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नेपाल के लोग पाकिस्तान के बारे में क्या सोचते हैं?
31-Jan-2021 1:02 PM
नेपाल के लोग पाकिस्तान के बारे में क्या सोचते हैं?

-रजनीश कुमार

नेपाल में जामा मस्जिद
29 साल के संघर्ष दाहाल नेपाल में मधेस इलाक़े के महोत्तरी ज़िले के हैं. ये 16 जनवरी 2018 को वामपंथी संगठन के एक कार्यक्रम में शामिल होने पाकिस्तान के लाहौर गए थे. संघर्ष दाहाल नेपाल से अपने दोस्त वीरेंद्र ओली के साथ 14 जनवरी को पाकिस्तान के लिए रवाना हुए थे.

वीरगंज में भारत के इमिग्रेशन ऑफिस में इनसे क़ड़ी पूछताछ हुई. संघर्ष दाहाल बताते हैं कि भारतीय अधिकारियों को ये समझाना बहुत मुश्किल हुआ कि वे पाकिस्तान क्यों जा रहे हैं.

हालाँकि किसी तरह समझाकर वो बाघा बॉर्डर के ज़रिए पाकिस्तान में दाखिल हुए. संघर्ष कहते हैं, ''पाकिस्तान में जाना मेरी आँख खोलने वाली परिघटना है. चूँकि मैं भारत होते हुए पाकिस्तान गया इसलिए वहाँ के सुरक्षा बलों की नज़र में हम दोनों चढ़े हुए थे. हम पर पाकिस्तानी सेना और वहाँ की ख़ुफ़िया एजेंसी की निगाहें थीं. वहाँ के होटल किसी तरह पाकिस्तानी कॉमरेड की मदद से रखने को तैयार हुए. लेकिन रात में सेना के लोग आए हमें बाहर निकलना पड़ा. फिर किसी दूसरे होटल में जगह मिली.''

वीरेंद्र ओली और संघर्ष दाहाल

संघर्ष कहते हैं, ''सेना और सुरक्षा बलों के शक को छोड़ दें तो जितना प्यार पाकिस्तान के लोगों ने दिया वो बता नहीं सकता. ऐसा लग रहा था कि अपने ही लोग हैं. हमें हिन्दी आती थी तो वहाँ लोगों से संवाद में भी दिक़्क़त नहीं हुई. नेपाल के मधेसी तो दिखने में भी पाकिस्तानियों और भारतीयों से बहुत अलग नहीं होते. इसी का फ़ायदा उठाकर मैं वामपंथी संगठनों के विरोध मार्च में भी शामिल हो गया.''

संघर्ष कहते हैं कि पाकिस्तान जाने से पहले वो भी पाकिस्तान को भारतीयों की तरह देखते थे. संघर्ष के मन में पाकिस्तान को लेकर अब बिल्कुल अलग नज़रिया है.

जब आप नेपाल में आएं और पाकिस्तान या पाकिस्तानियों को लेकर यहाँ के लोगों से पूछें तो एक बड़ा तबका है कि जो बहुत सकारात्मक सोचता है. हालाँकि एक तबका ऐसा भी है जो पाकिस्तान को कट्टर मुल्क समझता है.

मोहना अंसारी मधेसी ज़िला नेपालगंज की हैं. वे नेपाल मानवाधिकार आयोग की कमिश्नर रही हैं. मोहना कहती हैं कि पाकिस्तान को लेकर नेपाल में लोगों की सोच बँटी हुई है. मधेसियों और पहाड़ियों की सोच अलग-अलग है.

मोहना कहती हैं, ''मधेसी इलाक़ों में लोग भारतीय हिन्दी न्यूज़ चैनल देखते हैं. हिन्दी न्यूज़ चैनलों में पाकिस्तान को जिस तरह से पेश किया जाता है, वो वैसे ही देखते हैं. हालाँकि जो कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़े रहे हैं उनके साथ ऐसा नहीं है.''

मोहना कहती हैं, ''नेपाल में जो हिन्दी न्यूज़ चैनल और लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा देखते हैं उनके मन में पाकिस्तान और पाकिस्तानी कट्टर हैं. ये पाकिस्तान को उसी तरह से देखते हैं जैसे भारत की बहुसंख्यक आबादी देखती है. दूसरी तरफ़ भारत के हिन्दूवादी संगठन भी मधेस इलाक़े में ज़्यादा सक्रिय हैं और ये संगठन भी आम नेपालियों की पाकिस्तान के प्रति उनकी सोच को प्रभावित करते हैं.''

