राष्ट्रीय
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"आपकी बेटी छह महीने से ज़्यादा ज़िंदा नहीं रहेगी. इसके लिए भारत में कोई इलाज नहीं है. तीरा का इलाज करने वाले डॉक्टरों ने हमें पहले दिन यही कहा था."
पाँच महीनों की तीरा के पिता मिहिर कामत ने बीबीसी मराठी से बात करते हुए ये बात कही.
पिछले कुछ दिनों से तीरा का मुंबई के एसआरसीसी अस्पताल में इलाज चल रहा है.
मिहिर कामत ने बताया, "जन्म के समय इसकी आवाज़ बहुत तेज़ थी. जन्म के बाद जब वो रोयी तो वेटिंग रूम तक आवाज़ पहुँच गयी थी. उसका दिमाग़ तेज़ था और आम बच्चों की तुलना में थोड़ी लंबी भी थी. तीर की तरह लंबी, इसलिए इसका नाम तीरा रखा."
जन्म के बाद तीरा घर आ गई और सब कुछ ठीक था. लेकिन जल्दी ही स्थिति बदलने लगी. मां का दूध पीते वक़्त तीरा का दम घुटने लगता था. शरीर में पानी की कमी होने लगती थी. एक बार तो कुछ सेकेंड के लिए उसकी साँस थम गई थी.
इसके बाद टीकाकरण के दो बूंदों के वक़्त भी तीरा का दम जब घुटने लगा तब माता-पिता को ख़तरे का अंदाज़ा हुआ.
डॉक्टरों ने बच्ची को न्यूरोलॉजिस्ट से दिखाने को कहा. न्यूरोलॉजिस्ट ने पाया कि बच्ची एसएमए टाइप 1 से पीड़ित है. नाम से अंदाज़ा नहीं लगता है कि बीमारी कितनी ख़तरनाक है.
प्रोटीन बनाने वाला जीन
दरअसल इंसानों के शरीर में एक जीन होता है, जो प्रोटीन बनाता है और इससे मांसपेशियां और तंत्रिकाएं जीवित रहती हैं. लेकिन तीरा के शरीर में यह जीन मौजूद नहीं था.
इस वजह से उनका शरीर प्रोटीन नहीं बना पा रहा था. इसके चलते तीरा के शरीर की तंत्रिकाएं निर्जीव होने लगी थीं. दिमाग़ की मांसपेशियां भी कम सक्रिय हो रही थीं और निर्जीव होती जा रही थीं.
साँस लेने से लेकर भोजन चबाने तक, मस्तिष्क की मांसपेशियों से संचालित होता है. तीरा के शरीर में यह सब नहीं हो रहा था. ऐसी स्थिति को एसएमए यानी स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉपी कहते हैं. यह कई प्रकार का होता है और इसमें टाइप 1 सबसे गंभीर होता है.
13 जनवरी को तीरा को एसआरसीसी अस्पताल, मुंबई में साँस लेने में तकलीफ़ के चलते दाख़िल कराया गया. तीरा के एक फेफड़े ने काम करना बंद कर दिया था, इसके बाद उसे वेंटिलेटर पर रखा गया.
मिहिर कामत ने बताया, "वह अभी वेंटिलेटर पर है. अभी ठीक है. लेकिन लंबे समय तक उसे वेंटिलेटर पर नहीं रखा जा सकता है. क्योंकि लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखने से ट्यूब में संक्रमण का ख़तरा होता है. अभी उसे सीधे फ़ीड कराते हैं."
भारत में उपलब्ध नहीं इलाज
तीरा की देखभाल करने के अलावा प्रियंका और मिहिर के सामने बेटी के इलाज का ख़र्चा उठाने की भी चुनौती है.
पहली मुश्किल तो यही है कि इस बीमारी के इलाज के लिए शरीर में उस जीन को रीलीज किया जाता है, लेकिन यह इलाज भारत में कहीं भी उपलब्ध नहीं है.
मिहिर कामत बताते हैं. "इसके अलावा तीरा की स्थिति भी नाज़ुक है. उसे कहीं बाहर ले जाना भी मुमकिन नहीं है. ऐसे में जो भी करना होगा वह भारत में ही करना होगा."
यही वजह है कि इस बीमारी में असर करने वाले एक ख़ास इंजेक्शन को अमेरिका से मँगाने की कोशिश की जा रही है. इस इंजेक्शन की क़ीमत पर आपको भले यक़ीन नहीं हो लेकिन सच यही है कि यह 16 करोड़ रुपये का इंजेक्शन है.
उम्मीद की किरण
मिहिर एक आईटी सर्विस कंपनी में काम करते हैं जबकि प्रियंका एक फ्रीलांस इलेस्ट्रेटर हैं. दोनों इस इंजेक्शन की क़ीमत सुनकर सन्नाटे में आ गए थे.
