सामान्य ज्ञान
महोपनिषद नारायण भगवान के स्वरूप को व्यक्त करता है । सामवेदीय शाखा के अंतर्गत आने वाले इस महोपनिषद में भगवान नारायण की महिमा, उनकी शक्ति, माया आदि सभी का विशद वर्णन किया गया है।
महोपनिषद श्री नारायण के महान रूप के दर्शन होते हैं जिसका वर्णन राजा जनक, शुकदेव एवं ऋभुु तथा निदाघ के प्रश्नोत्तर के द्वारा व्यक्त किया गया है। इस महा उपनिषद में कुल छह अध्याय दिए गए हैं जिसमें नारायण महिमा, तत्व ज्ञान, ब्रह्म का विवेचन, माया आदि का प्रमुख रूप से उल्लेख प्राप्त होता है।
भाग्यवाद
भाग्यवाद एक सिद्धांत है। इसे मानने वालोंं का विचार है कि जो भी होता है, वह सब भाग्य के अनुसार होता है। इसी को कभी-कभी दैव- इच्छा भी कहते हैं।
भारतीय भाग्यवाद और कर्मवाद का करीब का रिश्ता है। मात्र एक जीवन का कर्म ही फलदायी नहीं माना जाता क्योंकि यहां सत्कर्म करने वाले दुखी और दुष्कर्म करने वाले सुखी दिखाई देते हैं। इसलिए यह माना जाता है कि कर्मों के अनुसार बनने वाला भाग्य पूर्वजन्म के कर्मों को भी अपने साथ लाता है। इस प्रकार कर्म वाद और भाग्यवाद का यही रूप वैदिककाल से लेकर आज तक भारतीय संस्कृति में विद्यमान है।