विचार / लेख

राजपथ पर गलवान की मौजूदगी
25-Jan-2021 1:42 PM
राजपथ पर गलवान की मौजूदगी

-प्रकाश दुबे

गणतंत्र दिवस पर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने आने से मना कर दिया। यह पहला अच्छा काम हुआ। जिस देश ने बरसों गुलाम रखा, उसी देश का मुखिया जनतंत्र पर उपदेशामृत पिलाकर जाता। महात्मा गांधी की जय और गोडसे जिंदाबाद का युगलगान जैसा अजीबोगरीब काकटेल बनता। दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर गलवान और चुस्कू की मौजूदगी दूसरा अच्छा काम है। चीन की गलवान में घुसपैठ के बाद से चीन और घुसपैठ पर अपना मौन व्रत चल रहा है। भारत तिब्बत सीमा पुलिस ने गणतंत्र दिवस पर निगरानी करने श्वान पथक तैनात किया। आइटीबीपी ने दो सौ अधिकारियों और जवानों को चीन की भाषा मैंडरिन में प्रशिक्षित किया गया।काम अनूठा है। एक और बेमिसाल प्रयोग किया। दत्त भगवान के अनुयायी श्वानों का देशी नामकरण किया। इस पुलिस के पास गलवान है। श्योक है। गलवान का नाम याद रहेगा। गलवान पर कब्जे की सच्चाई का पता लगे न लगे, गणतंत्र पर श्वानतंत्र का योगदान इतिहास में दर्ज होगा। आइटीबीपी के मुखिया सुरजीत सिंह देसवाल के पुकारते ही गलवान यानी अर्ध सैनिक बल का जवान-श्वान भागता आएगा। तंत्र को जयहिंद करते समय मशीन के बेशकीमती पुरजों का कल्पनाशील योगदान मत भुला देना। 

लोकतंत्र में मिलजुल कर

गणतंत्र-गौरव-गान में सच बयान करने की कमी दूर करना कलम-कंप्यूटर-कैमरा धारी करते हैं। हमने ये किया, तुमने ऐसा नहीं किया। तुमने गड़बड़ी की। हमने  घोटाला रोका। आजके सत्ताधारी हर गलत बात के लिए कांग्रेस राज पर ठीकरा फोड़ते हैं। जबकि कांग्रेस नेता फटाक से जवाब देते हैं- काम हमारा। लेबल चिपक जाता है तुम्हारा। गणतंत्र में सत्ताधारी, सत्ता से धकियाये लोग और सत्ता-चाहक की बात बात पर नोंकझोंक की अपनी विशेषता प्रदर्शित होती है। अब कांग्रेस सचमुच भारतीय जनता पार्टी की नकल करने जा रही है। भाजपा ने सत्ता में आते ही गली-मोहल्ले तक में जमीन खरीद कर पार्टी और सहयोगी संगठनों के दफ्तर खड़े किए। दिल्ली में आलीशान महल बनाया। 24, अकबर रोड छिनने की नौबत के बावजूद कांग्रेस दिल्ली में अपना केन्द्रीय कार्यालय नहीं बना पाई। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजधानी जयपुर में प्रदेश कांग्रेस के लिए जमीन तलाश करा रहे हैं। जिला और मंडल स्तर तक के दफ्तर बनेंगे। इसके लिए राज्य सरकार जमीन आवंटित करेगी। चार बरस पहले वसुंधरा राजे ने यह नुस्खा ईजाद किया। तब प्रतिपक्ष यानी कांग्रेस ने होहल्ला मचाया था।    

 बोझ बड़ा गणतंत्र का

दुखी नीति आयोग

केन्द्र सरकार बार बार बैठक करने के बावजूद कृषि कानूनों पर समाधान तलाश नहीं कर सकी। पुराना योजना और आज का नीति आयोग दलील देने में सरकार से बढक़र हैं। नीति आयोग ने कृषि बदलाव के लिए मुख्यमंत्रियों की समिति गठित की थी। सितम्बर 2019 में समिति की अंतिम बैठक हुई। आधारभूत ढांचा बदलने की सलाह देना नीति आयोग का काम है। दिलचस्प बात यह है कि नीति आयोग की रपट का अता पता नहीं है। आयोग की अधिशासी परिषद की बैठक में रपट आएगी तब पता लगेगा। बैठक कब होगी? पता नहीं। समिति ने किस किस मुख्यमंत्री से चर्चा की? यह भी पता नहीं। केन्द्र सरकार ने किसानों के समक्ष दावा किया कि समिति ने मुख्यमंत्रियों से चर्चा की थी। पंजाब के मुख्यमंत्री ने दावा किया कि समिति ने इस विषय पर बात ही नहीं की। इस गोरखधंधे में रपट अब तक पहुंच से बाहर है। आयोग के मुख्य कार्यकारी अमिताभ कांत पहले ही फरमा चुके हैं कि कुछ अधिक ही लोकतंत्र भुगत रहा है, भारतवर्ष।    

प्यार बांटते चलो

 वंदे मातरम की भूमि पर असदुद्दीन ओवैसी के चरण-कमल पड़े। फुरफुरा शरीफ  मज़ार में दर्शन के बाद वारिस अब्बास सिद्दीक से मुलाकात की। विधानसभा चुनाव में अब्बास का समर्थन करने का ऐलान किया। परिवार के एक और प्रतिनिधि तोहा सिद्दीक ने ओवैसी को आड़े हाथों लिया। राजनीति कर पुरखों की मजार को अपवित्र करने का आरोप मढ़ा। फुरफुरा में हजरत अबू बकर की मज़ार है, जिन्होंने महिला शिक्षा आरंभ कराई। आवैसी की बदौलत पीर अबू सिद्दीक के वारिस दो खेमों में बंट गए। जहं जंह चरण पड़ें असद के। फुरफुरा श्रद्धालुओं के दो फाड़ होने और वोट बंटवारे की खाई की चौड़ाई पर ममता बनर्जी का भविष्य तय होगा। बिहार के बाद बंगभूमि में भी ओवैसी संकटमोचक बनना चाहते हैं। किसके? धन्य हो। यह भी हम बताएं?  

अमर रहे गणतंत्र हमारा। जन गण मन अधिनायक सिर्फ जन, जनता

(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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