मोहना अंसारी

मोहना कहती हैं पाकिस्तान को लेकर नेपाल में दो धारा है. वो कहती हैं, ''एक नज़रिया भारत की बहुसंख्यक आबादी वाला है तो दूसरा नज़रिया चीन वाला है. चीन और पाकिस्तान में दोस्ती है. नेपाल में जो चीन का समर्थन करते हैं वो पाकिस्तान को नेपाल के दोस्त के तौर पर ही देखते हैं.''

उमेश यादव मधेसी इलाक़े के सप्तरी ज़िले के हैं. वो ओली सरकार में सिंचाई मंत्री थे. उमेश यादव कहते हैं कि भारत की सीमा सुरक्षा में अब भी नेपाली लगे हुए हैं और भारत की आज़ादी में भी नेपाली शामिल रहे हैं. वो कहते हैं, ''हम मनोवैज्ञानिक रूप से भारत से जु़ड़े हैं ऐसे में पाकिस्तान को लेकर हमारी सोच क्या होगी यह भारतीयों की सोच से प्रभावित होती है.''

काठमांडू के 30 साल के मोइन-उद्दिन बिज़नेस में मास्टर की पढ़ाई कर टीच नेपाल नाम के एक एनजीओ में नौकरी करते थे. वो कहते हैं, ''मैं तब्लीग़ी ज़मात से जुड़ा हूँ. तब्लीग़ी के लोग पाकिस्तान से नेपाल आते हैं. उनके साथ बात करने पर यही अहसास हुआ कि वे नेपालियों के बारे में अच्छा सोचते हैं. कई बार तो मैंने देखा है कि जब पाकिस्तान और इंडिया के बीच क्रिकेट मैच होता है तो भारत से नाराज़गी जताने के लिए नेपाल के हिन्दू भी पाकिस्तान का समर्थन करते हैं. हालांकि ऐसा नाकाबंदी के बाद हुआ है क्योंकि आम नेपालियों को बहुत परेशानी उठानी पड़ी थी.''

हालाँकि पाकिस्तान में इस्लाम को लेकर कुछ होता है तो नेपाल के मुसलमानों के बीच भी इसकी हलचल होती है. फ़्रांसीसी पत्रिका शार्ली हेब्दो में पैग़ंबर मोहम्मद को लेकर कार्टून छपा तो नेपाल की जामा मस्जिद से 28.10.2020 को एक बयान जारी किया गया.

इस बयान में लिखा गया था, ''हमारे पैग़ंबर को लेकर फ़्रांस में एक कार्टून बनाया गया. यह हमारे पैग़ंबर का अपमान था. फ़्रांस इसे रोकने के बजाय और शह दे रहा है. संपूर्ण इस्लामी समाज इससे ग़ुस्से में है. हम नेपाली मुसलमान इस अपमानजनक काम का विरोध करते हैं. हम सभी मुसलमानों से कम से कम फ़्रांसीसी उत्पादों के बहिष्कार का आग्रह करते हैं. पैग़ंबर का सम्मान ही सब कुछ है और इसके सामने कुछ भी मायने नहीं रखता.''

मोइन-उद्दिन
मोइन-उद्दिन कहते हैं कि पाकिस्तान और नेपाल के बीच बहुत आवाजाही नहीं है इसलिए भी दोनों मुल्क के लोग एक दूसरे के बारे में बहुत नहीं जानते हैं. नेपाल और पाकिस्तान के बीच सीधे कोई फ्लाइट नहीं है. अगर किसी नेपाली को फ्लाइट से पाकिस्तान जाना है तो उन्हें क़तर के दोहा होते हुए जाना पड़ता है. इसमें डेढ़ से दो दिन का वक़्त लगता है. इसके लिए आज की तारीख़ में एक नेपाली को लगभग एक लाख नेपाली रुपये किराया देना पड़ता है.

काठमांडू और इस्लामाबाद के बीच कोई फ्लाइट नहीं
काठमांडू के महाराजगंज में पाकिस्तान का दूतावास है. वहाँ काम करने वाले एक पाकिस्तानी स्टाफ़ ने नाम नहीं बताने की शर्त पर बताया, ''हमें इस्लामाबाद जाने के लिए काठमांडू से दोहा या दुबई जाना पड़ता है. इसमें कम से कम 21 घंटे का वक़्त लगता है. इसके अलावा 1300 डॉलर किराया लगता है. अगर काठमांडू से इ्स्लामाबाद के लिए सीधे फ्लाइट होती तो दो घंटे का समय लगता. मैं नेपाल में तीन सालों से हूं. नेपाली लोग बहुत प्यार देते हैं. मेरे पास कई बार पैसे नहीं होते तो नेपाली बिना पैसे के ही सब्ज़ी दे देते हैं. भारतीयों और हमारी ज़ुबान एक ही है इसलिए ज़्यादातर नेपाली पूछते हैं कि मैं इंडियन हूं तो मैं बहुत सफ़ाई नहीं देता और कह देता हूं कि हाँ इंडियन ही हूँ."