लेकिन कुछ दिनों के बाद इन लोगों ने एक इंटरनेशनल न्यूज़ चैनल पर एक ख़बर देखी जिसमें लोग कनाडा में ऐसी मुश्किल बीमारियों के इलाज के लिए क्राउडफ़ंडिंग का इस्तेमाल कर रहे थे. इस ख़बर से मिहिर और प्रियंका को भी उम्मीद दिखी.
मिहिर ने बताया, "पहले तो काफ़ी मुश्किल लग रहा था. डॉक्टरों ने तो कह दिया था कि बेटी छह महीने से ज़्यादा नहीं बचेगी, क्योंकि भारत में कोई इलाज ही नहीं है. मैंने अपनी पत्नी को पहले दिन ही बता दिया था. मैंने कहा कि अगर तुम रोना चाहती हो तो अभी रो लो क्योंकि आगे लंबा संघर्ष है."
मिहिर ने बताया, "मैंने अपने जीवन में कभी 16 करोड़ रुपये नहीं देखे. लेकिन हमने सोचा कि शुरुआत करनी चाहिए. कनाडा जैसे देशों में लोग क्राउडफ़ंडिंग करके पैसे जुटा लेते हैं. एक शख़्स को ऐसा करते देख हम लोगों को भरोसा हुआ कि ऐसा किया जा सकता है."
माता-पिता दोनों ने सोशल मीडिया पर तीरा की स्टोरी शेयर की. इसके बाद उन्होंने तीरा फ़ाइट्स एसएमए करके इंस्टाग्राम और फेसबुक पेज बनाया. इस पर वे तीरा के स्वास्थ्य के बारे में लगातार जानकारी देते हैं. लोगों से मदद की अपील करते हैं.
उन्होंने तीरा के इलाज के लिए पैसे जुटाने के लिए अभियान भी चलाया है.
मिहिर ने बताया, "लोग हमारी कहानी सुनते हैं. उन्हें हमारी कहानी उनकी अपनी लगती है. हमने लोगों को हर दिन का अपडेट बताना शुरू किया है. लोगों को लगता है कि ये उनकी अपनी बेटी, भतीजी है. लोगों ने मदद भी की. शूटिंग लोकेशन से एक कारपेंटर ने मदद भेजी. बड़े लोगों की मदद भले नहीं मिली हो लेकिन छोटे-छोटे गांवों से लोग मदद भेज रहे हैं."
कई दूसरे लोगों ने भी तीरा के लिए मदद जुटाने की अपील की है. वहीं दूसरी ओर गंभीर बीमारी से पीड़िता तीरा अपनी बड़ी-बड़ी आंखों के साथ हमेशा मुस्कुराती नज़र आती है.
कई लोगों की मदद से पैसा जमा हो रहा है और लगभग 16 करोड़ रूपये जमा हो गए हैं. लेकिन 16 करोड़ रुपये तो इंजेक्शन की क़ीमत है. इसके अलावा दूसरे ख़र्चे भी हैं.
डॉक्टरों ने अमेरिका से इंजेक्शन मँगाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, हालांकि इसमें वक़्त लगेगा. इंजेक्शन की क़ीमत के अलावा कामत परिवार के सामने दूसरी चुनौतियां भी हैं.
मिहिर ने बताया, "पहली बात तो यही है कि हम ये भुगतान कैसे करेंगे. इतनी बड़ी रक़म है. हममें से किसी ने कभी इतनी बड़ी रक़म का भुगतान नहीं किया है. क्या हमें इसके भुगतान के लिए ट्रांसफ़र शुल्क देना होगा? क्या डॉलर एक्सचेंज के पैसे देने होंगे? हमारे पास इन सबका कोई जवाब नहीं है."
मिहिर इसके साथ ही कहते हैं, "दुर्लभ दवाईयों को कस्टम शुल्क से बाहर रखा जाता है. लेकिन हमें नहीं मालूम है कि यह दवाई जीवन रक्षक दवाईयों की सूची में शामिल है या नहीं. क्या हमें इसके लिए जीएसटी का भुगतान करना होगा? अगर हमें 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी का भुगतान करना पड़ा तो वह भी एक बड़ी रक़म होगी."
मिहिर कामत ने बताया, "पैसे जमा करना बेहद मुश्किल है. लेकिन हम लोग कर रहे हैं. लेकिन अगर हमें सरकार थोड़ी मदद करके टैक्स में राहत दे दे तो हमारे अलावा दूसरे सभी प्रभावित परिवारों की मदद हो जाएगी. इसके अलावा देश भर में जीन थेरेपी की शुरुआत भी होनी चाहिए."
मिहिर का यह भी मानना है कि जब तक कंपनियां इन दवाईयों को भारत नहीं लाएंगी, प्रभावित बच्चों को इलाज नहीं मिल पाएगा. इसके लिए उन्हें विदेश जाना होगा. वहां जाना, रहना और प्रवासी के तौर पर जाने की अनुमति लेना, इन समस्याओं को दूर करने की ज़रूरत है.
