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ब्रिटेन में महामारी की मार रोजगार पर, भारतीयों पर भी असर
27-Jan-2021 9:48 PM
ब्रिटेन में महामारी की मार रोजगार पर, भारतीयों पर भी असर

ब्रिटेन में बेरोजगारी दर कोरोना महामारी के कारण पिछले साढ़े साल के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. लॉकडाउन के कारण खत्म हुए रोजगारों ने भारतीय समुदाय पर औसत से ज्यादा असर डाला है.

    डॉयचे वैले पर स्वाति बक्षी का लिखा-

"मैं एक मार्केट रिसर्च फर्म में काम करती थी लेकिन सालों पहले मैंने ये सोचकर उसे छोड़ दिया था कि अपना बॉस खुद बनूंगी. एक दोस्त ने सुझाया कि ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर बन जाओ, अपनी जिंदगी पर पूरी लगाम रहेगी, और मैंने लाइसेंस हासिल कर लिया. लेकिन कोविड के चलते पिछले मार्च से लॉकडाउन का जो सिलसिला शुरू हुआ तो मेरा रोजगार पूरी तरह से ठप हो गया." लंदन के पूर्वी इलाके में रहने वाली बेला सूरी उन हजारों भारतीयों में से हैं जिनके स्व-रोजगार पर कोविड महामारी का सीधा असर पड़ा है. उनका काम ऐसा है जिसमें सोशल डिस्टेंसिग जैसी बातों को लागू नहीं किया जा सकता और फिलहाल काम पर लौटने की दूर तक संभावना नहीं है.

सरकारी नियमों के मुताबिक ड्राइविंग इंस्ट्रक्टर कोरोना प्रतिबंधों के कारण इस समय काम नहीं कर सकते. बेला सूरी करीब सोलह साल से ये काम कर रही हैं और इसके अलावा वे और कोई काम नहीं कर सकतीं. वे कहती हैं, "मेरे पास और कोई हुनर नहीं है. समझ नहीं आता कि आमदनी के लिए अब मैं क्या करूंगी.' बेला की आवाज में घुली बेबसी फिलहाल किसी दिलासे से दूर नहीं की जा सकती. खासकर तब जब आधिकारिक आंकड़े निराशाजनक हालात बयां कर रहे हों.

ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ओएनएस के नए आंकड़े बताते हैं कि सितंबर से नवंबर के बीच बेरोजगारी दर पांच फीसदी रही है और सोलह साल से ऊपर के करीब सत्रह लाख लोग बेरोजगार हो चुके हैं. एक अन्य आर्थिक संस्था, ऑफिस फॉर बजट रेस्पॉन्सिबिलिटी (ओबीआर) के नवंबर 2020 के आंकड़े पहले ही कह चुके हैं कि साल 2021 के मध्य तक बेरोजगार लोगों की संख्या बढ़कर छब्बीस लाख हो जाएगी. अर्थव्यवस्था के कुछ खास क्षेत्रों पर महामारी का बेहद गंभीर असर पड़ा है. होटल उद्योग, पर्यटन और मनोरंजन से जुड़ी कंपिनयां और रीटेल उद्योग में काम करने वाले लोगों की नौकरियां पर भयंकर चोट हुई है और हजारों लोगों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया है. सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले शहरों में लंदन है जहां बेरोजगारी दर, राष्ट्रीय औसत से डेढ़ फीसदी ज्यादा यानी साढे छह प्रतिशत रही.

एक भी ग्राहक नहीं
लंदन के डेगेनहेम इलाके में रहने वाले मनोज लूक बताते हैं, "मैं दुनिया की सबसे बड़ी फूड सर्विस कंपनी में शेफ था. मार्च में जब लॉकडाउन हुआ तो हमें लगा कि बस कुछ दिनों की बात है, लेकिन हफ्ते महीनों में और महीने साल में बदलते चले गए. शुरू में सरकार की फरलो स्कीम का फायदा था लेकिन बाद में जब सरकार ने कंपनियों को भी कर्मचारियों की तनख्वाह में कुछ हिस्सेदारी करने को कहा तो सूरत बदलने लगी. सितंबर में हमें नोटिस दिया गया कि अनिश्चितता को देखते हुआ नौकरियां खत्म की जा रही हैं. मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि पंद्रह साल तक काम करने के बाद भी जीवन में एक दिन ऐसा आ सकता है.'