नेपाल नागरिक उड्डयन प्राधिकरण के प्रवक्ता राजकुमार क्षेत्री कहते हैं, ''सात साल पहले काठमांडू से इस्लामाबाद की एक फ्लाइट चलती थी. वो फ्लाइट पाकिस्तान एयरलाइंस की थी. लेकिन बाद में पैसेंजर नहीं मिलने के कारण फ्लाइट बंद करनी पड़ी.''

इसी महीने 16 जनवरी को ख़बर आई कि 10 नेपालियों की एक टीम ने पाकिस्तान और चीन की सीमा तक फ़ैले काराकोरम रेंज के पर्वत K2 को सर्दी के मौसम में फ़तह कर लिया. यह इतिहास में पहली बार हुआ है. इससे पहले की सारी कोशिश नाकाम रही थी. नेपालियों की इस टीम का नेतृत्व निर्मल पुर्जा कर रहे थे. इन्होंने पाकिस्तान से जाकर ही k2 फ़तह किया था.

निर्मल पुर्जा से पाकिस्तान के बारे में पूछा तो उन्होंने जमकर तारीफ़ की. निर्मल पुर्जा ने बीबीसी से कहा, ''पाकिस्तानियों ने दिल जीत लिया. k2 समिट पूरा करने में पाकिस्तानियों ने दिल खोलकर मदद की. समिट पूरा करने के बाद पाकिस्तान में हीरो की तरह स्वागत किया गया. वहाँ के सेना प्रमुख ने अलग से मिलकर बधाई दी और पूरे मिशन के बारे में पूछा. राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात हुई. मुझे तो लगता है कि भारतीयों को भी पाकिस्तान से मिलकर रहना चाहिए. दोनों भाई की तरह हैं. दोनों आपस में लड़ते हैं तो कोई तीसरा आदमी फ़ायदा उठा लेता है.''

नेपाल और पाकिस्तान संबंध

पाकिस्तान और नेपाल में 19 मार्च 1960 को राजनयिक रिश्ते बहाल हुए. तब से दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध हैं. नेपाल ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते को हमेशा भारत की नीति से अलग रखा. यहाँ तक कि भारत और पाकिस्तान में जंग हुई तो नेपाल ने किसी का पक्ष नहीं लिया. नेपाल ने कभी ये भी नहीं कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और न ही पाकिस्तान के दावे का समर्थन किया.

नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडे ने बीबीसी हिन्दी से कहा कि नेपाल को किसी का पक्ष लेने की ज़रूरत भी नहीं है. उन्होंने कहा, ''नेपाल के भी अपने द्विपक्षीय हित हैं और उसी हिसाब से काम करेगा. भारत और नेपाल को रिश्तों में कई ऐतिहासिक बोझ हैं और इसे दोनों देश जब उठाकर नहीं फेंकते हैं तब तक नेपाल के लिए भारत के पक्ष में खुलकर आसान मुश्किल है.''

नेपाल और पाकिस्तान दोनों के चीन से अच्छे संबंध हैं. चीन और पाकिस्तान के बीच सीपीईसी का भी नेपाल समर्थन करता है. नेपाल भी चीन की वन बेल्ट रोड परियोजना में शामिल है. हालाँकि भारत इसका विरोध करता है. पाकिस्तान और नेपाल के बीच उच्चस्तरीय दौरे की शुरुआत 1961 में 10 से 16 सितंबर तक किंग महेंद्र की यात्रा से होती है. तब किंग महेंद्र का स्वागत पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान ने किया था.

किंग महेंद्र को उस दौरे में पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से नवाज़ा गया था. इसके बदले में नेपाल ने भी अयूब ख़ान को ओजस्वी राजन्या से सम्मानित किया था. 1963 में नौ से 12 मई तक नेपाल के दौरे पर अयूब ख़ान आए. इसके बाद दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आना-जाना लगा रहा. सबसे हाल में पाँच मार्च 2018 को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहिद ख़क़ान अब्बासी काठमांडू आए थे और फिर पीएम ओली ने भी पाकिस्तान का दौरा किया था.  (bbc.com)

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