बॉम्बे हॉस्पिटल, मुंबई के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. निर्मल सूर्या ने बताया, "एसएमए चार तरह की स्पाइनल मस्क्यूलर एट्रॉपी में एक है. इनमें पहला सबसे गंभीर है. यह छह महीने तक के बच्चों में पाया जाता है. इसमें तंत्रिकाएं निर्जीव हो जाती हैं. दिमाग़ को कोई जानकारी नहीं मिलती. मस्तिष्क की मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं और आख़िर में काम करना बंद कर देती हैं. ऐसे में बच्चे का बचना मुश्किल होता है. आज भी इसका कोई इलाज नहीं है."
"हालांकि इस बीमारी के इलाज के लिए अमेरिका में 2019 में ज़ोल्गेनस्मा थेरेपी को अनुमति मिली. यह इलाज दो साल से कम उम्र के बच्चों को दी जाती है. हालांकि इसके ज़रिए पूरे नुक़सान को ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन कुछ हद तक बच्चा ठीक हो जाता है, कुछ प्रभाव लौट आते हैं."
"इस इंजेक्शन को देने के बाद शरीर में तंत्रिकाओं का निर्जीव होना बंद हो जाता है. कमज़ोर मांसपेशियों को दिमाग़ से फिर संकेत मिलने लगते हैं और वे धीरे-धीरे मज़बूत होने लगते हैं. बच्चा बड़ा होकर चलने फिरने लायक़ हो जाता है. यह इलाज काफ़ी महंगा है लेकिन प्रभावी है."
तीरा अभी महज़ पाँच महीने की है, उनका तंत्रिका तंत्र पूरी तरह से क्षतिग्रस्त नहीं हुआ है लेकिन उसकी मांसपेशियां काफ़ी कमज़ोर हो गई हैं, लेकिन अभी वह हिल डुल सकती है.
मिहिर ने बताया, "यह इंजेक्शन एक बार ही देना होता है. अगर समय से इंजेक्शन मिल जाए तो तीरा की मांसपेशियां मज़बूत हो जाएंगी. शरीर प्रोटीन बनाना शुरू कर देगा और वह एक सामान्य ज़िंदगी जी पाएगी. ठीक से खा पाएगी और साँस ले पाएगी."
देशभर में एसएमए मरीज़ों की स्थिति
अल्पना शर्मा के बेटे को एसएमए टाइप 2 2013 में हुआ था. उनके बेटे के इलाज में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने मदद की थी. 2014 के बाद से अल्पना ने भारत में एसएमए पीड़ित बच्चों के लिए क्योर एसएमए फ़ाउंडेशन बनाया. यह संस्थान एसएमए पीड़ित बच्चों की मदद करता है.
अल्पना शर्मा ने बीबीसी मराठी से कहा, "एसएमए का कुछ ही इलाज उपलब्ध है. महंगा होने के चलते सभी बच्चों को वह मिल भी नहीं पाता. कई दवा कंपनियां अपने कारपोरेट सोशल रिस्पांस्बिलिटी में इन दवाओं को उपलब्ध कराती हैं, लेकिन वहां से इसका मिलना लकी ड्रा हासिल करने जैसा है. जबकि हर किसी को जीने का अधिकार है. कोई भी मां-बाप बच्चे को अपनी आंखों के सामने मरता नहीं देखना चाहता. हम सरकार से इस दिशा में पहल करने की माँग करते हैं."
"अगर ये कंपनियां इलाज को भारत में ले भी आएं तो भी लोग उसका ख़र्च नहीं उठा पाएंगे. इसके लिए सरकार को पहल करनी होगी. अभी तीरा के माता-पिता संघर्ष कर रहे हैं. देश भर में ऐसे कई माता-पिता होंगे."
तीरा का जन्म अगस्त महीने में कोविड लॉकडाउन के दौरान हुआ था. कोविड के चलते माता-पिता को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है.
मिहिर ने बताया, "हमलोग देखते हैं कि तीरा को तकलीफ़ हो रही है. लेकिन उसे बचाने के लिए यह ज़रूरी है. जब वह तकलीफ़ में होती है तो हमलोग भी तकलीफ़ में होते हैं. लेकिन इसका कोई निदान नहीं है. यह तब तक चलेगा जब तक उसे ज़रूरी इलाज नहीं मिल जाए. लेकिन हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि उम्मीद बाक़ी है."
मिहिर ने यह भी कहा, "हम उम्मीदों को ज़िंदा रखने की कोशिश कर रहे हैं. अगर मौक़ा मिले तो बच्चे के जीवन के लिए उसे गंवाना नहीं चाहिए. दुनिया भर में लोग ऐसा कर रहे हैं. हमलोगों ने निश्चिय कर लिया है कि उसकी तकलीफ़ को दूर करने वाला इंजेक्शन उसे लगवा कर रहेंगे." (bbc)