खेल
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खेल सिर्फ़ मनोरंजन का एक तरीक़ा भर नहीं है, ये एक करियर विकल्प और आत्म अभिव्यक्ति का ज़रिया भी हो सकता है.
तमिलनाडु की संध्या रंगनाथन एक सामान्य बचपन से महरूम रहीं. छोटी उम्र में ही एक सरकारी हॉस्टल में रह कर पली-बढ़ी, लेकिन उन्होंने फु़टबॉल में ही अपने परिवार को तलाश लिया और देश का नाम भी रोशन किया.
ज़िंदगी की पहली किक
20 मई 1998 के दिन रंगनाथन का जन्म तमिलनाडु के कुडलूर ज़िले में हुआ था. वो बहुत छोटी थी जब उन्हें एक सरकारी हॉस्टल में डाल दिया गया क्योंकि उनके माता-पिता अलग हो गए थे.
उनके पिता उन्हें छोड़कर चले गए थे और माँ के पास उनके पालन-पोषण के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे.
हॉस्टल में रंगनाथन फु़टबॉल खेलने वाले अपने कुछ सीनियर्स से बहुत प्रभावित हुईं. वो सीनियर टूर्नामेंट खेलने के लिए अलग-अलग जगह जा पाते थे. रंगनाथन भी उनकी तरह बनना चाहती थीं और अलग-अलग जगह देखना चाहती थीं.
यहीं से उन्हें बॉल को किक करने की प्रेरणा मिली. उस वक़्त वो छठी कक्षा में पढ़ रही थीं.
शुरुआती वक़्त मुश्किल था और संसाधनों की कमी थी. फ़ुटबॉल के अभ्यास के लिए कुडलूर में घास का कोई अच्छा मैदान नहीं था, लेकिन ज़मीन के खुरदुरेपन को कोचों की विनम्रता ने कम कर दिया, जिन्होंने रंगनाथन और उनके खेल का पूरी तरह ख़याल रखा.
हालाँकि, इसका मतलब ये नहीं था कि उन्हें माता-पिता के साथ रहने वाले किसी आम बच्चे की तरह, बचपन जीने की कमी नहीं खल रही थी. उनकी माँ कभी-कभी उनसे मिलने के लिए हॉस्टल आया करती थीं, लेकिन निश्चित रूप से ये एक सामान्य माँ-बेटी जैसा रिश्ता नहीं था.
रंगनाथन को ये कमी भी खलती थी कि वो अपनी उम्र के दूसरे बच्चों की तरह ज़िंदगी के शौक और खेल-कूद के सभी मज़े नहीं ले पा रही हैं, खेल-कूद में वो सिर्फ़ फ़ुटबॉल खेलती थीं. बाक़ी के टाइम वो पढ़ाई करती रहती थीं.
उन्होंने तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय से कॉमर्स में मास्टर्स डिग्री हासिल की. अब वो कुडलूर के सेंट जोसेफ़ कॉलेज से मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क्स (एएसडब्ल्यू) कर रही हैं.
फिर किया ज़िंदगी का गोल
व्यक्तिगत स्तर पर तमाम चुनौतियों के बावजूद फ़ुटबॉलर रंगनाथन के लिए हॉस्टल लाइफ़ एक वरदान थी. वो बिना किसी रोकटोक के खेल सकती थीं. वो कहती हैं कि उनकी माँ ने उन्हें अपना पैशन फॉलो करने से नहीं रोका.
तिरुवल्लुवर विश्वविद्यालय में एस मारियाप्पन जैसे कोचों ने उन्हें तैयार किया और कुडलूर में इंदिरा गाँधी एकेडमी फ़ॉर स्पोर्ट्स एंड एजुकेशन ने भी रंगनाथन को एक अटैकिंग फॉरवर्ड खिलाड़ी बनाने में अहम भूमिका निभाई.
अपने फोकस और कोचों के मार्गदर्शन के साथ, रंगनाथन ने फ़ुटबॉल के मैदान में दर्शकों का ध्यान खींचना शुरू किया.
2019 में एक अहम पल आया जब उन्हें इंडियन वीमन लीग (आईडब्ल्यूएल) के तीसरे सीज़न में टूर्नामेंट का सबसे वेल्यूएबल खिलाड़ी (एमवीपी) चुना गया. अच्छे प्रदर्शन और इससे तुरंत मिली पहचान ने इस युवा खिलाड़ी के आत्मविश्वास को बढ़ा दिया.
खेल में तेज़ी से कदम बढ़ाती रंगनाथन ने नेपाल के काठमांडू में एसएएफ़एफ़ महिला चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने न सिर्फ़ भारतीय टीम ने ख़िताब जीता, बल्कि वो भारत के लिए सबसे ज़्यादा गोल करने वाले खिलाड़ियों में से एक रहीं.
नेपाल उनके लिए एक तरह से लकी रहा, जहाँ पोखरा में हुए 13वें दक्षिण एशियाई खेलों में उन्होंने दो बार स्कोर किया और भारत ने ख़िताब अपने नाम कर लिया.
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2019 में देश को कामयाबी दिलाने वाली रंगनाथन ने 2020 की धमाकेदार शुरुआत की और आइडब्ल्यूएल के चौथे सीज़न में दूसरी सबसे ज़्यादा गोल करने वाली फ़ुटबॉलर रहीं.
फ़ुटबॉल के अपने सफ़र को अगले स्तर पर ले जाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहीं रंगनाथन कहती हैं कि महिला ख़िलाड़ियों के लिए आर्थिक सुरक्षा एक अहम फैक्टर है.
वे कहती हैं कि आजीविका सुनिश्चित होने से महिला खिलाड़ी मैदान पर फुल-टाइम फोकस कर सकती हैं.
इसलिए रंगनाथन कहती हैं कि महिलाओं के लिए खेलों में कामयाब होने के लिए ज़रूरी है कि उन्हें सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में पक्की नौकरियाँ मिलें.
(ये प्रोफाइल संध्या रंगनाथन को ईमेल के ज़रिए भेजे गए बीबीसी के सवालों के जवाब के आधार पर तैयार किया गया है) (bbc.com)