ओएनएस के ही आंकड़े बताते हैं कि सितंबर से नवंबर के बीच तीन लाख पच्चान्बे हजार लोगों को नौकरियों से बाहर कर दिया गया. रोजगार खोने वाले भारतीयों में, मनोज से मिलता जुलता कड़वा अनुभव रहा, गैटविक एयरपोर्ट स्थित एक बड़े होटल में काम करने वाले एक अन्य भारतीय लॉरेंस डिसूजा का. लॉरेंस बताते हैं, "मैं असिस्टेंट फूड ऐंड बेवरेज के तौर पर काम कर रहा था. मार्च से जब लॉकडाउन हुआ तो बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया. मार्च से जुलाई तक तो फरलो के तहत तनख्वाह मिल रही थी लेकिन बाद में जब कंपनियों की तरफ से कुछ हिस्सा देने की बात आई तो हर जगह लोगों के कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने लगे. लंदन में मेरे बहुत से दोस्तों के साथ यही हुआ. इतना ज्यादा असर इस वजह से भी हुआ कि होटल उद्योग पूरी तरह से पर्यटकों पर निर्भर है, यहां भारत जैसे देशों की तरह स्थानीय मांग नहीं है. मेरे दोस्त बताते हैं कि उनकी बुकिंग किताबों में इस साल के अंत तक फिलहाल एक भी कस्टमर का नाम नहीं है. ऐसे हाल में कब तक काम चलाया जा सकता है.'
क्या हैं विकल्प

कोविड महामारी के आर्थिक असर को गहराई से टटोलने पर कुछ बातें बहुत साफ तौर पर दिखाई देती हैं. मसलन स्वनियोजित या सीमित अवधि के करार पर काम करने वाले लोगों पर ज्यादा असर हुआ जबकि प्रशासनिक या सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़ी नौकरियों में पर्मानेंट कॉन्ट्रैक्ट या पक्की नौकरी पर काम करने वाले लोगों का रोजगार बचा रहा क्योंकि वो घर से ही काम कर सके. इसके अलावा, वो उद्योग जो पारंपरिक तौर पर सस्ते प्रवासी कामगारों पर निर्भर रहे हैं, उनके बंद होने से गहरा असर पड़ा है जैसे होटल और खाद्य सेवाओं से जुड़ी कंपनियों में प्रवासी कर्मचारियों की संख्या काफी ज्यादा है.

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय स्थित माइग्रेंट ऑब्जर्वेट्री का शोध बताता है कि करीब बीस फीसदी प्रवासी कामगार खान-पान और होटल व्यवसाय से जुड़े हैं. कोविड के चलते ये क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुआ क्योंकि रेस्टोरेंट और होटल जैसी जगहों में भी लोगों से दूरी बनाकर सुरक्षित तरीके से काम करने की संभावनाएं बहुत सीमित हैं और इन्हें बंद रखना पड़ा. खान-पान, होटल व्यवसाय, होलसेल और रिटेल तथा मैन्युफैक्चरिंग में करीब 600,000 नौकरियां खत्म हो गई हैं जो कुल नौकरियों का 70 प्रतिशत है. इनमें ज्यादातर अश्वेत, एशियन और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग काम करते हैं.

चूंकि भारतीय कर्मचारियों की संख्या भी इस क्षेत्र में काफी ज्यादा है, इसलिए इस क्षेत्र में नौकरियां खोने वाले लोगों में भारतीय बड़ी संख्या में हैं. हालांकि लोग निराशा के बावजूद, रोजगार के दूसरे अवसरों को खोजने और अपने विकल्प समझने की कोशिशों में लगे हुए हैं. कुछ को इंतजार है कि शायद इन्हीं परिस्थितियों से कोई नई दिशा दिखाई दे जाए. (dw.com)
(पहचान गुप्त रखने के उद्देश्य से कुछ नाम बदले गए हैं.)

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