खेल
बॉक्सर एस कलईवानी
जब 18 साल की एस कलईवानी ने 2019 में सीनियर्स नेशनल बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में सिल्वर मेडल जीता तो भारत में बॉक्सिंग क्षेत्र में उनके नाम की चर्चा होने लगी.
तमिलनाडु की इस बॉक्सर को चैम्पियनशिप का सबसे होनहार मुक्केबाज़ बताया गया.
कलईवानी की इस सफलता को सभी ने देखा लेकिन उनकी मुश्किलें और संघर्ष के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. उन्होंने कैसे आर्थिक परेशानियों और सामाजिक रूढ़ियों से लड़ते हुए यहाँ तक पहुंचने की राह बनाई.
मुश्किल फ़ैसला
कलईवानी का जन्म 25 नवंबर 1999 को चेन्नई में एक ऐसे परिवार में हुआ था जिसका बॉक्सिंग से गहरा नाता है.
उनके पिता एम श्रीनिवासन युवावस्था में बॉक्सर रहे थे और उनके भाई भी राष्ट्रीय स्तर के बॉक्सर हैं.
कलईवानी की बॉक्सिंग में रूचि तब पैदा हुई जब वो अपने पिता को अपने भाई को बॉक्सिंग सिखाते देखती थीं. कलईवानी की इस इच्छा को देखते हुए उनके पिता ने उन्हें भी प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया.
परिवार ने बॉक्सिंग को लेकर कलईवानी को हमेशा बढ़ावा दिया लेकिन शिक्षकों और रिश्तेदारों की तरफ से विरोध का सामना करना पड़ा.
कलईवानी के स्कूल शिक्षक उन्हें बॉक्सिंग की बजाए पढ़ाई पर ध्यान देने के लिए कहने लगे. कुछ रिश्तेदारों ने उनके पिता को कलईवानी का बॉक्सिंग प्रशिक्षण रोकने की सलाह भी दी थी.
उन्होंने ये तक कहा था कि अगर कलईवानी बॉक्सिंग करती हैं तो उनकी शादी बस एक अधूरा सपना बनकर रह जाएगी.
लेकिन, कलईवानी के सामने सिर्फ़ सामाजिक चुनौतियाँ ही नहीं थीं बल्कि उन्हें प्रशिक्षण के लिए सुविधाओं के अभाव से भी जूझना पड़ा. उनके पास आधुनिक जिम, बुनियादी ढांचा, आधुनिक कोचिंग और एक खिलाड़ी के लिए उचित डाइट जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं.
इन सभी चुनौतियों के बावजूद उनके पिता रुके नहीं और उन्होंने अपने बेटे की तरह बेटी को भी प्रशिक्षण देना जारी रखा. कलईवानी बॉक्सर बनने के लिए अपने पिता और भाई को श्रेय देती हैं.
धीरे-धीरे कलईवानी और उनके परिवार की मेहनत रंग लाई और वो सब-जूनियर लेवल पर मेडल जीतने लगीं. उनकी सफलता ने उनके शिक्षकों और रिश्तेदारों को भी अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर दिया. वो कलईवानी की काबिलियत को स्वीकार करने लगे.
जब मिली लोकप्रियता
कलईवानी की बॉक्सिंग यात्रा में 2019 में तब एक अहम मोड़ आया जब वो सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में पहुंची. हालाँकि, यहाँ उन्हें पंजाब की मंजू रानी से हार का सामना करना पड़ा.
उन्हें बॉक्सिंग की दिग्गज खिलाड़ी और छह बार विश्व विजेता रहीं मेरी कॉम ने सिल्वर मेडल से नवाज़ा.
इस सफलता से न सिर्फ़ कलईवानी का आत्मविश्वास बढ़ गया बल्कि बेहतर मौकों के लिए नए दरवाज़े भी खुल गए.
वो इटली के बॉक्सिंग कोच राफाएले बिएरगामास्को से प्रशिक्षण लेने लगीं. साथ ही उन्हें कर्नाटक में जेएसडब्ल्यू इंस्टीट्यूट ऑफ़ स्पोर्ट्स में आधुनिक सुविधाओं के साथ प्रशिक्षण पाने का मौका भी मिल गया. इससे उनकी ताक़त और तकनीक में और बढ़ोतरी हुई.
कलईवानी के करियर का सबसे महत्वपूर्ण पल साल 2019 में काठमांडू में हुए दक्षिण एशियाई खेलों के दौरान आया. इसमें उन्होंने नेपाल की ललिता महरजान को हराकर भारत के लिए सोने का पदक हासिल किया.
अब आगे की राह
इस युवा बॉक्सर के लक्ष्य बिल्कुल साफ़ हैं. वो पहले कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण पदक जीतना चाहती हैं और इसके बाद साल 2024 में ओलंपिक विजेता.
फिलहाल कलईवानी 48 किलो भार वर्ग में बॉक्सिंग करती हैं, जो ओलंपिक का हिस्सा नहीं है. लिहाजा ओलंपिक में जाने के लिए वो सिर्फ़ दो साल और 48 किलो भार वर्ग में बॉक्सिंग करेंगी और इसके बाद उन्हें ज़्यादा भार वर्ग में जाना होगा.
अपने बॉक्सिंग करियर को पूरा करने के बाद कलईवानी देश में आने वाली पीढ़ी की महिला बॉक्सर्स को प्रशिक्षण देना चाहती हैं.
कलईवानी कहती हैं कि महिलाओं के खेलों में आगे आने के लिए लोगों की मानसिकता बदलना ज़रूरी है. समाज को महिला खिलाड़ियों को और प्रोत्साहन देना चाहिए. (bbc)