे से कश्मीरी भाषा की रचनाएं उर्दू की परंपरा से प्रभावित होने लगी।
अब भी जम्मू-कश्मीर की राजभाषा उर्दू होने की कारण शिक्षित वर्ग में कश्मीरी भाषा में दक्षता प्राप्त करने की लालसा कम दिखाई देती है।